Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

पाठ 13 - स्वार्थिक प्रत्यय


Saransh Jain

674 views

स्वार्थिक प्रत्यय वे होते हैं, जो भावों की सटीक - सफल अभिव्यक्ति करने हेतु संज्ञा शब्दों में जोड़े जाते हैं। अपनी बात को छन्द में (गेयपूर्ण रूप में) कहने हेतु इन स्वार्थिक प्रत्ययों का लोक जीवन में सामान्यत: बहुलता से प्रयोग होता दिखाई देता है। जिन स्वार्थिक प्रत्ययों का काव्य में प्रयोग होता देखा गया है, वे इसप्रकार हैं - , अड, उल्ल, इय, क्क, एं, , इल्ल।

इनमें , अड तथा उल्ल अधिकतर प्रयोग में आनेवाले स्वार्थिक प्रत्यय हैं। इय, क्क, एं, तथा इल्ल स्वार्थिक प्रत्ययों का प्रयोग काव्य में कहीं-कहीं देखा जाता है। कभी-कभी दो तीन स्वार्थिक प्रत्ययों का प्रयोग एक साथ होता भी देखा गया है। जैसे - बाहुबलुल्लडअ = बाहुबल - उल्ल - अड - ( भुजा का बल) स्वार्थिक प्रत्यय लगाने के पश्चात् सम्बन्धित विभक्ति जोड़ दी जाती है। स्त्रीलिंग में संज्ञा शब्दों के स्वार्थिक प्रत्यय के अन्त में '' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है।

वाक्य रचना

  1. जीव तु क्यों नहीं समझता है? – जीवडा तुहूं कि बुज्झइ?
  2.  जब तक पति नहीं आयेंगे तब तक मैं भोजन नहीं करूँगा - जाव कंतुल्लो आएसहिं ताम हउँ भोयणु करेसमि।
  3. तुम्हारे द्वारा अत्याधिक प्रेम नहीं किया जाना चाहिए - पई अइ णेहडो करिअव्वु।
  4. तुम अभी वैराग्य मत धारो - तुहूं एवहिं वैरग्गअ मा धारि।
  5.  विमान उडा - विमाणडु उड्डिउ

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...