"वैयावृत्त धर्म और आचार्यश्री"
किन्ही मुनिराज के अस्वस्थ होने पर वैयावृत्त की बात तो सबको महत्व की दिखेगी, किन्तु श्रावक की प्रकृति भी बिगड़ने पर पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का ध्यान प्रवचन-वत्सलता के कारण विशेष रूप से जाता था। आचार्यश्री श्रेष्ट पुरुष होते हुए भी अपने को साधुओं में सबसे छोटा मानते थे।
एक बार १९४६ में कवलाना में ब्रम्हचारी फतेचंदजी परवार भूषण नागपुर वाले बहुत बीमार हो गए थे। उस समय आचार्य महराज उनके पास आकर बोले, "ब्रम्हचारी ! घबराना मत, अगर यहाँ श्रावक लोग तुम्हारी वैयावृत्त में प्रमाद करेंगे, तो हम तुम्हारी सम्हाल करेंगे।"
जब लेखक की ब्रम्हचारीजी से कवलाना में भेट हुई, तब उन्होंने आचार्यश्री की सांत्वना और वात्सल्य की बात कही थी। उससे ज्ञात हुआ कि महराज वात्सल्य गुण के भी भंडार थे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - वैशाख कृष्ण १०?
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