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ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१३


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३१३   ?


       "ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर"

 
            एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज कहने लगे-" हमारी भक्ति करने वाले को जैसे हम आशीर्वाद देते हैं, वैसे ही हम प्राण लेने वालों को भी आशीर्वाद देते हैं।उनका कल्याण चाहते हैं।"

            इन बातों की साक्षात परीक्षा राजाखेड़ा के समय हो गई। ऐसे विकट समय पर आचार्य महराज का तीव्र पुण्य ही संकट से बचा सका, अन्यथा कौन शक्ति थी जो ऐसे योजनाबद्ध षड्यंत से जीवन की रक्षा कर सकती?

            कदाचित आचार्य महराज का विहार ह्रदय की प्रेरणा के अनुसार हो गया होता, तो राजाखेड़ा कांड नहीं होता, किन्तु भवितव्य अमित है। और भी जगह देखा गया है कि भक्त लोग महराज से अनुरोध करते थे और करुणा भाव से वे लोगों का मन रखते थे, तब प्रायः गड़बड़ी हुई है। जब भी महराज ने आत्मा की आवाज के अनुसार काम किया तब कुछ भी बाधा नहीं आयी।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल नवमीं?

1 Comment


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aachary shantisagarji maharaj rag dvesh se pare sam bhav me stith rahte the. yahee karan tha ki sab sankat unse door bhag jate the.

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