Jump to content
JainSamaj.World
  • entries
    284
  • comments
    3
  • views
    14,285

कषाय भाव ही असंयम का कारण है


Sneh Jain

381 views

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि कषाय नष्ट होने पर ही मन शान्त होता है और तब ही जीव के संयम पलता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

41.  जाँवइ णाणिउ उवसमइ तामइ संजदु होइ।

     होइ कसायहँ वसि गयउ जीव असंजदु सोइ।।।41।।

अर्थ - जब तक ज्ञानी शांत रहता है, तब तक ही वह संयमी घटित होता है। कषायों के वश में गया हुआ वह ही जीव असंयमी हो जाता है।

शब्दार्थ - जाँवइ -जब तक, णाणिउ-ज्ञानी, उवसमइ-शान्त रहता है, तामइ-तब तक, संजदु-संयमी, होइ-होता है, होइ-हो जाता है, कसायहँ -कषायों के, वसि-वश में, गयउ-गया हुआ, जीव-जीव, असंजदु-असंयमी, सोइ- वह, ही।

1 Comment


Recommended Comments

बहुत सुन्दर, वर्तमान जीवन शैली में जीवन में शांति के कितने महत्व को आचार्य श्री योगेन्दु की यह गाथा भली भाँति स्पष्ट कर रही है।

 

Link to comment
Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...