कषाय भाव ही असंयम का कारण है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि कषाय नष्ट होने पर ही मन शान्त होता है और तब ही जीव के संयम पलता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
41. जाँवइ णाणिउ उवसमइ तामइ संजदु होइ।
होइ कसायहँ वसि गयउ जीव असंजदु सोइ।।।41।।
अर्थ - जब तक ज्ञानी शांत रहता है, तब तक ही वह संयमी घटित होता है। कषायों के वश में गया हुआ वह ही जीव असंयमी हो जाता है।
शब्दार्थ - जाँवइ -जब तक, णाणिउ-ज्ञानी, उवसमइ-शान्त रहता है, तामइ-तब तक, संजदु-संयमी, होइ-होता है, होइ-हो जाता है, कसायहँ -कषायों के, वसि-वश में, गयउ-गया हुआ, जीव-जीव, असंजदु-असंयमी, सोइ- वह, ही।
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