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सोते सोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी


admin

सोते सोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी,

सारी जिन्दगी तेरी प्यारी जिन्दगी,

बोझा ढोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥

 

जनम लेत ही इस धरती पर तूने रुदन मचाया,

आंखे भी न खुलने पाई, भूख भूख चिल्लाया

रोते रोते ही निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥

 

खेलकूद में बचपन बीता, यौवन पा बौराया,

धर्म कर्म का मर्म ना जाना, विषय भोग लपटाया

भोगों भोगों में निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥

 

धीरे धीरे बढा बुढापा, डगमग डोले काया,

सब के सब रोगों ने देखो डेरा खूब जमाया

रोगों रोगों में निकल गयी, सारी जिन्दगी ॥

 

जिसको तू अपना समझा था, वह दे बैठा धोखा,

प्राण गये फ़िर जल जायेगा, ये माटी का खोका।

खोका ढोने में निकल गयी, सारी जिन्दगी॥

 



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