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ब्लाँग से सम्बन्धित नवीन सूचना


Sneh Jain

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ब्लागस मित्रों, जयजिनेन्द्र।

परमात्मप्रकाश पर ब्लाँग लिखने से पूर्व मैंने (पउमचरिउ) जैन रामकथा के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण किया था। उसके माध्यम से हम यह जान चुके थे कि जैन रामकथा भारतीय समाज की एक जीती जागती तस्वीर है। उसमें हमने यह देखा कि हम अपने विवेक से या फिर हम दूसरों की प्रेरणा से जो कुछ कर रहे हैं उसी का परिणाम भुगत रहे हैं। पिछले आरम्भिक ब्लाँग में पात्रों के चरित्र चित्रण के बाद मुझे लगा कि क्यों मैं इस महत्वपूर्ण ग्रंथ को जो भारतीय समाज की जीती जागती तस्वीर है अपने ब्लाग पाठक मित्रजनों के बीच रखूँ इससे पाठक गण के साथ मेरे ज्ञान में भी वृद्धि होगी और सबके सुझाव से जीवन के तथ्यों और अधिक स्पष्ट हो सकेंगे। इन ब्लँाग को आपके समक्ष सहज बोधगम्य रुचिकर बनाने हेतु प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत कर रही हूँ। आज से प्रतिदिन दो ब्लाँगस लिखे जायेंगे, एक परमात्मप्रकाश से सम्बन्धित यथावत तथा दूसरा प्रश्नोत्तर शैली में पउमचरिउ पर। आज आप देखिये पउमचरिउ के ब्लाँग के पूर्व की संक्षिप्त में प्रस्तावना।

प्रस्तावना -

यह स्वयंभू कृत पउमचरिउ ग्रंथ अपभ्रंश भाषा में 7-8 वीं ईंस्वी में रचित है। इस अपभ्रंश ग्रंथ का अनुवाद श्री देवेन्द्रकुमार जैन इन्दोर ने किया है तथा यह ग्रंथ भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित है। यह पउमचरिउ (जैन रामकथा ग्रंथ अपभ्रंश भाषा का प्रथम महाकाव्य है। हिन्दी भाषा एवं साहित्य के जाने माने समीक्षक राहुल सांकृत्यायन ने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ के रचनाकार स्वयंभू के बारे में कहा है किहमारे इस युग में नहीं, हिन्दी के पाँचों युगों के जितने कवियों को हमने यहाँ संग्रहीत किया है, यह निसंकोच कहा जा सकता है कि उनमें स्वयंभू सबसे बड़े कवि हैं।वस्तुतः वे भारत के एक दर्जन अमर कवियों में एक हैं। यह ग्रंथ अपनी कथावस्तु के नामों के अनुसार पाँच भागों (काण्डों) में विभक्त है। ये पाँच भाग हैं- 1 विद्याधर काण्ड 2. अयोध्या काण्ड 3 सुन्दर काण्ड 4. युद्ध काण्ड 5. उत्तर काण्ड

पउमचरिउ का प्रथम भाग विद्याधर काण्ड है। इस विद्याधर काण्ड में चार वंशों का कथन हुआ है। 1. इक्ष्वाकुवंश,, 2विद्याधर वंश, 3 राक्षसवंश, 4 वानरवंश। इसमें रामकथा के मुख्यपात्र राम का सम्बन्ध इक्ष्वाकुवंश से, रावण का राक्षसवंश से तथा हनुमान का वानरवंश से बताया गया है।  इक्ष्वाकुवंश से विद्याधरवंश का तथा विद्याधरवंश से राक्षसवंश वानरवंश का उद्भव हुआ। प्रथम काण्ड़ के बाद विद्याधरवंश का नाम समाप्त होकर मात्र तीन वंश के ही नाम रह गये और सभी वंश के राजा विद्याधर कहे जाने लगे। यही कारण है कि सभी वंशों के उद्भव का कथन करनेवाला यह प्रथम काण्ड विद्याधर काण्ड कहा गया। इस प्रथम काण्ड को समझने के बाद ही रामकथा के माध्यम से हम भारत की जीती जागती तस्वीर का सही मायने में आकलन कर सकेंगे। हम यह कार्य बहुत ही धीरे-धीरे प्रतिदिन एक या दो प्रश्नों के माध्यम से करेंगे। कल से इसका प्रथम प्रश्न ब्लाँग प्रारम्भ किया जायेगा।

मेरा ईमेल  है- snehtholia@yahoo.com  आप किसी भी जानकारी के लिए इस पर सम्पर्क कर सकते हैं।

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