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अपभ्रंश भाषा का ऑनलाइन पाठ्यक्रम -

जय जिनेन्द्र 

मैं सारांश जैन, मुनि श्री प्रणम्य सागर जी से प्राकृत सीख, अपभ्रंश भाषा में अध्ययन रत हूँ। थोडा सा अपभ्रंश साहित्य पढने के बाद मुझे उस में बहुत रूचि हुई और एक भावना मन में आयी कि क्यों न अपभ्रंश सब पढ़ें और अपने जीवन को उन्नत बनाएं | इसमें मुझे मार्गदर्शन प्राप्त है श्री मति स्नेह लता जैन का जो अपभ्रंश साहित्यकला अकादमी में कार्यरत हैं और लेखिका हैं - अपभ्रंश अनुवाद कला जैसी अनेक पठनीय पुस्तकों की |

अतः हम कर रहे हैं 1 प्रयोग, जिसमे आवश्यक है, आप सब का सहयोग ।

यह एक मुहिम है, अपभ्रंश जैसी समृद्ध भाषा को घर - घर पहुंचाने की  

समयावधि अनुमानित- १ माह 

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पाठ 14 कारक

प्रथमा विभक्ति : कर्ता कारक १. कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। २. कर्मवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।  द्वितीया विभक्ति : कर्म कारक १. कर्तृवाच्य के कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। । २. द्विकर्मक क्रियाओं के योग में मुख्य कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। तथा गौण कर्म में अपादान, अधिकरण, सम्प्रदान, सम्बन्ध आदि विभक्तियों के होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है। ३. सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।

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पाठ 13 - स्वार्थिक प्रत्यय

स्वार्थिक प्रत्यय वे होते हैं, जो भावों की सटीक - सफल अभिव्यक्ति करने हेतु संज्ञा शब्दों में जोड़े जाते हैं। अपनी बात को छन्द में (गेयपूर्ण रूप में) कहने हेतु इन स्वार्थिक प्रत्ययों का लोक जीवन में सामान्यत: बहुलता से प्रयोग होता दिखाई देता है। जिन स्वार्थिक प्रत्ययों का काव्य में प्रयोग होता देखा गया है, वे इसप्रकार हैं - अ, अड, उल्ल, इय, क्क, एं, उ, इल्ल। इनमें अ, अड तथा उल्ल अधिकतर प्रयोग में आनेवाले स्वार्थिक प्रत्यय हैं। इय, क्क, एं, उ तथा इल्ल स्वार्थिक प्रत्ययों का प्रयोग काव्य में क

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पाठ - 12 - कृदंत

अकर्मक क्रिया से बने भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य व भाववाच्य के अन्तर्गत होता है तथा सकर्मक क्रिया से बने भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य के अन्तर्गत होता है। गत्यार्थक अनियमित भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य व कर्मवाच्य दोनों में किया जाता है।   अपभ्रंश साहित्य से प्राप्त अनियमित भूतकालिक कृदन्त (क) अकर्मक क्रिया से बने अनियमित भूतकालिक कृदन्त - मुअ मरा थिअ ठहरा

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पाठ 11 अव्यय एवं विशेषण

(क) स्थानवाची अव्यय वहाँ, उस तरफ तेत्यु, तहिं, तेत्तहे, तउ, तेत्तहि जहाँ, जिस तरफ जेत्थु, जहिं, जेत्तहे, जउ यहाँ, इस तरफ एत्यु, एत्थ, एत्तहे कहाँ केत्थु, केत्तहे, कहिं सब स्थानों पर सव्वेत्तहे दूसरे स्थान पर अण्णेत्तहे

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पाठ 10 - प्रेरणार्थक क्रिया

कल के अभ्यास के उत्तर देखें वीडियो में   जिस क्रिया से किसी अन्य से कार्य कराया जाये अथवा प्रेरणा दी जाये वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे – सुलाना, पढ़ाना, जगाना, दिखाना इत्यादि । प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए – क्रिया में आव प्रत्यय जोड़ा जाता है, अथवा उपांत्य में ‘अ’ प्रत्यय लगाया जाता है। ‘अ’ प्रत्यय के साथ नियम – यथा - सोना क्रिया का प्रेरणार्थक हुआ सुलाना – जो इस प्रकार बनेगा – सय – स+अ+य = साय ·     उपांत्य ‘अ’ हो तो प्रत्यय लगाने के बाद आ हो जाएगा। -

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पाठ – 9 - वाच्य

वाच्य   कल के अभ्यास के उत्तर देखें विडियो में - वाच्य -3- प्रकार के होते हैं – 1)कर्तृ वाच्य – जहां क्रिया के विधान का विषय करता हो, उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। इस प्रकार के वाक्यों में क्रिया की विभक्ति कर्ता के अनुसार चलेगी । जैसे – ·    राम पुस्तक पढ़ता है – रामो गंथु पढइ । ·    तुम भागे(धाव) – तुहुं धाविउ ·    वह भोजन(असण) करेगा - सो असणु खाहिइ ·    हम सब नगर से गाँव जाएँ  - अम्हे णयराहु  गामु गच्छामो।   2)भाव वाच्य - जहां भाव की प्रधानत

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 पाठ – 8 वाक्य रचना – चार काल – सात कारक

*अपभ्रंश में संप्रदान  कारक और संबंध  कारक में समान विभक्तियाँ हैं, अर्थात – चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति समान होती हैं  देव शब्द के रूप- कारक एकवचन बहुवचन प्रथमा देव, देवा, देवु, देवो देव, देवा द्वितीया देव, देवा, देवु देव, देवा तृतीया दे

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पाठ – 7 वाक्य रचना भूतकाल – प्रथमा- द्वितीया- तृतीया विभक्ति

पाठ – 7 वाक्य रचना भूतकाल – प्रथमा- द्वितीया- तृतीया विभक्ति     कल के अभ्यास के उत्तरों के लिए  देखें विडियो  त (वह) पुल्लिंग का द्वितीया एवं तृतीया विभक्ति में प्रयोग    एकवचन बहुवचन कर्म तं ता करण तेण/ तें / तेणं तहिं/ ताहिं/ तेहिं त (

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पाठ – 6 – वर्तमान – विधि एवं आज्ञा काल – भविष्यत्काल – द्वितीया – तृतीया विभक्ति

0   क्रिया  क्रिया के दो भेद होते हैं – सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया  अकर्मक क्रिया = वह क्रिया जिसमे कर्म नहीं होता, व क्रिया का प्रभाव कर्ता पर पड़ता है  उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।  जैसे – वह सोता है , मैं जाग रहा हूँ।  इत्यादि। सकर्मक क्रिया =  वह क्रिया जिसमे कर्म होता है , व क्रिया का प्रभाव कर्म  पर पड़ता है  उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।  यथा- मैंने भोजन किया , राम पुस्तक पढ़ता है, श्याम गाँव जाता है । अस् धातु से बनी क्रिया – अस् धातु से बनी क्र

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पाठ - 5 वाक्य रचना-विधि एवं आज्ञा और भविष्यत्काल - कर्ता कारक

कल के अभ्यास के उत्तर के लिए देखें विडियो  विधि एवं आज्ञा काल में प्रयुक्त होने वाले प्रत्यय   एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष मु मो मध्यम पुरुष इ, ए, 0 , उ, हि, सु ह अन्य पुरुष उ न्तु  जैसे-  मैं पढ़ूँ – हउं

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पाठ - 4 वाक्य रचना- वर्तमान काल- कर्ता कारक

वाक्य रचना- वर्तमान काल- कर्ता कारक     सर्वनाम (मैं) हउं ,(हम सब) अम्हे / अम्हइं, (तुम) तुहुं ,(तुम सब) तुम्हइं/ तुम्हे , वह  - सो (पुल्लिंग), सा (स्त्रीलिंग), वे सब-  ते (पुल्लिंग), ता (स्त्रीलिंग) संज्ञा (पुल्लिंग) - नरिंद = राजा, पुत्त = पुत्र, बालअ = बालक,  देव = देव , मेह = मेघ, बादल,  (स्त्रीलिंग)  ससा = बहिन, माया = माता, कमला = लक्ष्मी, जुवइ = युवती (नपुंसकलिङ्ग) णाण = ज्ञान, वेरग्ग = वैराग्य, सालि = चावल, कमल = कमल  क्रिया सोह

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पाठ - 3 शब्दावली

अपभ्रंश अनुवाद कला के पाठ - 2  से सीखें अपभ्रंश शब्द, तदोपरांत करें अभ्यास।        वर्ण विकार के कुछ सामान्य नियम (ये प्राकृत अपभ्रंश दोनों में मान्य हैं) प्रायः  जिन शब्दों में रेफ किसी अक्षर के ऊपर होती है उसमें र का लोप होकर जिस अक्षर पर रेफ लगी है उसका द्वित्व हो जाता है।  जैसे - धर्म = ध+र्+म = धम्म इसी प्रकार, कर्ण = कण्ण , चर्म = चम्म, मार्ग = मग्ग इसी तरह रेफ के अक्षर के नीचे होने पर होता है । जैसे – शक्र = श + क् + र = शक्क

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पाठ- 2 - अपभ्रंश भाषा की व्याकरणिक इकाइयाँ 

पाठ- 2      अपभ्रंश भाषा की व्याकरणिक इकाइयाँ  वर्ण  (Alphabets) :- 1. स्वर (vowels)  - जिन अक्षरों के उच्चारण के लिए अन्य वर्णों  की सहायता नहीं चाहिए होती |  अपभ्रंश में स्वर 8 होते हैं - अ , आ , इ , ई , उ , ऊ, ए , ओ  |      2. व्यंजन (consonants)- जिनके उच्चारण में  की सहायता लेनी पड़ती है |  क, ख, ग, घ च , छ, ज, झ  ट , ठ , ड , ढ , ण  त , थ , द , ध , न  प , फ, ब , भ , म  य , र, ल , व  स , ह   अनुस्वार-   बिंदी लगाईं जाती है वो अनुस्वार ह

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पाठ - 1 -अपभ्रंश का इतिहास

मंगलाचरण   जे जाया झाणग्गियएँ कम्म कलंक डहेवि।  णिच्च णिरंजण णाणमय ते परमप्प णवेवि।।1।। केवल दंसण णाणमय केवल सुक्ख सहाव  जिणवर वंदउं भत्तियए जेहिं पयासिय भाव ।।2।। जे परमप्पु णियंति मुणि परम समाहि धरेवि।  परमाणंदह कारणिण तिण्णि वि ते वि णवेवि।।3। - अवभंस विज्जा पट्ठकम्म पढेमि    भारतीय भाषाएँ एवं अपभ्रंश पं. नेमिचन्द्रजी शास्त्री के अनुसार भारतदेश की भाषा के विकास को तीन स्तरों पर देखा जा सकता है। प्रथम स्तर (ईसा पूर्व 2000 से ईसा पूर्

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अपभ्रंश भाषा क्यों पढ़ें?

अपभ्रंश क्यों पढ़ें ?   भाषा संस्कृति की रीढ़ होती है | किसी भी देश की संस्कृति को जानने के लिए उसकी भाषा में उपलब्ध साहित्य पढ़ना अत्यंत आवश्यक है | भाषा ही संस्कृति के लिए रक्षा सूत्र का काम करती है | एक भाषा के विलुप्त होने से उससे जुडी संस्कृति का ही नाश हो जाता है | अपभ्रंश भाषा मध्य कालीन भारत की लोक भाषा थी जिस में तत्कालीन समय का जीवंत चित्रण है| इतना ही नहीं अपभ्रंश ही आधुनिक हिंदी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का आधार है तो आधुनिक संस्कृति का सुदृढ़ आधार क्या था

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