पाठ - 3 शब्दावली
अपभ्रंश अनुवाद कला के पाठ - 2 से सीखें अपभ्रंश शब्द, तदोपरांत करें अभ्यास।
वर्ण विकार के कुछ सामान्य नियम (ये प्राकृत अपभ्रंश दोनों में मान्य हैं)
- प्रायः जिन शब्दों में रेफ किसी अक्षर के ऊपर होती है उसमें र का लोप होकर जिस अक्षर पर रेफ लगी है उसका द्वित्व हो जाता है।
जैसे - धर्म = ध+र्+म = धम्म
इसी प्रकार,
कर्ण = कण्ण , चर्म = चम्म, मार्ग = मग्ग
- इसी तरह रेफ के अक्षर के नीचे होने पर होता है । जैसे –
शक्र = श + क् + र = शक्क
इसी प्रकार ,
वक्र = वक्क, तक्र= तक्क
- भिन्न वर्ग वाले संयुक्त व्यंजनों में प्रायः पूर्ववर्ती व्यंजनों का लोप हो कर शेष का द्वित्व हो जाता है। जैसे –
उत्कंठा =त् का लोप क् का द्वित्व = उक्कंठा
इसी प्रकार,
उल्का = उक्का, उत्सव = उस्सव, गुप्त = गुत्त, निश्चल = णिच्चल
- प्रारम्भ में आया हुआ आधा ‘स’ का लोप हो जाता है –
स्नेह =नेह = णेह
स्थिति = थिति
- ‘स्त’ का थ में परिवर्तन हो जाता है –
स्तुति – थुति, थुइ
स्तव = थव
- ‘स्प’ का ‘फ’ में परिवर्तन होता है
स्पंद = फंद
स्पर्श = स्पस्स = फस्स
- आदि यकार का प्रायः जकार हो जाता है
योग्य = जोग्ग
याचना = जाचणा
युग = जुग
- ष्ट का ट्ठ हो जाता है
इष्ट = इट्ठ
मिष्ट = मिट्ठ
वरिष्ठ = वरिट्ठ
- तकार का लोप होकर यकार हो जाता है और डकार भी होता है।
अजित = अजिय
ऋतु = उडु
प्राभृत = पाहुड
- ख, घ,ध,थ, भ अक्षरों का प्रायः ह हो जाता है
सुख = सुह
शुभ = सुह
बोधि = बोहि
लाभ = लाह
तथा = तहा
- शब्द के आदि में ऋकार का अकार होता है – जैसे –
कृतं =कतं = कदं
तृणं = तणं
घृतं = घदं
वृषभ = वसह
- शब्द के आदि में ऋकार का इकार भी होता है। जैसे –
दृष्टि = दिट्ठी
ऋद्धि = इद्धि = इड्ढि
ऋषि = इसि
सृष्टि – सिट्ठी
कृति = किदि
कृपण= किवण
घृणा= घिणा
अपभ्रंश की विशेषताएँ (जो प्राकृत से कुछ भिन्न हैं)
- उकार बहुलता की प्रवृत्ति अपभ्रंश की मुख्य विशेषताओं में से एक है। जैसे वअणु , सअलु आदि।
- संयुक्तव्यंजनों का प्रयोग कम हुआ। दीर्घीकरण से संयुक्ताक्षरों को सरल बना लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही थी। यथा-
कर्म – कम्म > काम
धर्म - धम्म > धाम
अक्षर – अक्खर > आखर
चर्म – चम्म > चाम
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.