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 पाठ – 8 वाक्य रचना – चार काल – सात कारक


Saransh Jain

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*अपभ्रंश में संप्रदान  कारक और संबंध  कारक में समान विभक्तियाँ हैं, अर्थात – चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति समान होती हैं 

देव शब्द के रूप-

कारक

एकवचन

बहुवचन

प्रथमा

देव, देवा, देवु, देवो

देव, देवा

द्वितीया

देव, देवा, देवु

देव, देवा

तृतीया

देवेण, देवेणं, देवें

देवहिं, देवाहिं, देवेहिं

चतुर्थी

देव, देवा, देवसु, देवासु, देवहो, देवाहो, देवस्सु 

देवहं, देवाहं

षष्ठी

पंचमी

देवाहे, देवहे, देवाहु, देवहु

देवहुं, देवाहुं

सप्तमी

देवि, देवे

देवहिं, देवाहिं

सम्बोधन

देव, देवा, देवु, देवो

देव, देवा, देवहो, देवाहो

 

हरि शब्द के रूप

 

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

हरी, हरि

हरी, हरि

कर्म

हरी, हरि

हरी, हरि

करण

हरिएं , हरीएं, हरीं, हरिं, हरिण, हरीण, हरीणं, हरिणं

हरिहिं, हरीहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

हरी, हरि

हरी, हरि, हरिहुं, हरीहुं, हरिहं, हरीहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

हरीहे, हरिहे

हरिहुं, हरीहुं

अधिकरण

हरिहि, हरीहि

हरिहिं, हरीहिं, हरिहुं, हरीहुं

सम्बोधन

हरी, हरि

हरी, हरि, हरीहो, हरिहो

 

ईकरांत पुल्लिंग -गामणी

कारक

एकवचन

बहुवचन

प्रथमा

गामणी, गामणि

गामणी, गामणि

द्वितीया

गामणी, गामणि

गामणी, गामणि

तृतीया

गामणीएं,गामणिएं,गामणीं,गामणिं गामणीण, गामणिण गामणीणं, गामणिणं

गामणीहिं, गामणिहिं

चतुर्थी

गामणि, गामणी

गामणी, गामणि, गामणीहुं,गामणिहुं, गामणीहं, गामणिहं

षष्ठी

पंचमी

गामणीहे, गामणिहे

गामणीहुँ, गामणिहुं

सप्तमी

गामणीहि, गामणिहि

गामणीहिं, गामणिहिं

गामणीहुँ, गामणिहुं

सम्बोधन

गामणी. गामणि

गामणी, गामणि

गामणीहो, गामणिहो

 

 

साहु (उकारांत पुल्लिंग)     

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

साहु, साहू

साहु, साहू

कर्म

साहु, साहू

साहु, साहू

करण

साहुएं, साहूएं, साहुं, साहूं, साहुण, साहूण, साहुणं, साहूणं

साहुहिं, साहूहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

साहु, साहू

साहु, साहू, साहुहुं, साहूहूं साहुहं, साहूहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

साहुहे, साहूहे

साहुहुं , साहूहूं

अधिकरण

साहुहि, साहूहि

साहुहिं, साहूहिं, साहुहूं, साहूहूं   

सम्बोधन

साहु, साहू

साहु, साहू, साहुहो, साहूहो

  

सयंभू (ऊकारांत पु.)

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

सयंभू, सयंभु 

सयंभू सयंभु

कर्म

सयंभू, सयंभु

सयंभू, सयंभु

करण

सयंभूएं, सयंभुएं, सयंभूं, सयंभुं, सयंभूण, सयंभुण सयंभूणं, सयंभुणं

सयंभूहिं, सयंभुहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

सयंभू, सयंभु

संयभू, सयंभु, सयंभूहुं, सयंभुहुं, सयंभूहं, सयंभुहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

सयंभूहे, सयंभुहे

सयंभूहुं, सयंभुहुं

अधिकरण

सयंभूहि, सयंभुहि

सयंभूहिं, सयंभुहिं, सयंभूहुं, सयंभुहुं

सम्बोधन

सयंभू, सयंभु

सयंभू, सयंभु, सयंभूहो, सयंभुहो।

 

कमल के रूप 

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

कमल, कमला, कमलु

कमल, कमला, कमलइं, कमलाइं

कर्म

कमल, कमला, कमलु

कमल, कमला, कमलइं, कमलाइं

करण

कमलें, कमलेण, कमलेणं

कमलहिं, कमलाहिं, कमलेहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

कमल, कमला, कमलहो, कमलाहो , कमलसु, कमलासु, कमलस्सु   

कमल, कमला, कमलहं, कमलाहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

कमलहे, कमलाहे, कमलहु, कमलाहु

कमलहुं, कमलाहुं

अधिकरण

कमलि, कमले

कमलहिं, कमलाहिं  

सम्बोधन

कमल, कमला, कमलु

कमल, कमला, कमलहो, कमलाहो 

 

 

वारि के रूप 

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

वारी, वारि

वारी, वारि, वारिइं, वारीइं  

कर्म

वारी, वारि

वारी, वारि, वारिइं, वारीइं  

करण

वारीं, वारिं, वारीएं, वारिएं, वारिण, वारीण, वारीणं, वारिणं 

वारिहिं, वारीहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

वारि, वारी

वारि, वारी, वारीहुं, वारिहुं, वारिहं, वारीहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

वारिहे, वारीहे

वारीहुं, वारिहुं

अधिकरण

वारिहि, वारीहि

वारिहिं, वारीहिं, वारीहुं, वारिहुं  

सम्बोधन

वारी, वारि

वारी, वारि, वारिइं, वारीइं, वारिहो, वारीहो  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

महु  के रूप (उकारांत नपुंसकलिंग )

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

महु, महू

महु, महू, महुइं, महूइं

कर्म

महु, महू

महु, महू, महुइं, महूइं

करण

महुं, महूं, महुएं, महूएं, महुण, महूण, महुणं, महूणं

महुहिं, महूहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

महु, महू

 

महु, महू महुहुं, महूहुं, महुहं, महूहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

महुहे, महूहे

महुहुं, महूहूं

अधिकरण

महुहि, महूहि

   महुहिं, महूहिं, महुहुं, महूहूं         

सम्बोधन

महु, महू

महु, महू, महुहो, महूहो

 

कहा के रूप

कारक

एकवचन

बहुवचन

प्रथमा

कहा, कह

कहा, कह,कहाउ,कहउ,कहाओ, कहओ

द्वितीया

कहा, कह

कहा, कह,कहाउ,कहउ,कहाओ, कहओ

तृतीया

कहाए ,कहए 

कहहिं, कहाहिं

चतुर्थी

कहा, कह, कहहे, कहाहे

कहहु, कहाहु

षष्ठी

पंचमी

कहहे, कहाहे

कहहु, कहाहु

सप्तमी

कहहिं, कहाहिं

कहहिं, कहाहिं

सम्बोधन

कहा, कह

कहा, कह, कहाउ, कहउ, कहाओ, कहओ, कहहो, कहाहो

 

जुवइ के रूप 

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

जुवई, जुवइ

जुवई, जुवइ, जुवइउ, जुवईउ, जुवईओ, जुवइओ 

कर्म

 

जुवई, जुवइ

जुवई, जुवइ, जुवइउ, जुवईउ, जुवईओ, जुवइओ 

करण

जुवईए, जुवइए

जुवईहिं, जुवइहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

जुवई, जुवइ, जुवईहे, जुवइहे

जुवई, जुवइ ,जुवईहु, जुवइहु

संबंध (षष्ठी)

अपादान

जुवईहे, जुवइहे

जुवईहु, जुवइहु

अधिकरण

जुवईहिं, जुवइहिं

जुवईहिं, जुवइहिं

सम्बोधन

जुवई, जुवइ

जुवईहो, जुवइहो

 

 

लच्छी

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

लच्छी, लच्छि

लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, लच्छिउ, लच्छीओ, लच्छिओ

 

कर्म

लच्छी, लच्छि

लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, लच्छिउ, लच्छीओ, लच्छिओ

करण

लच्छीए, लच्छिए

लच्छीहिं, लच्छिहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

लच्छी, लच्छि, लच्छीहे, लच्छिहे

लच्छी, लच्छि, लच्छीहु, लच्छिहु

संबंध (षष्ठी)

अपादान

लच्छीहे, लच्छिहे

लच्छीहु, लच्छिहु

अधिकरण

लच्छीहिं, लच्छिहिं

   लच्छीहिं, लच्छिहिं     

सम्बोधन

लच्छी, लच्छि

लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, लच्छिउ

लच्छीओ, लच्छिओ, लच्छीहो, लच्छिहो

 

धेणु (उकारांत स्त्रीलिंग)

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

धेणु, धेणू

धेणु, धेणू, धेणुउ, धेणूउ

धेणुओ, धेणूओ।

कर्म

धेणु, धेणू

 

धेणु, धेणू, धेणुउ, धेणूउ

धेणुओ, धेणूओ।

करण

धेणुए, धेणूए

धेणुहिं, धेणूहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

धेणु, धेणू, धेणुहे, धेणूहे

धेणु, धेणू 

धेणुहु, धेणूहु

संबंध (षष्ठी)

अपादान

धेणुहे, धेणूहे

धेणुहु, धेणूहु

अधिकरण

धेणुहिं, धेणूहिं

धेणुहिं, धेणूहिं         

सम्बोधन

धेणु, धेणू

धेणु, धेणु, धेणुउ, धेणूउ धेणुओ, धेणूओ, धेणुहो, धेणूहो

 

 

बहू(उकारांत स्त्रीलिंग)

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

बहू, बहु

बहू, बहु, बहूउ, बहुउ

बहूओ, बहुओ

कर्म

बहू, बहु

 

बहू, बहु, बहूउ, बहुउ

बहूओ, बहुओ

करण

बहूए, बहुए

बहूहिं, बहुहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

बहू, बहु, बहूहे, बहुहे

बहू, बहु, बहूहु, बहुहु

संबंध (षष्ठी)

अपादान

बहूहे, बहुहे

बहूहु, बहुहु

अधिकरण

बहूहिं, बहुहिं

बहूहिं, बहुहिं

सम्बोधन

बहू, बहु

बहू, बहु, बहूउ, बहुउ, बहूओ, बहुओ, बहूहो, बहुहो

 

 

त(वह) - पुल्लिंग

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

, सा, सु, सो, त्रं, तं

, ता

कर्म

त्र, तं

, ता

करण

ते, तेण, तेणं

तहिं, ताहिं, तेहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

, ता, तसु, तासु तहो, ताहो, तस्सु

, ता, तहं, ताहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

तहां, ताहां

तहुं, ताहुं

अधिकरण

तहिं, ताहिं

तहिं, ताहिं

ज - जो(पुल्लिंग), क - कौन(पुल्लिंग) के रूप  त के समान चलेंगे । 

त(वह) नपुंसकलिंग के रूप

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

त्रं, तं

, ता, तइं, ताइं

कर्म

त्रं, तं

, ता, तइं, ताइं

करण

तें, तेण, तेणं

तहिं, ताहिं, तेहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

, ता, तसु, तासु, तहो, ताहो, तस्सु

, ता , तहं, ताहं

संबंध (षष्ठी)

अपादान

तहां, ताहां

तहुं, ताहुँ

अधिकरण

तहिं, ताहिं

तहिं, ताहिं

ज - जो(नपुंसकलिंग), क - कौन(नपुंसकलिंग) के रूप  त(नपुंसकलिंग) के समान चलेंगे । 

 

ता (स्त्रीलिंग)

कारक

एकवचन

बहुवचन

कर्ता

त्रं, तं, सा,

ता, , ताउ, तउ, ताओ, तओ

कर्म

त्रं, तं

ता, , ताउ, तउ, ताओ, तओ

करण

ताए, तए

 

ताहिं, तहिं

संप्रदान (चतुर्थी)

ता, , ताहे, तहे

 

ता, , ताहु, तहु

संबंध (षष्ठी)

अपादान

ताहे, तहे

ताहु, तहु

अधिकरण

ताहिं, तहिं

ताहिं, तहिं

 

ज - जो(स्त्रीलिंग), क - कौन(स्त्रीलिंग) के रूप  त(स्त्रीलिंग) के समान चलेंगे ।   

 

संप्रदान कारक – किसी प्रयोजन से जब कोई कार्य किया जाये उसमें संप्रदान कारक का प्रयोग होता है। जैसे –

1.   मैं ज्ञान के लिए अपभ्रंश पढ़ता हूँ – हउं णाणहो अवभंसु पढउं।

2.   कुमार राज्य के लिए युद्ध करता है – कुमारु रज्ज्जासु जुज्झइ।

अपादान कारक – जिससे कोई वस्तु अलग हो उसे अपादान कहते हैं। जैसे-

3.    वृक्ष से पत्ता गिरता है – रुक्खहे पत्तु पडई ।

4.   विद्याधर नगर से जाते हैं  – विज्जाहर  णयरहु गच्छन्ति।

संबंध कारक – जिसमे संबंध बताया जाये। जैसे –

1.   तुम राजा के पुत्र हो  – तुहुं नरिंदहो पुत्तो अत्थि।

2.   हम  जिनेन्द्र के भक्त हैं – अम्हइं जिणेंदहो भत्ता अत्थि 

अधिकरण कारक – जहां या जिसमे कोई कार्य किया जाता है, उस आधार में अधिकरण कारक होता है। जैसे –

1.   लोक में द्रव्य हैं – लोइ दव्वा सन्ति।

2.   गुफा में तपस्वी हैं – कफाडे तवस्सी सन्ति।

सम्बोधन किसी को संबोधित करने के लिए, सम्बोधन का प्रयोग होता है।

जैसे – हे कमला ! पानी लाओ – हे कमला! वारी लाहि ।    

 

करेंगे अभ्यास –

1.कृष्ण (किण्ह) के द्वारा जरासंध (जरासंध) मारा (हण) गया ।

2.देवों द्वारा समोशरण (समोसरण) में ऋषभनाथ (उसहणाह) को प्रणाम किया गया।

3.माता पुत्र के लिए पुस्तक लाती हैं

4.मैं ज्ञान (णाण) के लिए अपभ्रंश(अवभंस) पढ़ता हूँ

5.देव नंदीश्वर द्वीप (णंदीसरदीव) जाते हैं।

6.हम सब अरिहंतों के भक्त (भत्त) हैं।

7.खारवेल मगध(मगह) से जिनबिम्ब (जिणबिम्ब) लाया 

8.माता स्नेह से पुत्र को देखती (पेच्छ) है ।

9.यति आहार के लिए जंगल से नगर आते हैं ।

10.हे शिष्य! धर्म करो ।

11.मुनिराज(मुणिराय) ने उपसर्ग (उवसग्ग) सहे (सह) ।

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