अरे जिया जग धोखे की टाटी॥
झूठा उद्यम लोक करत है, जामें निशदिन घाटी।
जानबूझ कर अंध बने हैं, आंखन बांधी पाटी॥
निकस जायें प्राण छिनक में, पडी रहेगी माटी।
’दौलतराम’ समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी॥
अरे जिया जग धोखे की टाटी॥
झूठा उद्यम लोक करत है, जामें निशदिन घाटी।
जानबूझ कर अंध बने हैं, आंखन बांधी पाटी॥
निकस जायें प्राण छिनक में, पडी रहेगी माटी।
’दौलतराम’ समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी॥