पाठ – 7 वाक्य रचना भूतकाल – प्रथमा- द्वितीया- तृतीया विभक्ति
पाठ – 7
वाक्य रचना भूतकाल – प्रथमा- द्वितीया- तृतीया विभक्ति
कल के अभ्यास के उत्तरों के लिए देखें विडियो
त (वह) पुल्लिंग का द्वितीया एवं तृतीया विभक्ति में प्रयोग
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एकवचन |
बहुवचन |
कर्म |
तं |
ता |
करण |
तेण/ तें / तेणं |
तहिं/ ताहिं/ तेहिं |
त (वह) नपुंसकलिंग का द्वितीया एवं तृतीया विभक्ति में प्रयोग
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एकवचन |
बहुवचन |
कर्म |
तं |
ता/ त/ तइं/ ताइं |
करण |
तेण/ तें / तेणं |
तहिं/ ताहिं/ तेहिं |
त (वह) स्त्रीलिंग का द्वितीया एवं तृतीया विभक्ति में प्रयोग
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एकवचन |
बहुवचन |
कर्म |
तं |
त/ता/ ताउ/ तउ/ ताओ/ तओ |
करण |
ता/ ताए |
ताहिं/ तहिं |
अम्ह (मैं) का द्वितीया एवं तृतीया विभक्ति में प्रयोग
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एकवचन |
बहुवचन |
कर्म |
मइं |
अम्हे/ अम्हइं |
करण |
मइं |
अम्हेहिं |
तुम्ह (तुम) का द्वितीया एवं तृतीया विभक्ति में प्रयोग
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एकवचन |
बहुवचन |
कर्म |
पइं, तइं |
तुम्हे/ तुम्हइं |
करण |
पइं, तइं |
तुम्हेहिं |
भूतकाल – क्रिया का वह रूप जिससे ज्ञात हो कि कार्य पहले हुआ है। वह भूतकाल कहलाता है।
अपभ्रंश में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। क्रिया में अ/य प्रत्यय लगाकर भूतकालिक कृदन्त बनाये जाते हैं। क्रिया में अ/य प्रत्यय लगाने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे -
इन भूतकालिक कृदन्त के रूप कर्ता (विशेष्य) के अनुसार चलते हैं। कर्ता पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा, इन्हीं के अनुसार भूतकालिक कृदन्त के रूप बनेंगे। इन कृदन्तों के रूप पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुसंकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के अनुसार चलेंगे। कृदन्त में 'आ' प्रत्यय जोड़कर आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द भी बनाया जा सकता है।
हस + अ/य |
हसिअ/ हसिय |
जग्ग +अ/य |
जग्गिअ/जग्गिय |
सय + अ/य |
सयिअ/सयिय |
ठा+ अ/य |
ठाअ / ठाय |
हो +अ/य |
होअ/ होय |
अकर्मक क्रिया में भूतकालिक कृदंत
मैं सोया = हउं सयिउ/ सयियु।
वह नाचा = सो णच्चिउ/ णच्चियु
तुम हँसे= तुहुं हसियु।
वे सब खुश हुईं =ता/ ताओ/ ताउ- उल्लसिया/ उल्लसियाओ/ उल्लासियाउ
कमल खिले = कमला/कमल विअसिया/ विअसिय
सकर्मक क्रिया में भूतकालिक कृदंत
सकर्मक क्रिया में भूतकालिक कृदंत का प्रयोग कर्ता कि प्रथमा विभक्ति के साथ नहीं होता। इसमें कर्ता के लिए तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है और कर्म में प्रथमा विभक्ति और कर्म के लिंग, वचन अनुसार ही भूतकालिक कृदंत का रूप होगा ।
यथा- राम ने पुस्तक पढ़ी
यह सकर्मक क्रिया है इसका अपभ्रंश में अनुवाद के लिए हमें वाक्य में थोड़ा परिवर्तन करना होगा।
कर्ता की तृतीया विभक्ति होगी तो वाक्य कुछ इस प्रकार होगा-
राम के द्वारा पुस्तक पढ़ी गई, इस वाक्य का अपभ्रंश अनुवाद – रामेण गन्थो पढियो।
इसी प्रकार – तुमने राम कथा सुनी (णिसुण) - पइं/तइं रामकह णिसुणिअ
अभ्यास करें
1. फूल (पुप्फ) खिले।
2. तुम सोये
3. वह खुश हुई
4. मैं ठहरा
5. हम सब रोके (णिवार) गए।
6. मैंने खाना खाया।
7.मैंने कथा लिखी।
8. तुमने उसको पुकारा (कोक्क)।
9. वह कांपा (कंप)
10. मैंने जिन(जिण) को नमस्कार(पणम) किया ।
11.उसने पद्मचरित (पउम चरिउ) पढ़ा
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