कर्मो का संवर व निर्जरा करनेवाले की पात्रता
आचार्य योगिन्दु स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि कर्मों की निर्जरा व संवर करने वाला योग्य पात्र वही है जो आसक्ति को छोड़कर शान्त भाव धारण करता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
39. कम्मु पुरक्किउ सो खवइ अहिणव पेसु ण देइ।
संगु मुएविणु जो सयलु उवसम-भाउ करेइ।।
अर्थ - वह (ही) पूर्व में कियेे कर्म को नष्ट करता है और नये (कर्म) के प्रवेश को (अपने में) स्थान नहीं देता, जो समस्त आसक्ति को छोड़कर शान्त भाव धारण करता है।
शब्दार्थ - कम्मु-कर्म को, पुरक्किउ-पूर्व में किये गये, सो-वह, खवइ-नष्ट करता है, अहिणव -नये, पेसु-प्रवेश, ण-नहीं, देइ-देता, संगु-आसक्ति को, मुएविणु -छोड़कर, जो-जो, सयलु-समस्त, उवसम-भाउ -शान्त भाव को, करेइ-धारण करता है।
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