वैभवशाली दया के पात्र हैं - अमृत माँ जिनवाणी से - १०
? अमृत माँ जिनवाणी से -१० ?
"वैभवशाली दया पात्र हैं"
दीन और दुखी जीवो पर तो सबको दया आती है । सुखी प्राणी को देखकर किसके अंतःकरण में करुणा का भाव जागेगा ?
आचार्य शान्तिसागर महाराज की दिव्य दृष्टि में धनी और वैभव वाले भी उसी प्रकार करुणा व् दया के पात्र हैं, जिस प्रकार दीन, दुखी तथा विपत्तिग्रस्त दया के पात्र हैं। एक दिन महाराज कहने लगे, "हमको संपन्न और सुखी लोगों को देखकर बड़ी दया आती है।"
मैंने पुछा, "महाराज ! सुखी जीवो पर दया भाव का क्या कारण है?" महाराज ने कहा था- "ये लोग पुण्योदय से आज सुखी हैं, आज संपन्न हैं किन्तु विषयभोग में उन्मत्त बनकर आगामी कल्याण की बात जरा भी नहीं सोचते, जिससे आगामी जीवन भी सुखी हो।"
जब तक जीव संयम और त्याग की शरण नहीं लेगा, तब तक उसका भविष्य आनंदमय नहीं हो सकता । इसीलिए हम भक्तो को आग्रह पूर्वक असंयम की ज्वाला से निकालकर संयम के मार्ग पर लगाते हैं।
शान्तिसागर महाराज ने यह महत्त्व की बात कही थी, "हमने अपने बड़े भाई देवगोंडा को कुटुम्ब के जाल से निकालकर दिगम्बर मुनि बनाया। उसे वर्धमानसागर कहते हैं। छोटे भाई कमगौड़ा को ब्रम्हचर्य प्रतिमा दी उसे मुनि दीक्षा देते, किन्तु शीघ्र उसका मरण हो गया।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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