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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

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  1. कबै निरग्रंथ स्वरूप धरूंगा, तप करके मुक्ति वरूंगा॥ कब गृह वास आस सब छाडूं, कब वन में विचरूंगा बाह्याभ्यंतर त्याग परिग्रह, उभय लोक विचरूंगा ॥ होय एकाकी परम उदासी, पंचाचार धरूंगा कब स्थिर योग धरु पद्मासन, इन्द्रिय दमन करूंगा ॥ आतम ध्यान साजि दिल अपने, मोह अरि से लडूंगा त्याग उपाधि समाधि लगाकर, परिषह सहन करूंगा ॥ कब गुणस्थान श्रेणी पर चढ के करम कलंक हरूंगा आनन्दकंद चिदानन्द साहब, बिन तुमरे सुमरूंगा ॥ ऐसी लब्धि जबे मैं पाऊं, आप में आप तिरूंगा ’अमोलकचंद सुत हीराचंद’ कहै यह, चहुरि जग में ना भ्रमूंगा॥
  2. माँ जिनवाणी तेरो नाम, सारे जग में धन्य है, तेरी उतारे आरती माँ, तेरो नाम धन्य है। ज्ञान की ज्योति तू ही जलाती, भक्तों को भगवान तू ही बनाती, अमृत पिलाती, मार्ग दिखाती, तेरो नाम धन्य है ॥ माँ. अरिहन्त भासित जिनवाणी प्यारी, गणधर रची और मुनियों ने धारी, जीवन की नैया को तू तार दे माँ, तेरो नाम धन्य है ॥ माँ तेरे श्रवण से महिमा समाई, चैतन्य चैतन्य की ध्वनि आई, सन्तों के हृदय को, ईश्वर के गृह को तेरे गुंजाते छन्द हैं ॥माँ सुनने से संसार का रंग शिथिल हो, सुनने से ज्ञायक का मंगल मिलन हो, तुझको नमन है, तुझको नमन है, तेरो नाम धन्य है ॥ माँ
  3. जब एक रतन अनमोल है तो, रत्नाकर फ़िर कैसा होगा, जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो, वो कितना सुन्दर होगा, इसके दीवाने हैं ज्ञानी, हर धुन में वही सवार रहे, बस एक लक्ष्य अरु एक प्रक्ष्य, हर श्वांस उसी के लिये रहे जिसको पाकर सब कुछ पाया, उससे भी बढकर क्या होगा, जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो जो वाणी के भी पार कहा, मन भी थक कर के रह जाये, इन्द्रिय गोचर तो दूर अतीन्द्रिय के भी कल्प में ना आये अनुभव गोचर कुछ नाम नहीं निर्नाम भी क्या अद्भुत होगा, जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो सप्त भंग पढे नौ पूर्व रटे, पर उस का स्वाद नहीं आये, उनसे ग्रसीते अनपढ भी ले स्वाद सफ़ल होकर जाये, जड पुद्गल तो अनजान स्वयं, वो ज्ञान तुझे कैसे देगा, जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो जिसकी महिमा प्रभु की वाणी, जाती मन मोह को लहराये, जो साम्य गुणॊं के रत्नाकर सब हे परमेश्वर फ़रमाये तू माने या ना भी माने, परमात्मपना सम ना होगा, जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो
  4. पहीली माझी आरती कैलास गिरीला | आदिनाथ भगवंताला करूया आरती | दूसरी माझी आरती सम्मेद गिरीला | बीसनाथ भगवंताला करूया आरती | तिसरी माझी आरती चम्पापुरीला | वासुपुज्या भगवंताला करूया आरती | चौथी माझी आरती गीरणार गिरीला | नेमिनाथ भगवंताला करूया आरती | पांचवी माझी आरती पावपुरीला | महावीर भगवंताला करूया आरती | सहावी माझी आरती मांगीतुंगीला | रामचंद्र भगवंताला करूया आरती | सातवी माझी आरती श्रमणबेल गोलाला | बाहुबली भगवंताला करूया आरती | आठवी माझी आरती लासुर नगरील | पार्श्वनाथक भगवंताला करूया आरती | नेमिनाथ भगवंताला करूया आरती |
  5. अरे जिया जग धोखे की टाटी॥ झूठा उद्यम लोक करत है, जामें निशदिन घाटी। जानबूझ कर अंध बने हैं, आंखन बांधी पाटी॥ निकस जायें प्राण छिनक में, पडी रहेगी माटी। ’दौलतराम’ समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी॥
  6. ये शाश्वत सुख का प्याला, कोई पियेगा अनुभव वाला ॥ ध्रुव अखंड है, आनंद कंद है, शुद्ध बुद्ध चैतन्य पिण्ड है ध्रुव की फ़ेरो माला ॥ कोई... मंगलमय है मंगलकारी, सत चित आनंद का है धारी ध्रुव का हो उजियारा ॥ कोई... ध्रुव का रस तो ज्ञानी पावे, ज्न्म मरण का दुःख मिटावे ध्रुव का धाम निराला ॥ कोई... ध्रुव की धुनी मुनी रमावे, ध्रुव के आनंद में रम जावे ध्रुव का स्वाद निराला ॥ कोई... ध्रुव के रस में हम रम जावें, अपूर्व अवसर कब यह आवे, ध्रुव का हो मतवाला ॥ कोई....
  7. तू जाग रे चेतन प्राणी कर आतम की अगवानी जो आतम को लखते हैं उनकी है अमर कहानी॥ है ज्ञान मात्र निज ज्ञायक, जिसमें है ज्ञेय झलकते है झलकन भी ज्ञायक है, इसमें नहीं ज्ञेय महकते मै दर्शन ज्ञान स्वरूपी मेरी चैतन्य निशानी ॥ अब समकित सावन आया, चिन्मय आनंद बरसता भीगा है कण कण मेरा, हो गई अखंड सरसता समकित की मधु चितवन झलकी है मुक्ति निशानी ॥ ये शाश्वत भव्य जिनालय है शांति बरसती इनमें मानों आया सिद्धालय मेरी बस्ती हो उसमें मैं हूं शिवपुर का वासी भव भव खतम कहानी ॥
  8. ऊँ जय मुनिसुव्रतस्वामी, प्रभु जय मुनिसुव्रतस्वामी । भक्ति भाव से प्रणमूं, जय अंतरयामी ।। ऊँ जय० राजगृही में जन्म लिया प्रभु, आनन्द भयो भारी । सुर नर मुनि गुण गाएँ, आरती कर थारी ।। ऊँ जय० पिता तिहारे, सुमित्र राजा, शामा के जाया । श्यामवर्ण मूरत तेरी, पैठण में अतिशय दर्शाया ।।ऊँ जय० जो ध्यावे सुख पावे, सब संकट दूर करें । मन वांछित फल पावे, जो प्रभु चरण धरें ।। ऊँ जय० जन्म मरण, दुख हरो प्रभु, सब पाप मिटे मेरे । ऐसी कृपा करो प्रभु, हम दास रहें तेरे ।। ऊँ जय० निजगुण ज्ञान का, दीपक ले आरती करुं थारी । सम्यग्ज्ञान दो सबको, जय त्रिभुवन के स्वामी ।। ऊँ जय०
  9. ज्ञाता दृष्टा राही हूं, अतुल सुखों का ग्राही हूं, बोलो मेरे संग, आनंदघन आनंदघन आनंदघन ॥ आत्मा में रमूंगा मैं क्षण क्षण में, चाहे मेरा ज्ञान जाने निज पर को, अपने को जाने बिना लूंगा नहीं दम, आगम की आगम बढाऊंगा कदम, सुख में दुख में, दुख में सुख में, एक राह पर चल ॥ धूप हो या गर्मी बरसात हो जहां, अनुभव की धारा बहाऊंगा वहां, विषयों का फ़िर नहीं होगा जनम, आगम की आगम बढाऊंगा कदम, सुख में दुख में, दुख में सुख में, एक राह पर चल ॥ गुण अनंत का स्वामी हूं मैं मुझमें ये रतन, गणधर भी हार गये कर वर्णन, अनुपम और अद्भुत है मेरा ये चमन, आगम की आगम बढाऊंगा कदम, सुख में दुख में, दुख में सुख में, एक राह पर चल ॥
  10. चरणों में आ पड़ा हूँ, हे द्वादशांग वाणी मस्तक झुका रहा हूँ, हे द्वादशांग वाणी ।।टेक ।। मिथ्यात्व को नशाया, निज तत्त्व को प्रकाशा आपा-पराया-भासा, हो भानु के समानी ।१। षट् द्रव्य को बताया, स्याद्वाद को जताया भवफन्द से छुड़ाया, सच्ची जिनेन्द्र वाणी ।२। रिपु चार मेरे मग में, जंजीर डाले पग में ठाड़े हैं मोक्ष-मग में, तकरार मोसों ठानी ।३। दे ज्ञान मुझको माता, इस जग से तोङूँ नाता होवे सुदर्शन साता, नहिं जग में तेरी सानी ।४।
  11. करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की ॥ टेक राग बिना सब जगजन तारे । द्वेष बिना सब कर्म विदारे । शील धुरंधर शिव तिय भोगी । मनवच कायन कहिये योगी । करौं० रत्नत्रय निधि परिग्रह हारी । ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी । करौं० लोक अलोक व्यापै निजमांहीं । सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं । करौं० पंचकल्याणकपूज्य विरागी । विमल दिगंबर अबंर त्यागी । करौं० गुनमनि भूषन भूषित स्वामी । जगत उदास जगंतर स्वामी । करौं० कहै कहां लौ तुम सबजानौं । द्यानत की अभिलाषा प्रमानौ । करौं०
  12. सजधज के जिस दिन मौत की शहजादी आयेगी, ना सोना काम आयेगा, ना चांदी आयेगी ॥ छोटा सा तू, कितने बडे अरमान हैं तेरे, मिट्टी का तू सोने के सब सामान हैं तेरे, मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समायेगी, ना सोना काम आयेगा, ना चांदी आयेगी ॥ कोठी वही बंगला वही बगिया रहे वही, पिंजरा वही, पंछी वही है बागवां वही, ये तन का चोला आत्मा जब छोड जायेगी, ना सोना काम आयेगा, ना चांदी आयेगी ॥ पर खोल के पंछी तू पिंजरा तोड के उड जा, माया-महल के सारे बंधन छोड के उड जा, धडकन में जिस दिन मौत तेरी गुनगुनायेगी, ना सोना काम आयेगा, ना चांदी आयेगी ॥
  13. महिमा है, अगम जिनागम की ॥टेक॥ जाहि सुनत जड़ भिन्न पिछानी, हम चिन्मूरति आतम की महिमा है ॥ रागादिक दु:ख कारन जानैं, त्याग बुद्धि दीनी भ्रम की महिमा है ।२। ज्ञान-ज्योति जागी उर अन्तर, रुचि बाढ़ी पुनि शम-दम की महिमा है ।३। कर्मबंध की भई निरजरा, कारण परम पराक्रम की महिमा है।४। भागचन्द शिव-लालच लाग्यो, पहुँच नहीं है जहँ जम की महिमा है ।५।
  14. सोते सोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी, सारी जिन्दगी तेरी प्यारी जिन्दगी, बोझा ढोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥ जनम लेत ही इस धरती पर तूने रुदन मचाया, आंखे भी न खुलने पाई, भूख भूख चिल्लाया रोते रोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥ खेलकूद में बचपन बीता, यौवन पा बौराया, धर्म कर्म का मर्म ना जाना, विषय भोग लपटाया भोगों भोगों में निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥ धीरे धीरे बढा बुढापा, डगमग डोले काया, सब के सब रोगों ने देखो डेरा खूब जमाया रोगों रोगों में निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥ जिसको तू अपना समझा था, वह दे बैठा धोखा, प्राण गये फ़िर जल जायेगा, ये माटी का खोका। खोका ढोने में निकल गयी, सारी जिन्दगी॥
  15. जिनवाणी माता दर्शन की बलिहारियाँ ।।टेक ।। प्रथम देव अरहन्त मनाऊँ, गणधरजी को ध्याऊँ । कुन्दकुन्द आचार्य हमारे, तिनको शीश नवाऊँ ।१। योनि लाख चौरासी माहीं, घोर महादु:ख पायो । ऐसी महिमा सुनकर माता, शरण तुम्हारी आयो ।२। जानै थाँको शरणो लीनों, अष्ट कर्म क्षय कीनो । जनम-मरण मिटा के माता, मोक्ष महापद दीनो ।३। ठाड़े श्रावक अरज करत हैं, हे जिनवाणी माता । द्वादशांग चौदह पूरव का, कर दो हमको ज्ञाता ।४।
  16. जय सन्मति देवा, प्रभु जय सन्मति देवा । वर्द्धमान महावीर वीर अति, जय संकट छेवा ॥ टेक सिद्धारथ नृप नन्द दुलारे, त्रिशला के जाये । कुण्डलपुर अवतार लिया, प्रभु सुर नर हर्षाये ॥ ऊँ जय० देव इन्द्र जन्माभिषेक कर, उर प्रमोद भरिया । रुप आपका लख नहिं पाये, सहस आंख धरिया ॥ ऊँ जय० जल में भिन्न कमल ज्यों रहिये, घर में बाल यती । राजपाट ऐश्वर्य छाँड सब, ममता मोह हती ॥ ऊँ जय० बारह वर्ष छद्मावस्था में, आतम ध्यान किया । घाति कर्म चकचूर, चूर प्रभु केवल ज्ञान लिया ॥ ऊँ जय० पावापुर के बीच सरोवर, आकर योग कसे । हने अघातिया कर्म शत्रु सब, शिवपुर जाय बसे ॥ ऊँ जय० भूमंडल के चांदनपुर में, मंदिर मध्य लसे । शान्त जिनेश्वर मूर्ति आपकी, दर्शन पाप नसे ॥ ऊँ जय० करुणासागर करुणा कीजे, आकर शरण गही । दीन दयाला जगप्रतिपाला, आनन्द भरण तुही ॥ ऊँ जय ०
  17. मोहे भावे न भैया थारो देश, रहूंगा मैं तो निज घर में ॥ मोहे न भावे यह महल अटारी, झूठी लागे मोहे दुनिया सारी मोहे भावे नगन सुभेष, रहूंगा मैं तो निज घर में ॥ हमें यहां अच्छा नहीं लगता, यहां हमारा कोई न दिखता मोहे लागे यहां परदेस, रहूंगा मैं तो निज घर में ॥ श्रद्धा ज्ञान चारित्र निवासा, अनंत गुण परिवार हमारा मैं तो जाऊंगा सुख के धाम, रहूंगा मैं तो निज घर में ॥ कब पाऊंगा निज में थिरता, मैं तो इसके लिये तरसता मैं तो धारूं दिगम्बर वेष, रहूंगा मैं तो निज घर में ॥
  18. जिनवाणी माता रत्नत्रय निधि दीजिये ।।टेक ।। मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चरण में, काल अनादि घूमे, सम्यग्दर्शन भयौ न तातैं, दु:ख पायो दिन दूने ।१। है अभिलाषा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण दे माता । हम पावैं निजस्वरूप आपनो,क्यों न बनैं गुणज्ञाता ।२। जीव अनन्तानन्त पठाये, स्वर्ग-मोक्ष में तूने । अब बारी है हम जीवन की, होवे कर्म विदूने ।३। भव्यजीव हैं पुत्र तुम्हारे, चहुँगति दु:ख से हारे । इनको जिनवर बना शीघ्र अब, दे दे गुण-गण सारे ।४। औगुण तो अनेक होत हैं, बालक में ही माता । पै अब तुम-सी माता पाई, क्यों न बने गुणज्ञाता ।५। क्षमा-क्षमा हो सभी हमारे दोष अनन्ते भव के । शिव का मार्ग बता दो माता,लेहु शरण में अबके ।६। जयवन्तो जिनवाणी जग में, मोक्षमार्ग प्रवर्तो । श्रावक `जयकुमार' बीनवे, पद दे अजर अमर तो ।७।
  19. ॐ जय महावीर प्रभो! स्वामी जय महावीर प्रभो । जग नायक सुखदायक, अति गंभीर प्रभो । ॐ जय ० कुण्डलपुर में जन्में त्रिशला के जाए, स्वामी त्रिशला के जाए ० पिता सिद्धार्थ राजा, सुर नर हर्षाए । ॐ जय ० दीनानाथ दयानिधि हो मंगलकारी, स्वामी हो मंगलकारी ० जगतहित संयम धारा, प्रभु पर उपकारी । ॐ जय ० पापाचार मिटाया, सत्पथ दिखलाया, स्वामी सत्पथ ० दया धर्म का झंडा, जग में लहराया । ॐ जय ० अर्जुनमाली, गौतम, श्री चन्दनबाला, स्वामी श्री चन्दन ० पार जगत से बेडा, इनका कर डाला । ॐ जय ० पावन नाम तुम्हारा, जग तारणहारा, स्वामी जग तारण ० निश दिन जो नर ध्यावे, कष्ट मिटे सारा । ॐ जय ० करूणासागर! तेरी महिमा है न्यारी, स्वामी महिमा है ० ज्ञान मुनि गुण गावे, चरणन बलिहारी । ॐ जय ०
  20. सुन रे जिया चिरकाल गया, तूने छोडा ना अब तक प्रमाद, जीवन थोडा रहा॥ जिनवाणी कहती है तेरी कथा, तूने भूल करी सही भारी व्यथा। अब कर ले स्वयं की पहचान, जीवन थोडा रहा॥ जीव तत्व है तू परम उपादेय, अजीव सभी हैं ज्ञान के ज्ञेय निज को निज पर को पर जान, जीवन थोडा रहा ॥ आस्रव बंध ये भाव विकारी, चेतन ने पाया दुख इनसे भारी सम्यक्त्व को ले पहिचान, जीवन थोडा रहा ॥ संवर निर्जरा शुद्ध भाव है, मोक्ष तत्व पूर्ण बंध अभाव है इनको ही तू हित रूप मान, जीवन थोडा रहा ॥
  21. हे जिनवाणी माता! तुमको लाखों प्रणाम,तुमको क्रोड़ों प्रणाम शिवसुखदानी माता! तु्मको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम तू वस्तु-स्वरूप बतावे, अरु सकल विरोध मिटावे । हे स्याद्वाद विख्याता! तुमको लाखों प्रणाम, तु्मको.. तू करे ज्ञान का मण्डन, मिथ्यात कुमारग खण्डन । हे तीन जगत की माता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको.. तू लोकालोक प्रकाशे, चर-अचर पदार्थ विकाशे । हे विश्वतत्त्व की ज्ञाता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको.. शुद्धातम तत्त्व दिखावे, रत्नत्रय पथ प्रकटावे । निज आनन्द अमृतदाता! तुमको लाखों प्रणाम,तुमको.. हे मात! कृपा अब कीजे, परभाव सकल हर लीजे । शिवराम सदा गुण गाता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको.
  22. ये शाश्वत सुख का प्याला, कोई पियेगा अनुभव वाला॥ ध्रुव अखंड है, आनंद कंद है, शुद्ध बुद्ध चैतन्य पिण्ड है ध्रुव की फ़ेरो माला, कोई....।१। मंगलमय है, मंगलकारी, सत चित आनंद का है धारी ध्रुव का हो उजियारा, कोई....।२। ध्रुव का रस तो ज्ञानी पावे, जन्म मरण का दुःख मिटावे ध्रुव का धाम निराला, कोई....।३। ध्रुव की धूनी मुनि रमावे, ध्रुव के आनंद में रम जावे ध्रुव का स्वाद निराला, कोई....।४। ध्रुव के रस में हम रम जावें, अपूर्व अवसर कब यह पावें ध्रुव का हो मतवाला, कोई....।५।
  23. सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी॥ काल अनादि की तपन बुझानी, निज निधि मिली अथाह जी सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी ॥ संशय भ्रम और विपर्यय नाशा, सम्यक बुद्धि उपजाय जी सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी ॥ नरभव सफ़ल भयो अब मेरो, बुधजन भेंटत पाय जी सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी ॥
  24. जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो । कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानन्द विभो ।। ऊँ जय महावीर प्रभो ।। सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी । बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी ।१। ऊँ जय म० प्रभो । आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी । माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ।२। ऊँ जय म० प्रभो । जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो । हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो ।३। ऊँ जय म० प्रभो । इह विधि चाँदनपुर में, अतिशय दरशायो । ग्वाल मनोरथ पुर्यो दूध गाय पायो ।४। ऊँ जय म० प्रभो । अमर चन्द को सपना, तुमने प्रभु दीना । मन्दिर तीन शिखर का निर्मित है कीना।५। ऊँ जय म० प्रभो । जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी । एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी ।६। ऊँ जय म० प्रभो । जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवे । होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावे ।७। ऊँ जय म० प्रभो । निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज्योति जरै । हरिप्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरै ।८। ऊँ जय म० प्रभो ।
  25. गाडी खडी रे खडी रे तैयार, चलो रे भाई शिवपुर को ॥ जो तू चाहे मोक्ष को, सुन रे मोही जीव। मिथ्यामत को छोड कर, जिनवाणी रस पीव ।१। जो जिन पूजै भाव धर, दान सुपात्रहि देय सो नर पावे परम पद, मुक्ति श्री फ़ल लेय ।२। जिनकी रुचि अति धर्म सों, साधर्मिन सौं प्रीत देव शास्त्र गुरु की सदा, उर में परम प्रतीत ।३। इस भव तरु का मूल इक, जनों मिथ्या भाव ताको कर निर्मूल अब, करिये मोक्ष उपाव ।४। दानों मे बस दान है, श्रेष्ठ ज्ञान ही दान जौं करता इस दान को, पाता केवलज्ञान ।५। जो जाने अरहंत गुण, द्रव्य और पर्याय सो जाने निज आत्मा, ताके मोह नशाय ।६। निज परिणति से जो करे, जड चेतन पहिचान बन जाता है एक दिन, समयसार भगवान ।७। तिन लोक का नाथ तू, क्यों बन रहा अनाथ रत्नत्रय निधि साध ले, क्यों न होय जगनाथ ।८।
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