करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की ॥ टेक
राग बिना सब जगजन तारे । द्वेष बिना सब कर्म विदारे ।
शील धुरंधर शिव तिय भोगी । मनवच कायन कहिये योगी । करौं०
रत्नत्रय निधि परिग्रह हारी । ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी । करौं०
लोक अलोक व्यापै निजमांहीं । सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं । करौं०
पंचकल्याणकपूज्य विरागी । विमल दिगंबर अबंर त्यागी । करौं०
गुनमनि भूषन भूषित स्वामी । जगत उदास जगंतर स्वामी । करौं०
कहै कहां लौ तुम सबजानौं । द्यानत की अभिलाषा प्रमानौ । करौं०