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  1. वर्धमान जिनदेव युगलपद, लालकमल से शोभित हैं जिनके अंगुली की नख आभा, से सबका मन मोहित है। देवों के मुकुटों की मणियां, नख आभा में चमक रहीं उन चरणों की भक्ति से मम, मति थुति करने मचल रही||1|| –o– नहीं अहंकृत होकर के मैं, नहीं चमत्कृत होकर के बुद्धी की उत्कटता से ना, नहीं दीनता मन रख के। वीर प्रभू की गुण-पर्यायों, से युत नित चेतनता में लीन हुआ है मेरा मन यह, अतः संस्तवन करता मैं ||2|| –o– उच्च कुलों में पैदा होना, सुख साधन सब पा लेना सुन्दर देह भाग्य भी उत्तम, धन वैभव भी पा लेना। मोक्ष मार्ग के लायक ये सब, पुण्य फलों को ना मानूँ भक्ति करन का मन यदि होता, पुण्य फल रहा मैं जानूँ ||3|| –o– इसीलिए अब मोक्ष प्रदायी, साधन को मैं साध रहा मैं अवश्य भक्ति करने को, अब मन से तैयार हुआ। मुझमें बुद्धी छन्द कला वा, शक्ती है या नहीं पता माँ समक्ष ज्यों बालक करता, तज लज्जा मैं करूँ कथा ||4|| –o– सामायिक में नित चिन्तन में, शास्त्रपाठ के क्षण में भी जो सन्मति को याद कर रहा, नित्य हृदय रति धर के ही। सकल पुण्य की लक्ष्मी उसके, हाथ स्वयं आ जाती है ऐसा लख फिर किस ज्ञानी को, प्रभु भक्ति ना भाती है? ||5|| –o– श्री वर्धमान स्तोत्र pdf श्री वर्धमान स्तोत्र व विधान श्री वर्धमान स्तोत्र (संस्कृत) –o– जो उत्पन्न हुआ जिन कुल में, विरवंश का वह है पूत वीर प्रभु को छोड़ अन्य को, मान रहा क्यों तू रे भूत। सूरज का फैला नहिं दिखता, धरती पर चहुँ ओर प्रकाश जन्म समय से अंध बने वे, या फिर उल्लू सा आभास ||6|| –o– राग द्वेष से सहित रहे जो, ऐसे देवों की सेवा क्या अतिशय फल दे सकती है, सेवा शिवसुख की मेवा। श्रीजिनवर हैं कल्पवृक्ष सम, उनकी सेवा सदा करो कल्पवृक्ष की सेवा भी क्या, अल्पफला या निष्फल हो? ||7|| –o– भवनवासि व्यन्तर देवो के, सुर समूह से वन्दित हैं जिनवर के चरणों में झुक वे, सुख पाते आनन्दित हैं। देवों के भी देव प्रभू का नाम, मंत्र है पूजित है सब अनिष्ट यदि दूर हो गये, बड़ी बात क्यों विस्मित है? ||8|| –o– भले बना हो कलीकाल का, प्रभाव सब पर दुखदायी दर्शन, मनन, सुनाम आपका, बिम्ब मात्र भी सुखदायी। सिद्ध किया ही गरुड़मंत्र ही, जिसके हाथ पहुँच जाये काल सर्प के योग भयों से, फिर किसका मन डर पाये ||9|| –o– राग रोग का नाश करूँ मैं, दिखता वैद्य नहीं कोई अष्ट कर्म बन्धन मिट जाए, नहीं रसायन है कोई। जो जिस विद्या नहीं जानता, नहीं प्रमाणिक वह ज्ञानी वैद्य आप हो अतः बन गई महा रसायन तव वाणी ||10|| –o– शस्त्र अस्त्र से सहित हुए जो, भ्रकुटि चढ़ रहीं लाल नयन ममता पाप दुःख ले बैठे, देह विरूप क्रूर है मन। लोग इन्हें भी प्रभू मानते, जिस जग में प्रभु आप रहें चेतन ज्ञान प्रकाश दिखे ना, और अन्धता किसे कहें? ||11|| –o– तीर्थंकर शुभ नाम कर्म के, पुण्य उदय की महिमा से, चार घातिया पाप नाश से, तिर्थोदय की गरिमा से। पुण्य उदय से उदित तीर्थ ही, वीर! आत्महित का कारण बने पुण्य के द्वेषी उनको, हो तब महिमा क्यों धारण? ||12|| –o– गर्भ समय के कल्याणक में, प्रतिदिन रत्नों की वर्षा जन्म समय के कल्याणक में, सकल लोक में सुख हर्षा। सूक्ष्म रूप से तव गुण गण को, गिनने में हो कौन समर्थ? दश अतिशय जो मूर्त रूप हैं, समझो उनमें कितना अर्थ ||13|| –o– स्वेद रहित है निर्मल है तनु, परमौदारिक सुन्दर रूप प्रथम संहनन पहली आकृति, शुभलक्षणयुत सौरभ कूप। अतुलनीय है शक्ति आपकी, हित-मित-प्रिय वचनामृत हैं दुग्धरंग सम रक्त देह का, दश अतिशय परमामृत हैं ||14|| –o– कोस चार सौ तक सुभिक्ष है, प्राणी वध उपसर्ग रहित बिन भोजन नित गगन गमन है, नख केशों की वृद्धि रहित। बिन छाया तनु चार मुखों से, निर्निमेष लोचन टिमकार सब विद्याओं के इश्वर हो, दश केवल अतिशय सुखकार||15|| –o– जन्म समय पर मन्दर मेरु, पर्वत जो विख्यात रहा जिस पर ही सौधर्म इंद्र ने, प्रभु का कर अभिषेक कहा। ‘वीर’ आपका नाम यही शुभ, धरती पर विख्यात रहे हो आनन्दित विस्मित होकर, देवों के भी इंद्र कहे ||16|| –o– शैशव वय में क्रीड़ा करते, देव बालकों के संग आप संगम देव तभी आ पहुँचा, देने को प्रभु को संताप। नाग रूप धर महा भयंकर, लखकर वीर न भीत हुए ‘महावीर’ यह नाम रखा तब, देव स्वयं सब मीत हुए ||17|| –o– शास्त्र विषय संदेह धारकर, चले जा रहे दो मुनिराज संजय विजय नाम हैं जिनके, गगन ऋद्धि ही बना जहाज। देख दूर से हर्षित होकर, लख कर ही निःशंक हुए धन्य-धन्य है इनकी मति भी, ‘सन्मति’ कहकर दंग हुए ||18|| –o– इस चतुर्थ काल में जितने, पहले जो तिर्थेश हुए कई कई राजाओं के संग, दीक्षित हो तपत्याग किए। आप जानते थे यह भगवन, फिर भी आप न खेद किए मौन धारकर एकाकी हो, बारह वर्ष विहार किए ||19|| –o– चौथी कषाय मात्र का जिनको, क्षयोपशम गत भाव रहा हो प्रमत्त यदि बीच-बीच में, वर्धमान चारित्र रहा। इसीलिए तो नाम आपका, ‘वर्धमान’ भी ख्यात हुआ नाम न्यास में भी भावों, से न्यास बना यह ज्ञात हुआ ||20|| –o– तप कल्याणक होने पर प्रभु, तप में ही संलीन हुए एकाकी बन कर विहार कर, सहनशील योगी जु हुए। उज्जैनी के मरघट पर जब, आप ध्यान में लीन हुए उग्र उपद्रव सहकर के ही, नाम लिया ‘अतिवीर’ हुए ||21|| –o– नाना विध बंधन ताडन पा, जो पर घर में बंधी पड़ी पीड़ित होकर रोती रहती, कष्ट सहे हर घड़ी-घड़ी। वीर प्रभू का दर्शन पाऊँ, भक्ति और उल्लास भरी दर्शन पाकर वही चन्दना, भय-बन्धन से तब उभरी ||22|| –o– ज्ञानोत्सव होने पर प्रभु की, समवसरण सी सभा लगी पाँच हजार धनुष ऊपर जा, चेतनता जब पूर्ण जगी। मिथ्यादृष्टि जीवों को तव, मुख दर्शन का पुण्य कहाँ? इसीलिए इतने ऊपर जा, शोभित होते बैठ वहाँ ||23|| –o– हुआ मान से उद्धत है जो, सकल पुराण शास्त्र ज्ञाता मानस्तम्भ बने जिन-बिम्बों, को लख इंद्रभूति भ्राता। मान रहित हो खड़े रहे ज्यों, भूल गये हों सब कुछ ही छोड़ आपको अन्य पुरुष में, यह प्रभाव क्या होय कभी?||24|| –o– अन्तरंग में निज आतम से, विश्व चराचर देख रहे, केवल ज्ञान साथ जो होता, वह अनन्त सुख भोग रहे। हे जिन! तव परमात्म रूप को, मान रहे जो इसी प्रकार अहो! बताओ कैसे फिर वे, दुःखी रहेंगे किसी प्रकार ||25|| –o– बाहर भीतर ईश! आप तो, पूर्ण रूप से भासित हो तव चेतन के महा तेज से, तेज समूह पराजित हो। ज्ञातृवंश के हे कुल दीपक!, ज्ञातापन चेतनता में जो है वह प्रतिभासित होता, जो ना दिखता ना उसमें ||26|| –o– चेतन की गुण-पर्यायों में, तुम विशुद्धि युत होकर के आतम में आतम को पाकर, सब विभाव को तज कर के। निज शरीर को भी हे जिनवर!, वैभाविक ही देख रहे दूजों को वह ही तन देखो!, सम्यगदर्शन हेतु लहे ||27|| –o– तीन लोक में प्रभुता तेरी, तीन छत्र कह देते हैं मद घमण्ड से रहित हुए जो, कैसे कुछ कह सकते हैं। महा पराक्रम धारी सज्जन, इसी रीति से रहते हैं इसीलिए तो वीर जितेन्द्रिय, भगवन तुमको कहते हैं ||28|| –o– देखा जाता है लोभी जन, सिंहासन पर बैठन को करें उपाय सैकड़ों जग में, मन में लोभ की ऐंठन हो। सिंहासन का लाभ हुआ पर, आप चार अंगुल ऊपर कहो आप सा निर्लोभी क्या, और कहीं हो इस भूपर ||29|| –o– ऊपर जाकर बार-बार, फिर, फिर नीचे आते चामर मायावी जन कुटिल मना ज्यों, मानो वक्रवृत्ति रखकर। चमरों से शोभित प्रभु तन ये, सबसे मानो कहता है अन्य किसी का हृदय यहाँ पे, बिन माया ना रहता है ||30|| –o– क्रोध विभाव भाव वाले जो, भव्य जीव संसृति में हैं चेतन होकर के भी उनके, मुख पर तेज नहीं कुछ है। वीर प्रभु तव मुख मण्डल का, तेज बताता भामण्डल भव्य जनों के सप्त भवों की, गाथा गाता है प्रतिपल ||31|| –o– तीन लोक के हो ईश्वर तुम, तुम जिनेश तुम वीर विभू हास्य नहीं है रती नहीं है, तव चेतन में अहो प्रभू। फिर भी दिव्यध्वनि को सुनकर, भव्य जीव रति भाव धरें तत्त्व ज्ञान पी-पीकर मानो, हो प्रसन्न मन हास्य करें ||32|| –o– नाना विध वैडूर्य मणी की, हरित मणिमयी शाखायें तव समीपता से ही तज दी, अरति शोक की बाधायें। मानो इसीलिए उस तरु का नाम अशोक कहा जाता क्या आश्चर्य आप भक्ति से, यदि मनुष्य शोभा पाता ||33|| –o– अरे-अरे ओ भविजन क्यों तुम, क्यों इतने भयभीत हुए आत्मग्लानि से आत्मघात को, करने क्यों तैयार हुए। अभय प्रदायी चरण कमल को, प्राप्त करो अरु अभय रहो देव दुन्दुभी बजती-बजती, यही कह रही वीर प्रभो ||34|| –o– पुष्प रूप में खिले जीव सब, भाव नपुंसक वेद धरें तभी कभी नर से हर्षित हों, नारी संग भी हर्ष धरें। देवेन्द्रों की पुष्प वृष्टि जो, प्रभु सम्मुख नित गिरती है तीन वेद से सहित काम यह, गिरता है यह कहती है ||35|| –o– पुण्य प्रकृति तीर्थंकर से ही, भूमि रत्नमय स्वयं हुई भवनवासि देवों के द्वारा, स्वच्छ दिख रही साफ हुई। पुष्प फलों से भरी दिख रही, धान्यादिक से पूर्ण तथा तीर्थंकर की गमन देखकर, भूनारी यह हँसे यथा ||36|| –o– जिधर दिशा में गमन आपका, उसी दिशा में वायु बहे अति सुगन्धमय पवन सूंघकर, अचरज करता विश्व रहे। मन्द-मन्द अति जल वर्षा में, भी सुगन्ध सी आती है वायु कुमार देव से सेवा, इंद्राज्ञा करवाती है ||37|| –o– देवों द्वारा पद विहार में, नभ में कमल रचे जाते वही कमल फिर स्वर्णमयी हों, अरु सुगन्ध से भर जाते। आप चरण के न्यास मात्र से, कुसुम इस तरह होते हैं अद्भुत क्या यदि आप ध्यान से, मनः कमल मम खिलते हैं ||38|| –o– आप मुख कमल से हे भगवन! दिव्य ध्वनि जो खिरती है मागध जाति देव से आधी, वही दूर तक जाती है। इसीलिए वह अर्ध मागधी, कहलाती सुखकर भाती तथा परस्पर में मैत्री भी, जीवों में देखी जाती ||39|| –o– अरु विहार के समय गगन भी, निर्मल भाव यहाँ धरता दशों दिशायें धूलि बिना ही, नभ चहुँ ओर सदा करता। सभी ऋतू के पुष्प फलों से, वृक्ष लधे इक संग दिखते आओ-आओ इधर आप सब, देव बुलावा भी करते ||40|| –o– नहीं कोई आशीष वचन हैं, हँसे देख कर बात नहीं फिर भी तीर्थ प्रवर्तन होता, तीन जगत के नाथ यही। देखो-देखो यही दिखाने, धर्म चक्र आगे चलता अति प्रकाश चहुँ ओर फैलता, सभी दिशा जगमग करता ||41|| –o– मेरा चित्त आप में हे प्रभु! लीन हुआ क्या पता नहीं या फिर आप रूप की आभा, मन में आती पता नहीं। कैसा क्या यह घटित हो रहा, नहीं पता कुछ मुझको देव! आम गुठलियों को क्या गिनना रस चखने की इच्छा एव ||42|| –o– भक्ति वही जो काम क्रोध की, अग्नि बुझाने वर्षा हो मुक्ति वही जो संस्तुति करते, स्वयं आ रही हर्षित हो। आप गुणों की पूर्ण प्राप्ति में, तुष्ट करे जो शक्ति वही आप चेतना की आभा का, अनुभव करता ज्ञान वही ||43|| –o– मैं राजा के निकट रह रहा, यही सोचकर नौकर भी अपना मस्तक ऊँचा करके, गर्व धारकर चले तभी। तीन लोक के नाथ आपके, चरण कमल भक्ती वाला भक्त यहाँ निश्चिन्त बना यदि, क्या विस्मय प्रभु रखवाला ||44|| –o– सत्य कहा है आप वीर ने, मुनि का एक अहिंसा धर्म भीतर बाहर संयम पाकर, आप बढ़ाये उसका मर्म। उसी धर्म से अन्तरंग में, केवलज्ञान प्रकाश हुआ यज्ञों की हिंसा रुक जाना, बाहर धर्म प्रभाव हुआ ||45|| –o– सुख गुण या ज्ञान गुणों की, किसी गुणों की भी पर्याय एक समय की कणी मात्र ही, तव गुण की मुझमे आ जाय। अपनी ही गुण-पर्यायों से, भीतर आप प्रकाशित हो फिर भी मुझ जैसा कैसे यूं, तृष्णा पीड़ित रहे अहो ||46|| –o– अति पवित्र जो चरण कमल हैं, वन्दनीय नित सदा रहे उनको चित में धारण करके, अपना मुख हम देख रहे। अति उल्लासित मम मन होता, किन्तु आप मुख दर्पण देख आप सरीखा साम्य हमारे, मुख पर नहीं देख कर खेद ||47|| –o– पहले आप द्रव्य संयम के, पथ पर खुद को चला दिए तभी भाव संयम की निधि भी, आप स्वयं ही प्राप्त किए। जो क्रम जाने विधि को जाने, क्या उल्लंघन कर सकता महापुरुष की यह स्वभाव है, सूरज सम पथ पर चलता ||48|| –o– होकर के सापेक्ष आप प्रभु, सबसे ही निरपेक्ष हुए कर्म बन्ध से बद्ध मुक्त से, मुक्ती में रत बद्ध हुए। होकर एक अनन्त भासते, इसमें कोई विरोध नहीं आतम अनुशासन से युत हो, जिनशासन से युक्त वहीं ||49|| –o– पहले नहीं आपको देखा, नहीं सुना है कभी कहीं नहीं छुआ है कभी आपको, जानी महिमा कभी नहीं। भक्ति सुरस से भरे हुये इस, मेरे मन में आप मुनीश नहीं हुए प्रत्यक्ष तथापि, मति में राग अधिक क्यों ईश ||50|| –o– तेरे वचन नीर को पीने, की इच्छा पी-पी कर भी तृप्त नहीं होता मेरा मन, पुनः देखना लख कर भी। दो ही मेरी मनो कामना, जब पूरण होंगी साक्षात् मुक्ति कथा भी मेरी पूरी, हो जाएगी मेरी बात ||51|| –o– कहा आपने जैसा जिनवर, मान उसे तप व्रत धरता भव्यजनों की भक्ति का वह, पुण्य मोक्ष साधन बनता। सुर सुख को जो चाह रहा हो, कर निदान यदि करता पुण्य वही बन्ध का कारण है नय, नहीं जानते जैनी पुण्य ||52|| –o– हे जिन! भक्ति आपकी नित ही, सम्यग्दर्शन कही गई वही ज्ञान है वही चरित है, यह व्यवहारी बुद्धि रही। रख अभेद बुद्धि से जिन में, तब तक यह व्यवहार करो मुक्ति वधू की रमण आत्म सुख, जब तक ना तुम प्राप्त करो ||53|| –o– मोहित करते आप रूप से, सभी जनों को हे निर्मोह! सुन कर वचन और सुनने का, लोभ बढ़ाते हे निर्लोभ!। फिर भी श्रेष्ठ पुरुष हैं कहते, श्रेष्ठ पुरुष केवल हैं आप दोष गुणों के लिए हरे ज्यों, निशा चन्द्रमा से संताप ||54|| –o– तुमको देता हूँ यह कहता, तब कोई कुछ देता है किन्तु आप दें गुप्त रूप से, मौन धार यह देखा है। ज्यों रवि सबका हित करता है, बिन इच्छा के बन्धु बना उसी तरह भव्यों के हित में, तुम सम दाता कोई ना ||55|| –o– फिर भी यदि तुम इच्छा करते, देने की मुझको कुछ भी दे ही देना आप प्रभू जी, जो मेरे मन में कुछ भी। दाता तुम सम और नहीं है, और नहीं याचक मुझ सा चाह नहीं कुछ तुमसे चाहूँ, तुमको या बनना तुम सा ||56|| –o– योगों को संकोचित करके, इस विधि चौदस की तिथि को चौथे शुक्ल ध्यान को ध्याकर, आप विमुक्त किए खुद को। पावापुर के पद्म सरोवर, पर संस्थित प्रभु होकर के आप महा निर्वाण प्राप्त कर, ठहरे लोक शिखर जा के ||57|| –o– अष्ट कर्म रिपु बाधक नाशक, हे प्रभु तुमको नमन करूँ स्वर्ग मोक्ष सुख के हो दायक, हे प्रभु तुमको नमन करूँ। आप कीर्ति गुण नायक जग में, हे प्रभु तुमको नमन करूँ अन्तराय विघ्नों के वारक, हे प्रभु तुमको नमन करूँ ||58|| –o– मन से सहित सकल इन्द्रिय के, तुम ही एक विजेता हो जो गुण चाहें ऐसे मुनि के, एक मात्र तुम नेता हो। घनी भूत जो कर्म शैल थे, उनको तुमने तोड़ दिया सकल चराचर के ज्ञाता हो, निज में निज को जोड़ लिया ||59|| –o– सिद्धगति के भूषण तुम हो, काम रहित हो तुम हो वीर हे अन्तिम जिन तीर्थंकर प्रभु, तुम प्रमाण मम हर लो पीर। सभी दुखों के नाशक तुमको, देव हमारे तुम्हें नमन गणधर और मुनीश्वर नमते, हे परमेश्वर तुम्हें नमन ||60|| –o– आप तीर्थ के पुण्य नीर में, डूब डूब कर शुद्ध हुए भव्य हुए जितने भी पहले, धो कलि पाप विशुद्ध हुए। नाना नय उपनय अरु जिसमें, सप्त भंग की लहरें हों ऐसे तीरथ में डुबकी हम, लेने में क्यों वंचित हों? ||61|| –o– बाल्य अवस्था में भी पालक, से प्रतिभासित होते आप भर यौवन में भी मदमाते, काम सुभट को जीते आप। पुण्यवान जो खड़े हुए हैं, संसृति सागर के तट पर उन्हें सिद्धि में पहुँचाते थे, नमन आप को कर शिर धर ||62|| –o– तीन लोक में उत्तम तुम हो, पूर्ण जगत में एक शरण भव तरने को इक जहाज हो, श्रेष्ठ तुम्ही हो करूँ वरण। चिन्तन में भी ध्यान समय भी, और कथा के करने में तुमको याद करूँ मैं प्रणमूँ, चर्चा करूँ सदा ही मैं ||63|| –o– भाव भक्ति से इस प्रकार जो, वीर प्रभू का यह संस्तव हृदय कमल में धार आपको, करता सुनता तव वैभव। विघ्नों को वह नष्ट करे अरु, इष्ट कार्य में रहे सफल हर क्षण बढ़ते ज्ञान सुखों का, पाओ तुम ‘प्रणम्य’ शिव फल ||64|| –o–
  2. हम कर रहें हैं एक साथ अभ्यास । जैन धर्म की आवश्यक क्रियाओं का नव वर्ष पर प्रतिदिन करने का लेंगे संकलप । अधिक जानकारी के लिए यह लिंक देखें https://jainsamaj.vidyasagar.guru/forums/topic/1650-6-daily-essential-activities/ प्रत्याख्यान मे आप ने क्या नियम लिया - कमेन्ट मे बता सकते हैं
  3. "बाहुबली की अतिशयकारी, प्रतिमा देखो बड़ी निराली। किसने कब प्रतिमा बनवाई, दक्षिण प्रांत में है पधराई।।" वेबसाईट पर लॉगिन कर उत्तर दे पाएंगे : login or Register एक ही बार उत्तर दें : अपना फोन नंबर उत्तर के साथ कभी न लिखें xxxx ( नहीं लिखें ) अपना फोन नंबर, स्थान इत्यादि अपनी प्रोफाइल पर अपडेट करें आपके उत्तर किसी को भी नहीं दिखेंगे : सबके उत्तर Hide रहेंगे अपने परिवार के सभी सदस्यों को भाग दिलाएँ : iसभी को उत्तर याद हो जाएँ आपका स्वाध्याय ही आपका उपहार हैं Follow Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R
  4. आज आपने क्या *प्रत्याख्यान का नियम* लिया - कमेन्ट कर अवगत करा सकते हैं प्रतिदिन आए और अपना नियम लिख के जाएँ जो भी नियम लें उनको लाइक कर अनुमोदना जरूर करें
  5. 6 आवश्यक क्रियाएँ समता भाव सामायिक का नियम 🧘🏻‍♀️ 24 भगवान की स्तुति का नियम 🙏🏻 किसी एक तीर्थंकर भगवान की वंदना का नियम 🙏🏻 प्रतिक्रमण का नियम प्रत्याख्यान का नियम 🤞🏻 कायोत्सर्ग का नियम 🙏🏻 प्रतिदिन नियम लेने के लिए whatsapp चैनल को फॉलो करें https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R सामायिक का नियम 🧘🏻‍♀️ 1. सामायिक की विधि सामान्य श्रावक के लिए आचार्य श्री जी के हाइकु सामायिक में कुछ न करने की स्थिति होती है। सामायिक में. करना कुछ नहीं शांत बैठना | 2. 24 भगवान की स्तुति का नियम 🙏🏻 चौबीस तीर्थंकर वंदन https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/stuti-path/choubees-tirthankar-vandan/ दोहा स्तुति शतक https://vidyasagar.guru/hindi-kavya/hindi-shatak/doha-stuti-shatak/ 3. किसी एक तीर्थंकर भगवान की वंदना का नियम 🙏🏻 4. प्रतिक्रमण 5. प्रत्याख्यान का नियम कोई सा भी एक नियम ले सकते हैं : जैसे एक घंटे मोबाईल का त्याग : आज मीठे का त्याग : काजू नहीं खाने का नियम इत्यादि 6. कायोत्सर्ग (Kayotsarg) अर्थात् काया का उत्सर्ग (Leave Soul Aside) https://vidyasagar.guru/forums/topic/489-vidyasagar-guru/ प्रतिदिन नियम लेने के लिए whatsapp चैनल को फॉलो करें https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R विशेष इस पोस्ट मे अभी सुधार होगा आपको यह 6 क्रियाएं कर कैसा लग रहा हैं - कमेन्ट कर अवगत जरूर कराएँ
  6. "चेतना जिसमें पाई जाती, जीव की संज्ञा वस्तु पाती। भेद जीव के हैं बतलाओ, भेद बताकर इनाम पाओ।" वेबसाईट पर लॉगिन कर उत्तर दे पाएंगे : login or Register एक ही बार उत्तर दें : अपना फोन नंबर उत्तर के साथ कभी न लिखें xxxx ( नहीं लिखें ) अपना फोन नंबर, स्थान इत्यादि अपनी प्रोफाइल पर अपडेट करें आपके उत्तर किसी को भी नहीं दिखेंगे : सबके उत्तर Hide रहेंगे अपने परिवार के सभी सदस्यों को भाग दिलाएँ : iसभी को उत्तर याद हो जाएँ आपका स्वाध्याय ही आपका उपहार हैं Follow Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R
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  7. "कुष्ट रोग क्षण में है भागा, भाग्य सितारा नृप का जागा। धन्य धन्य मुनि उनकी रचना, नाम कहो जग में ना फँसना॥" वेबसाईट पर लॉगिन कर उत्तर दे पाएंगे : login or Register एक ही बार उत्तर दें : अपना फोन नंबर उत्तर के साथ कभी न लिखें xxxx ( नहीं लिखें ) अपना फोन नंबर, स्थान इत्यादि अपनी प्रोफाइल पर अपडेट करें आपके उत्तर किसी को भी नहीं दिखेंगे : सबके उत्तर Hide रहेंगे अपने परिवार के सभी सदस्यों को भाग दिलाएँ : iसभी को उत्तर याद हो जाएँ आपका स्वाध्याय ही आपका उपहार हैं Follow Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R
  8. हमारा दिमाग़ हमेशा ख़ुशी की तलाश में रहता है, जिसे हम अक्सर सफलता, आत्म-विकास या आध्यात्मिक शांति से जोड़ते हैं। लेकिन जब ज़िंदगी में तनाव होता है या अकेलापन महसूस होता है, तो हमारा दिमाग़ तुरंत सुख पाने के लिए मिठाइयाँ और चॉकलेट जैसी चीज़ों की तरफ़ खिंचता है। ये चीज़ें डोपामिन (dopamine) नामक "फील-गुड" हार्मोन रिलीज़ करती हैं। लेकिन यह सुख केवल कुछ देर का होता है, और बार-बार ऐसी चीज़ों का सहारा लेने से हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है, जैसे वजन बढ़ना, थकान और मानसिक तनाव। असल ख़ुशी से cravings कम होती हैं और सेहत भी बेहतर रहती है। और यह असली ख़ुशी हमें रिश्तों से मिलती है। गहरे और अच्छे रिश्ते हमारे मन को ऐसी शांति और संतोष देते हैं, जो किसी भी मिठाई से ज़्यादा टिकाऊ होता है। इस दिवाली रिश्तों को दें प्राथमिकता दिवाली पर केवल उपहारों और मिठाइयों तक सीमित न रहें—इस बार अपने रिश्तों को सँवारने पर ध्यान दें। कई बार हम दूसरों की कमियाँ निकालते हैं, जिससे वो हमसे दूर हो जाते हैं। इसके बजाय बिना किसी काम या मतलब के उनसे बात करें। छोटे-छोटे पल और अच्छी बातें रिश्तों में नई ऊर्जा भर सकते हैं। यहाँ कुछ आसान और व्यावहारिक सुझाव हैं, जिनसे आप इस दिवाली पर अपने रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं—WhatsApp, Facebook, LinkedIn और अपने आस-पास के लोगों से जुड़कर: बिना मतलब की बातचीत शुरू करें: WhatsApp या LinkedIn पर किसी से बात करें—बिना किसी काम के। बस उनका हालचाल पूछें और जानें कि वो कैसे हैं। हो सकता है आपकी बात से उनका दिन बन जाए या आप उनकी किसी ज़रूरत में मदद कर पाएं। जहाँ हो सके, मदद करें: अपने सोशल नेटवर्क—Facebook, WhatsApp या LinkedIn—में देखें कि कौन किसी मौके या मदद की तलाश में है। आप किसी को जॉब से जोड़ सकते हैं, उनकी स्किल endorse कर सकते हैं, recommendation लिख सकते हैं, या उन्हें सही व्यक्ति से मिला सकते हैं। तारीफ और सराहना करें: किसी ऐसे व्यक्ति से जुड़ें जिससे आप लंबे समय से बात नहीं कर पाए हैं। उनकी तारीफ़ करें या बस इतना कहें कि वे अच्छा काम कर रहे हैं। कभी-कभी आपकी छोटी-सी सराहना भी बहुत मायने रखती है। दूसरों की सफलता को बढ़ावा दें: Facebook या LinkedIn पर किसी की सफलता का जश्न मनाएँ। उनकी पोस्ट को शेयर करें, अच्छे comments दें, या किसी पोस्ट में टैग करके उनकी मेहनत की सराहना करें। यह न सिर्फ़ उनका हौसला बढ़ाएगा, बल्कि आपके रिश्तों को भी मजबूत बनाएगा। सकारात्मक बातचीत करें: WhatsApp ग्रुप या सोशल मीडिया पर चर्चा के दौरान नेगेटिव बातें करने से बचें। दयालुता और समझदारी से बात करें। आपकी सकारात्मकता रिश्तों को बेहतर बनाएगी और नए अवसर पैदा करेगी। पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से फिर से जुड़ें: इस दिवाली पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से फिर से बात करने का बहाना बनाएँ। बस एक “काफी समय हो गया, आप कैसे हैं?” का मैसेज भी रिश्ते में नई जान डाल सकता है। आपके छोटे प्रयास किसी की सेहत सुधार सकते हैं याद रखें, आपकी छोटी-छोटी कोशिशें भी किसी के जीवन पर बड़ा असर डाल सकती हैं। किसी से प्यारे शब्द कहना, उनकी मदद करना, या बस उनकी बात सुन लेना भी उनकी मानसिक सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है। जब हम अपने रिश्तों को संवारते हैं, तो हम न केवल दूसरों को खुश करते हैं बल्कि खुद भी सुकून और संतोष महसूस करते हैं। मिठाइयों से आगे बढ़ें, रिश्तों में मिठास घोलें इस दिवाली, मिठाइयों और गिफ्ट्स से बढ़कर रिश्तों को सँवारें। रिश्तों और अच्छी बातचीत से मिलने वाली ख़ुशी किसी भी मिठाई से ज़्यादा लंबी चलती है। जब हम अपने रिश्तों में मिठास लाते हैं, तो न सिर्फ़ दूसरों बल्कि अपनी सेहत को भी बेहतर बनाते हैं। आप सभी को प्रेम, खुशी, सेहत और मजबूत रिश्तों से भरी दिवाली की ढेरों शुभकामनाएँ! 🎇 इस दिवाली, इस संदेश को WhatsApp, Facebook, LinkedIn और अपने आसपास के लोगों के साथ साझा करें। आइए, इस बार ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों जगहों पर खुशियाँ फैलाएँ और मजबूत रिश्ते बनाएँ। #Diwali2024 #FestivalOfLights #RelationshipsMatter #MentalHealthMatters #WhatsAppConnections #FacebookRelationships #LinkedInConnections #FamilyFirst
  9. "एक वर्ष में बारह आते, अलग-अलग वे गीत हैं गाते। बारह माह के नाम बताओ, हिन्दी के तुम भूल न जाओ।।" वेबसाईट पर लॉगिन कर उत्तर दे पाएंगे : login or Register एक ही बार उत्तर दें : अपना फोन नंबर उत्तर के साथ कभी न लिखें xxxx ( नहीं लिखें ) अपना फोन नंबर, स्थान इत्यादि अपनी प्रोफाइल पर अपडेट करें आपके उत्तर किसी को भी नहीं दिखेंगे : सबके उत्तर Hide रहेंगे अपने परिवार के सभी सदस्यों को भाग दिलाएँ : iसभी को उत्तर याद हो जाएँ आपका स्वाध्याय ही आपका उपहार हैं Follow Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R
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  10. जो हैं उसी की जानकारी हैं जो नही उसकी जानकारी नहीं आपका स्वाध्याय आपका सबसे बड़ा पुरस्कार हैं प्रत्येक व्यक्ति को यह पुरस्कार मिलेगा
  11. जय जिनेन्द्र! आपके लिए विशेष प्रतियोगिता "रंगों को समझें, विचारों को जानें" जैन पाठशाला प्रतियोगिता लेकर आए हैं। इस बार आप स्वाध्याय करके उत्तर दें और साथ ही प्रचार करके भी उपहार जीतने का अवसर पाएं! प्रतियोगिता लिंक https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdRFQ8vnEwB-UD2_9R7hBC2FYzJvuhm1YslHk7Dm_GDEzQ4-g/viewform?usp=pp_url&entry.1612770718=8769567080 उत्तर प्राप्त सूची https://docs.google.com/spreadsheets/d/1W8s-MJ1mqLyvZbl14z4zvw2oLT7FDd0t1HBoxH0cUHg/edit?usp=sharing कैसे करें प्रचार और रेफरल लिंक जनरेट: आप फॉर्म लिंक के अंत में अपना मोबाइल नंबर डालकर अपना रेफरल नंबर ऑटो-फिल कर सकते हैं। जब आप फॉर्म लिंक में अपना नंबर डालकर इसे भेजेंगे, तो फॉर्म पर आपके रेफरेंस का नंबर अपने आप भरा जाएगा। यह एक शानदार अवसर है, इसलिए जल्द से जल्द अपने परिचितों को भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित करें और उपहार जीतने का मौका पाएं! लिंक के अंत में entry.1612770718=8769567080 वह हिस्सा है जहां "किसने रेफर किया?" फ़ील्ड पहले से ही आपके नंबर से भरा गया है। आप इस 8769567080 को किसी और नंबर (या अपना नंबर) से बदलकर उस नंबर को रेफरल फ़ील्ड में ऑटोफिल कर सकते हैं। इस तरह, आप किसी भी नंबर के साथ फॉर्म लिंक को कस्टमाइज़ कर सकते हैं, और उस व्यक्ति के फॉर्म को खोलते ही आपका नंबर पहले से भरा हुआ होगा।
  12. आरम्भी, उधोगी, विरोधी, संकल्पी

  13. हिंसा पाप है बड़ा कहाता, दुर्गतियों में वो ले जाता। चार भेद हैं कौन बताए, त्यागी बन कर सुख पाए।। वेबसाईट पर लॉगिन कर उत्तर दे पाएंगे : login or Register एक ही बार उत्तर दें : अपना फोन नंबर उत्तर के साथ कभी न लिखें xxxx ( नहीं लिखें ) अपना फोन नंबर, स्थान इत्यादि अपनी प्रोफाइल पर अपडेट करें आपके उत्तर किसी को भी नहीं दिखेंगे : सबके उत्तर Hide रहेंगे अपने परिवार के सभी सदस्यों को भाग दिलाएँ : iसभी को उत्तर याद हो जाएँ आपका स्वाध्याय ही आपका उपहार हैं Follow Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va9SzGj8vd1I3uECQR2R
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