Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

कबै निरग्रंथ स्वरूप धरूंगा


admin

कबै निरग्रंथ स्वरूप धरूंगा, तप करके मुक्ति वरूंगा॥

 

कब गृह वास आस सब छाडूं, कब वन में विचरूंगा

बाह्याभ्यंतर त्याग परिग्रह, उभय लोक विचरूंगा ॥

 

होय एकाकी परम उदासी, पंचाचार धरूंगा

कब स्थिर योग धरु पद्मासन, इन्द्रिय दमन करूंगा ॥

 

आतम ध्यान साजि दिल अपने, मोह अरि से लडूंगा

त्याग उपाधि समाधि लगाकर, परिषह सहन करूंगा ॥

 

कब गुणस्थान श्रेणी पर चढ के करम कलंक हरूंगा

आनन्दकंद चिदानन्द साहब, बिन तुमरे सुमरूंगा ॥

 

ऐसी लब्धि जबे मैं पाऊं, आप में आप तिरूंगा

’अमोलकचंद सुत हीराचंद’ कहै यह, चहुरि जग में ना भ्रमूंगा॥

 



×
×
  • Create New...