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पाठ – 6 – वर्तमान – विधि एवं आज्ञा काल – भविष्यत्काल – द्वितीया – तृतीया विभक्ति


Saransh Jain

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क्रिया 

क्रिया के दो भेद होते हैं – सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया 

  1. अकर्मक क्रिया = वह क्रिया जिसमे कर्म नहीं होता, व क्रिया का प्रभाव कर्ता पर पड़ता है  उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।  जैसे – वह सोता है , मैं जाग रहा हूँ।  इत्यादि।
  2. सकर्मक क्रिया =  वह क्रिया जिसमे कर्म होता है , व क्रिया का प्रभाव कर्म  पर पड़ता है  उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।  यथा- मैंने भोजन किया , राम पुस्तक पढ़ता है, श्याम गाँव जाता है ।

अस् धातु से बनी क्रिया – अस् धातु से बनी क्रिया का प्रयोग है के लिए होता है। यह धातु 'अत्थि' के रूप में चलती है । जैसे= पुस्तक है= गंथ अत्थि।

पुल्लिंग

 

एकवचन

 बहुवचन

कर्म

देव, देवा, देवु

देव, देवा

करण

देवेण, देवें, देवेणं

देवहिं, देवाहिं, देवेहिं

 

एकवचन                    

बहुवचन

कर्म

हरी, हरि

हरी, हरि

करण

हरिएं, हरीएं, हरीं, हरिं, हरिण, हरीण, हरीणं, हरिणं

हरिहिं, हरीहिं

 

एकवचन    

बहुवचन

कर्म

साहू, साहु

साहू, साहु

करण

साहूएं, साहुएं, साहुं, साहूं, साहुण, साहूण, साहूणं, साहुणं

साहूहिं, साहुहिं

स्त्रीलिंग

 

        एकवचन       

बहुवचन

कर्म

कहा, कह

कहा, कह, कहाउ, कहउ, कहाओ, कहओ  

करण

कहाए, कहए 

कहाहिं, कहहिं

 

एकवचन

बहुवचन

कर्म

मई, मइ

मई,मइ, मईउ, मइउ, मईओ, मइओ

करण

मईए, मइए 

मईहिं, मइहिं

 

एकवचन    

बहुवचन

कर्म

धेणु, धेणू

धेणु, धेणू, धेणुउ, धेणूउ, धेणुओ, धेणूओ

करण

धेणुए, धेणूए         

धेणूहिं, धेणुहिं

नपुंसकलिंग

 

एकवचन           

बहुवचन

कर्म

कमल, कमला,कमलु

कमल, कमला, कमलाइं, कमलइं

करण

कमलें, कमलेण, कमलेणं 

कमलहिं, कमलाहिं, कमलेहिं 

 

एकवचन           

बहुवचन

कर्म

वारी, वारि

वारि, वारी, वारिइं, वारीइं

करण

वारीं, वारि, वारीण,, वारीएं, वारिएं, वारिण, वारीणं, वारिणं

वारिहिं, वारीहिं

 

एकवचन           

बहुवचन

कर्म

महू, महु

महू, महु, महुइं, महूइं 

करण

महुं, महूं, महुएं, महूएं, महूण, महुण, महूणं, महुणं

महुहिं, महूहिं

 

 

 

द्वितीया विभक्ति = कर्म कारक

1.   सकर्मक क्रिया में कर्तृवाच्य में कर्म के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे= राम पुस्तक पढ़ता है – रामु गंथु पढइ।

तृतीया विभक्ति = करण कारक

कर्ता के लिए अपने कार्य में जो अत्यंत सहायक होता है उसे- करण कारक कहते हैं।  जैसे = बीज से वृक्ष उगता है = बीएण रुक्ख उग्गइ। 

 

  1. तुम पुस्तक पढ़ो।  
  2. तुम भोजन (भोयण) खाओ (खा)।
  3. वह आँखों (अच्छि) से देखता (अवलोय) है। 
  4. कृष्ण(किण्ह) हाथी (हत्थि) से नगर(णयर) को जाएँ।
  5. आत्मा सिद्धालय (सिद्धालअ) जाता है।
  6. महावीर केवलज्ञान(केवलणाण) से जानेंगे।
  7. मैं पुस्तक से पाठ पढ़ूँ।
  8. हम गुरु जी को नमस्कार(पणम) करें।
  9. वे सब यशोधर चरित( जसहर चरिउ) पढ़ें।
  10. तुम सब उद्यान(उज्जाण) जाओ।

 

 

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