पाठ 10 - प्रेरणार्थक क्रिया
कल के अभ्यास के उत्तर देखें वीडियो में
जिस क्रिया से किसी अन्य से कार्य कराया जाये अथवा प्रेरणा दी जाये वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे – सुलाना, पढ़ाना, जगाना, दिखाना इत्यादि ।
प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए – क्रिया में आव प्रत्यय जोड़ा जाता है, अथवा उपांत्य में ‘अ’ प्रत्यय लगाया जाता है।
‘अ’ प्रत्यय के साथ नियम
– यथा - सोना क्रिया का प्रेरणार्थक हुआ सुलाना – जो इस प्रकार बनेगा – सय – स+अ+य = साय
· उपांत्य ‘अ’ हो तो प्रत्यय लगाने के बाद आ हो जाएगा। -
पढ -अ =प+अ +ढ = पाढ
हस – अ = हास
· इसी प्रकार - उपांत्य-इ का ए, उ का ओ हो जाता है।
भिड – अ = भेड
लुक्क – अ = लोक्क
· उपांत्य दीर्घ ‘ई’ तथा दीर्घ ‘ऊ’ होने पर कोई परिवर्तन नहीं होता।
कीण – अ = कीण
· अंत में संयुक्त अक्षर होने पर उपांत्य ‘अ’ का ‘अ’ ही रहता है, आ नहीं होता।
णच्च = ण+अ +च्च = णच्च
रक्ख – अ = रक्ख
‘आव’ प्रत्यय के साथ प्रेरणार्थक क्रिया का निर्माण करना –
हस + आव = हसाव
णच्च + आव = णच्चाव
रक्ख + आव = रक्खाव
पढ + आव = पढाव
कीण + आव = कीणाव
लुक्क + आव = लुक्काव
भिड + आव – भिड़ाव
इस प्रकार प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के बाद उनमे संबन्धित काल के प्रत्यय लगाए जाते हैं – जैसे –
1.माँ पुत्र को सुलाती है – माया पुत्तु सायइ/ सयावइ।
2.तुम उन्हे जगाओ – तुहुं- ता/ते/ताओ/ताउ -जग्गावहि/ जग्गावि /जग्गाव/ जग्गावु/ जग्गावसु/ जग्गहि
3.गुरु ने ग्रंथ पढ़ाया – गुरुए गन्थो पाढियो।
4.राजा शत्रु को भगाएगा – णरिंदो रिऊ पलाविहिइ ।
कर्मवाच्य में प्रेरणार्थक क्रिया का प्रयोग –
उदाहरण –
· मेरे द्वारा तुम सब को खुश किया जाता है – मइं तुम्हे उल्लसाव+इज्ज/इय +इ = उल्लसाविज्जइ / उल्लसावियइ
· पुष्पदंत द्वारा महापुराण पढ़ाया जाता है – पुप्फदंतेण महापुराण पाढिज्जइ
· गुरु के द्वारा शिष्य को ग्रंथ पढाया जाएगा – गुरुए सीसु गन्थो पढाविहिइ
· लक्ष्मण के द्वारा राक्षस सेना भगायी गयी – लक्खणेण रक्खसचमू पलावियो ।
विधि कृदंत में प्रेरणार्थक क्रियाओं का प्रयोग –
· हमारे द्वारा धर्म फैलाया जाना चाहिए – अम्हेहिं धम्मो पसराविअव्वो।
· तुम्हारे द्वारा उसको हंसाया जाना चाहिए – पइं तं हसाविएव्वं ।
· राजा के द्वारा नागरिक डराए जाने चाहिए- नरिंदेण णयरजणाइं डराविअव्वाइं ।
आइये करें गाथा स्वाध्याय –
जो गुण गोवइ अप्पणा पयडा करइ परस्सु
तसु हउं कलि-जुगि दुल्लहहो बलि किज्जउं* सुअणस्सु।
जो – जो / अप्पणा – स्वयं के / गुण – गुणों को / गोवइ – छिपाता है/ पयडा – प्रकट/ करइ- करता है / परस्सु – दूसरे के / कलि–जुगि – कलियुग में /तसु – उसकी / दुल्लहहो – दुर्लभ की / सुअणस्सु – सज्जन की/ हउं – मैं / बलि – पूजा / किज्जउ – करता हूँ।
अभ्यास –
अनुवाद करें
मध्यम मंगलाचरण –
पूज्य आचार्यों ने 3 मंगलाचरण बताए हैं।
आइये उन्ही की आज्ञा अनुसार हम करें आज मध्यम मंगलाचरण, जिसका आप करें आज स्वयं अनुवाद –
समोसरणि - जईहिं पुज्जियो , देवेहिं वंदियो, चक्कहरेहिं अच्चियो हे जिणो! भत्तिए वंदउं तुहुं णियसहाव – उवलद्धिहे कारणेण।
हे गुरु ! पइं मुणिसंघ संचालिज्जइ , तउ उएसेण णरेहिं धम्मो गिण्हिज्जइ । हे पुज्जपाय –आइरिय- विज्जासायरु! तुहुं अम्हेहिं णमिज्जहि, परमट्ठह।
हे तवस्सी! रत्तीए भूसयण- आइ पइं तविज्जइ। अम्हे तुहुं सद्धाए पणमहुं।
हे मुणिरायो! सिरि-णाणसायरस्सु सीसो! अज्झप्प-लच्छीहे सामी ! सिद्धन्त- दिवायर! तउ गुणलद्धि कारणेण पणमहुं तुहुं।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.