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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव
शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)
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☀ जय जिनेन्द्र बंधुओ, आज के प्रसंग में हम सभी देखेंगे कि किस तरह पूज्य शान्तिसागरजी महराज के ससंघ त्याग तथा तपश्चरण के फलस्वरूप पूज्यश्री के दिल्ली में १९३० के दिल्ली प्रवास के समय अपूर्व प्रभावना हुई। हर सम्प्रदाय के लोगों ने इनके सम्मुख व्रत नियम आदि स्वीकार कर अपने आपको धन्य किया। राजधानी दिल्ली में सैकड़ों श्रावक आजीवन शुद्र जल का त्याग कर पूज्यश्री के ससंघ को आहार देने का सौभाग्य सहर्ष प्राप्त कर रहे थे। अवश्य ही उन क्षणों का लेखक का यह चित्रण हम सभी श्रावकों के मन को आह्लाद से भर देता है। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१९ ? "दिल्ली प्रवास में प्रभावना" पूज्य शान्तिसागरजी महराज ससंघ का जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ता था। बहुत से मुसलमानों आदि ने मांस तथा मदिरा का त्याग किया था। हरिजनों आदि का महराज ने सच्चा कल्याण किया था। बहुत से गरीब साधु महराज के दर्शन को आये थे, महराज उनको प्रेममय बोली में समझाते थे, "भाई, जीवों की दया पालने से जीव सुखी होता है। दूसरों जीवों को मारकर खाना बड़ा पाप है, इससे ही जीव दुखी रहता है।" महराज के शब्दों का बड़ा प्रभाव होता था। तपश्चर्या से वाणी का प्रभाव बहुत अधिक हो जाता है। सैकड़ो हजारों हरिजनों आदि लोगों ने शराब तथा मांस सेवन का त्याग किया था तथा और भी व्रत लोग लेते थे। अग्नि में संतप्त किया स्वर्ण विशेष दीप्तिमान होता है, उसी प्रकार तपोग्नि द्वारा जीवन वाणी, विचार, मलिनता विमुक्त हो तेजोमय तथा दिव्यतापूर्ण होते हैं। आचार्यश्री के प्रति भक्ति इतनी बड़ रही थी कि लगभग सत्तर अस्सी चौके लगा करते थे। बिना शुद्र जल का त्याग किये कोई आहार नहीं दे सकता था लेकिन महराज को आहार देने के अपूर्व सौभाग्य के आगे नियम की कठिनता लोगों को कुछ भी नहीं दिखती थी। उस समय लोग कहते थे कि छोटी सी प्रतिज्ञा ने हमारा अशुध्द भोजन से पिण्ड छुड़ा दिया अतः आत्म कल्याण के साथ-साथ शरीर की निरोगता का कारण बन गई। इसने स्वावलंबी जीवन को भी प्रेरणा दी। ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आजकी तिथी - वैशाख शुक्ल १?
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? कल मोक्ष कल्याणक पर्व ? जय जिनेन्द्र बंधुओं, कल ७ मई, दिन शनिवार, वैशाख शुक्ल एकम् की शुभ तिथी को १७ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ कुन्थुनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक पर्व है ?? कल अत्यंत भक्ति भाव से कुन्थुनाथ भगवान की पूजन करना चाहिए तथा निर्वाण लाडू आदि चढ़ाकर मोक्ष कल्याणक पर्व मनाना चाहिए। निर्वाण महोत्सव के इस विशेष अवसर पर अपने भी निर्वाण की भावना करना चाहिए। ? इस अवसर पर हम सभी को कुन्थुनाथ भगवान के श्री चरणों में यही भावना करना चाहिए कि हे भगवन जिस तरह आपके जीव ने अहिंसा व्रतों को धारण कर विशेष पुरुषार्थ द्वारा वीतराग अवस्था को प्राप्त किया एवं तदनंतर उत्कृष्ट सुख को प्राप्त किया उसी तरह हम भी अहिंसा व्रतों को धारण कर शीघ्र ही अपना कल्याण करें। ?? भगवान के निर्वाण कल्याणक आदि विशेष पर्वों को सभी जगह की जैन समाज को अपने-२ शहर में सामूहिक रूप से विशेष प्रभावना के साथ मनाना चाहिए। ??कुन्थुनाथ भगवान की जय?? ??निर्वाण स्थल ज्ञानधरकूट की जय?? ??निर्वाण भूमि शिखरजी की जय?? ?तिथी - वैशाख शुक्ल १? ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??
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?दीक्षा दिवस ? दिनांक ०६ मई १६ दिन शुक्रवार आज से ३६ वर्ष पूर्व वैशाख कृष्ण अमावस्या दि. १५ एप्रिल १९८० को "आज के ही दिन" परम पूज्य आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी महाराज के कर कमलों से आज के ही दिन म.प्र. प्रान्त के बुन्देलखंड की धरा- सागर नगर में मुनिश्री नियमसागरजी महाराज जी एवं मुनिश्री योगसागर जी महाराज जी की मुनि दीक्षा संपन्न हुयी थी। मुनि द्वय के३६ वे दीक्षा दिवस पर हम सभी मुनि द्वय के चरणों में बारंबार नमोस्तु करते हैं??????। नोट- मुनिश्री नियम सागर जी महाराज पुणे नगर (चिंचवड) में विराजमान हैं । मुनि श्री योग सागर जी महाराज कुंडलपुर में विराजमान हैं ।
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☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं, आज का प्रसंग हर एक मनुष्य के मष्तिस्क में उठ सकने वाले प्रश्न का समाधान है। पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज द्वारा दिया गया समाधान बहुत ही आनंद प्रद है। अपने जीवन के प्रति गंभीर दृष्टिकोण रखने वाले पाठक श्रावक अवश्य ही इस समाधान को जानकर आनंद का अनुभव करेंगे। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१८ ? "एक अंग्रेज का शंका समाधान" एक दिन एक विचारवान भद्र स्वभाव वाला अंग्रेज आया। उसने पूज्य शान्तिसागरजी महराज से पूंछा, "महराज ! आपने संसार क्यों छोड़ा, क्या संसार में रहकर आप शांति प्राप्त नहीं कर सकते थे?" महराज ने समझाया, "परिग्रह के द्वारा मन में चंचलता, राग, द्वेष आदि विकार होते हैं। पवन के बहते रहने से दीपशिखा कम्पन रहित नहीं हो सकती है। पवन के आघात से समुद्र में लहरों की परम्परा उठती जाती है। पवन के शांत होते ही दीपक की लौ स्थिर हो जाती है, समुद्र प्रशांत हो जाता है, इसी प्रकार राग- द्वेष के कारण रूप धन वैभव कुटुम्ब आदि को छोड़ देने पर मन में चंचलता नहीं रहता है। मन के शांत रहने पर आत्मा भी शांत हो जाती है। निर्मल जीवन द्वारा मानसिक शांति आती है। विषय भोग की आसक्ति द्वारा इस जीव की मनोवृत्ति मलिन होती है। मलिन मन पाप का संचय करता हुआ दुर्गति में जाता है। परिग्रह को रखते हुए पूर्णतः अहिंसा धर्म का पालन नहीं हो सकता है, अतएव आत्मा की साधना निर्विघ्न रुप से करने के लिए विषय भोगों का त्याग आवश्यक है। विषय भोगों से शांति भी तो नहीं होती है। आज तक इतना खाया, पिया, सुख भोगा, फिर भी क्या तृष्णा शांत हुई? विषयों की लालसा का रोग कम हुआ? वह तो बढ़ता ही जाता है। इससे भोग के बदले त्याग का मार्ग अंगीकार करना कल्याणकारी है। संसार का जाल ऐसा है कि उसमें जाने वाला मोहवश कैदी बन जाता है। वह फिर आत्मा का चिंत्वन नहीं कर पाता है। दूसरी बात यह है कि जब जीव मरता है, तब सब पदार्थ यही रह जाते हैं, साथ में अपने कर्म के सिवाय कोई भी चीज नहीं जाती है, इससे बाह्य पदार्थों में मग्न रहना, उनसे मोह करना अविचारित कार्य है।" इस विषय में आचार्यश्री की मार्मिक, अनुभवपूर्ण बातें सुनकर हर्षित हो वह अंग्रेज नतमस्तक हो गया। ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आजकी तिथी-वैशाख कृ०अमावस?
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अज्ञानी का कथन
Abhishek Jain commented on Sneh Jain's blog entry in Apbhramsa - Language & Literature
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☀ मैं पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र का लगातार अध्ययन कर रहा हूँ, फलस्वरूप मेरी दृष्टि में पूज्यश्री का दिल्ली का चातुर्मास एक महत्वपूर्ण चातुर्मास था। इस चातुर्मास के माध्यम से दिगम्बरत्व का प्रचार भली प्रकार से हुआ। सर्वत्र दिगम्बर मुनिराज के दर्शन व जन-जन तक उनके स्वरूप की जानकारी पहुँचना पूज्य शान्तिसागरजी महराज के उत्कृष्ट तपश्चरण का ही प्रभाव था। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१७ ? "भारत की राजधानी दिल्ली में प्रवेश" पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने ससंघ ललितपुर चातुर्मास के उपरांत बूंदेलखड की सभी तीर्थ, ग्वालियर, आगरा, मथुरा विभिन्न स्थानों को अपनी पदरज से धन्य करते हुए राजधानी दिल्ली में प्रवेश किया। खुरजा के अपने अमृत-उपदेश से उपकृत करते हुए संघ ने प्रस्थान कर सिकन्दराबाद में निवास किया। इसके अनंतर गजियाबाद तथा शहादरा होते हुए पौष सुदी दशमी को संघ ने भारत की राजधानी दिल्ली में प्रवेश किया। कहते हैं, अब पचास हजार से भी अधिक संख्या हो गई है। वहाँ धार्मिक प्रकृति के लोग बहुत हैं, इसलिए संघ के आने पर दिल्ली समाज के रोम-रोम में आनंद व्याप्त होता था। राजधानी के योग्य गौरवपूर्ण जुलूस द्वारा आचार्य शान्तिसागर महराज के प्रति भक्ति व्यक्त की गई। बडे-बड़े प्रतिष्ठान तथा विचारशील नागरिक तथा उच्च अधिकारी लोग आचार्यश्री के दर्शनार्थ आते थे, अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न करते थे तथा समाधान प्राप्त कर हर्षित होते थे। ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आजकी तिथी- वैशाख कृ० १३/१४?
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? कल गर्भ,मोक्ष व चतुर्दशी पर्व है? जय जिनेन्द्र बंधुओं, कल ५ मई, दिन गुरुवार, वैशाख कृष्ण चतुर्दशी की शुभ तिथी को २१ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ नमिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक पर्व तथा १५ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ धर्मनाथ भगवान का गर्भ कल्याणक तथा चतुर्दशी पर्व है। ?? कल अत्यंत भक्ति भाव से नमिनाथ भगवान की पूजन करना चाहिए तथा निर्वाण लाडू आदि चढ़ाकर जन्म, ज्ञान व मोक्ष कल्याणक पर्व मनाना चाहिए। निर्वाण महोत्सव के इस विशेष अवसर पर अपने भी निर्वाण की भावना करना चाहिए। ? इस अवसर पर हम सभी को नमिनाथ भगवान के श्री चरणों में यही भावना करना चाहिए कि हे भगवन जिस तरह आपके जीव ने अहिंसा व्रतों को धारण कर विशेष पुरुषार्थ द्वारा वीतराग अवस्था को प्राप्त किया एवं तदनंतर उत्कृष्ट सुख को प्राप्त किया उसी तरह हम भी अहिंसा व्रतों को धारण कर शीघ्र ही अपना कल्याण करें। ?? भगवान के निर्वाण कल्याणक आदि विशेष पर्वों को सभी जगह की जैन समाज को अपने-२ शहर में सामूहिक रूप से विशेष प्रभावना के साथ मनाना चाहिए। ?????????? नाथ नमि को माथ नमि के, मैं करूँ नित वंदना। वंदना का फल मिले वस, होय अब तो बंध ना।। चिन्ह इनका कमल है ये, कमल सम ही मनहरा। आपके दर्शन किये तो, काम मेरा सब सरा।। ?????????? ??नमिनाथ भगवान की जय?? ??निर्वाण स्थल मित्रधरकूट की जय?? ??निर्वाण भूमि शिखरजी की जय?? ?तिथी - वैशाख कृष्ण १३/१४? ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??
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? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१६ ? "सरसेठ हुकुमचंद और उनका ब्रम्हचर्य प्रेम" लेखक दिवाकरजी ने लिखा है कि सर सेठ हुकुमचंद जी के विषय में बताया कि आचार्य महराज ने उनके बारे ये शब्द कहे थे, "हमारी अस्सी वर्ष की उम्र हो गई, हिन्दुस्तान के जैन समाज में हुकुमचंद सरीखा वजनदार आदमी देखने में नहीं आया। राज रजवाड़ों में हुकुमचंद सेठ के वचनों की मान्यता रही है। उनके निमित्त से जैनों का संकट बहुत बार टला है। उनको हमारा आशीर्वाद है, वैसे तो जिन भगवान की आज्ञा से चलने वाले सभी जीवों को हमारा आशीर्वाद है।' हुकुमचंद के विषय में एक समय आचार्य महराज ने कहा था, "एक बार संघपति गेंदनमल और दाडिमचंद ने हमारे पास से जीवन भर के लिए ब्रम्हचर्य व्रत लिया, तब हुकुमचंद सेठ ने इसकी बहुत प्रसंशा की। उस समय आचार्यश्री ने हुकुमचंद सेठ से कहा 'तुमको भी ब्रम्हचर्य व्रत लेना चाहिए।' हुकुमचंद ने तुरंत ब्रम्हचर्य व्रत लिया और कहा था, 'महराज ! आगामी भव में भी ब्रम्हचर्य का पालन करूँ।' हुकुमचंद का ब्रम्हचर्य व्रत पर इतना प्रेम है।" ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आज की तिथी - वैशाख कृष्ण १२?
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☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं, आज चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन पर्यन्त के एक महत्वपूर्ण विवरण को आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह पोस्ट आप संरक्षित रखकर बहुत सारे रोचक प्रसंगों के वास्तविक समय का अनुमान लगा पाएँगे तथा उनके तपश्चरण की भूमि का समय के सापेक्ष में भी अवलोकन कर पाएँगे। विवरण ग्रंथ में उपलब्ध जानकारी के आधार पर ही है। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१५ ? "चातुर्मास सूची" पूज्य शान्तिसागर जी महराज की दीक्षा संबंधी जानकारी का विवरण निम्न है- क्षुल्लक दीक्षा - १९१५ ऐलक दीक्षा - १९१९ मुनि दीक्षा - १९२० आचार्य पद - १९२४ चारित्र चक्रवर्ती पद - १९३७ आचार्य पद त्याग - १९५५ समाधि - १९५५ ?चातुर्मास विवरण? क्र. सन स्थान १. १९१५ कोगनोली २. १९१६ कुम्भोज ३. १९१७ कोगनोली ४. १९१८ जैनवाड़ी ५. १९१९ नसलापुर ६. १९२० ऐनापुर ७. १९२१ नसलापुर ८. १९२२ ऐनापुर ९. १९२३ कोंनुर १०. १९२४ समडोली ११. १९२५ कुम्भोज १२. १९२६ नांदनी १३. १९२७ बाहुबली १४. १९२८ कटनी १५. १९२९ ललितपुर १६. १९३० मथुरा १७. १९३१ दिल्ली १८. १९३२ जयपुर १९. १९३३ ब्यावर २०. १९३४ उदयपुर २१. १९३५ गोरल २२. १९३६ प्रतापगढ़ २३. १९३७ गजपंथा २४. १९३८ बारामती २५. १९३९ पावागढ़ २६. १९४० गोरल २७. १९४१ अकलुज २८. १९४२ कोरोची २९. १९४३ डिगरज ३०. १९४४ कुंथलगिरी ३१. १९४५ फलटन ३२. १९४६ कवलाना ३३. १९४७ सोलापुर ३४. १९४८ फलटण ३५. १९४९ कवलाना ३६. १९५० गजपंथा ३७. १९५१ बारामती ३८. १९५२ लोनंद ३९. १९५३ कुंथलगिरी ४०. १९५४ फलटन ४१. १९५५ कुंथलगिरी ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आज की तिथी - वैशाख कृष्ण ११?
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?वैयावृत्त धर्म व आचार्यश्री - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१४
Abhishek Jain commented on Abhishek Jain's blog entry in चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागरजी महराज
जय जिनेन्द्र आँटी धन्यवाद, परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती शांतिसागरजी महराज के दिव्य जीवन में धर्म की सूक्ष्म से सूक्ष्म बात परिलक्षित होती रहती थी। आप जैसे विद्वानों द्वारा प्रस्तुत प्रसंगों की समीक्षा हमारा सौभाग्य है। गुणों के प्रति किसी विद्वान का दृष्टिकोण उसकी गुणवत्ता का परिचायक होता है। -
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१४ ? "वैयावृत्त धर्म और आचार्यश्री" किन्ही मुनिराज के अस्वस्थ होने पर वैयावृत्त की बात तो सबको महत्व की दिखेगी, किन्तु श्रावक की प्रकृति भी बिगड़ने पर पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का ध्यान प्रवचन-वत्सलता के कारण विशेष रूप से जाता था। आचार्यश्री श्रेष्ट पुरुष होते हुए भी अपने को साधुओं में सबसे छोटा मानते थे। एक बार १९४६ में कवलाना में ब्रम्हचारी फतेचंदजी परवार भूषण नागपुर वाले बहुत बीमार हो गए थे। उस समय आचार्य महराज उनके पास आकर बोले, "ब्रम्हचारी ! घबराना मत, अगर यहाँ श्रावक लोग तुम्हारी वैयावृत्त में प्रमाद करेंगे, तो हम तुम्हारी सम्हाल करेंगे।" जब लेखक की ब्रम्हचारीजी से कवलाना में भेट हुई, तब उन्होंने आचार्यश्री की सांत्वना और वात्सल्य की बात कही थी। उससे ज्ञात हुआ कि महराज वात्सल्य गुण के भी भंडार थे। ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आज की तिथी - वैशाख कृष्ण १०?
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? कल जन्म व तप कल्याणक पर्व है ? जय जिनेन्द्र बंधुओं, कल २ मई, दिन सोमवार, वैशाख कृष्ण दशमी की शुभ तिथी को २० वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ मुनिसुव्रतनाथ भगवान का जन्म व तप कल्याणक पर्व है। ?? कल मुनिसुव्रतनाथ भगवान की पूजन अत्यंत भक्ति करके भगवान का जन्म व तप कल्याणक पर्व मनाएँ। ?? जो श्रावक पंच कल्याणक के व्रत करते हैं कल उनका व्रत का दिन है। ?तिथी - वैशाख कृष्ण दशमी। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??
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? कल ज्ञान कल्याणक पर्व है ? जय जिनेन्द्र बंधुओं, कल १ मई, दिन रविवार, वैशाख कृष्ण नवमी की शुभ तिथी को २० वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ मुनिसुव्रतनाथ भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व है। ?? कल मुनिसुव्रतनाथ भगवान की पूजन अत्यंत भक्ति करके भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व मनाएँ। ?? जो श्रावक पंच कल्याणक के व्रत करते हैं कल उनका व्रत का दिन है। ?तिथी - वैशाख कृष्ण नवमी। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??
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कल ३० अप्रैल, दिन शनिवार को अष्टमी पर्व है।
Abhishek Jain posted a blog entry in आगामी जैन पर्व व तिथीयाँ
? कल अष्टमी पर्व ? जय जिनेन्द्र बंधुओ, कल ३० अप्रैल, दिन शनिवार को अष्टमी पर्व है। ?? कल जिनमंदिर जाकर देवदर्शन करें। ?? जो श्रावक प्रतिदिन देवदर्शन करते है उनको अष्टमी/चतुर्दशी के दिन भगवान का अभिषेक और पूजन करना चाहिए। ?? इस दिन रात्रि भोजन व् आलू-प्याज आदि जमीकंद का त्याग करना चाहिए। ?? जो श्रावक अष्टमी/चतुर्दशी का व्रत करते है कल उनके व्रत का दिन है। ?? इस दिन राग आदि भावो को कम करके ब्रम्हचर्य के साथ रहना चाहिए। ☀ इस दिन धर्म करने से विशेषरूप से अशुभ कर्मो का नाश होता है। ☀ अपकी संतान को लौकिक शिक्षा के समान ही धर्म की शिक्षा जरुरी है।अपने बच्चों को पाठशाला भेजें।क्योकि धार्मिक शिक्षा वर्तमान में उनको तनाव मुक्त जीवन व् शांति प्रदान करेगी ही साथ ही भविष्य में नरक,तिर्यन्च आदि अधोगतियों से बचायगी। ?तिथी - वैशाख कृष्ण अष्टमी। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ?? ☀ इस तरह की सूचनाओं को आप भी अन्य श्रावकों को प्रेषित कर पुण्य के भागीदारी बन सकते हैं। -
कषाय भाव ही असंयम का कारण है
Abhishek Jain commented on Sneh Jain's blog entry in Apbhramsa - Language & Literature
बहुत सुन्दर, वर्तमान जीवन शैली में जीवन में शांति के कितने महत्व को आचार्य श्री योगेन्दु की यह गाथा भली भाँति स्पष्ट कर रही है। -
? कल ज्ञान कल्याणक पर्व है ? जय जिनेन्द्र बंधुओं, कल २१ अप्रैल, दिन गुरुवार, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की शुभ तिथी को ६ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ पद्मप्रभ भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व है। ?? कल पद्मप्रभ भगवान की पूजन अत्यंत भक्ति करके भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व मनाएँ। ?? जो श्रावक पंच कल्याणक के व्रत करते हैं कल उनका व्रत का दिन है। ?तिथी - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??
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कल २० अप्रैल, दिन बुधवार को चतुर्दशी पर्व है।
Abhishek Jain posted a blog entry in आगामी जैन पर्व व तिथीयाँ
? कल चतुर्दशी पर्व ? जय जिनेन्द्र बंधुओ, कल २० अप्रैल, दिन बुधवार को चतुर्दशी पर्व है। ?? कल जिनमंदिर जाकर देवदर्शन करें। ?? जो श्रावक प्रतिदिन देवदर्शन करते है उनको अष्टमी/चतुर्दशी के दिन भगवान का अभिषेक और पूजन करना चाहिए। ?? इस दिन रात्रि भोजन व् आलू-प्याज आदि जमीकंद का त्याग करना चाहिए। ?? जो श्रावक अष्टमी/चतुर्दशी का व्रत करते है कल उनके व्रत का दिन है। ?? इस दिन राग आदि भावो को कम करके ब्रम्हचर्य के साथ रहना चाहिए। ☀ इस दिन धर्म करने से विशेषरूप से अशुभ कर्मो का नाश होता है। ☀ अपकी संतान को लौकिक शिक्षा के समान ही धर्म की शिक्षा जरुरी है।अपने बच्चों को पाठशाला भेजें।क्योकि धार्मिक शिक्षा वर्तमान में उनको तनाव मुक्त जीवन व् शांति प्रदान करेगी ही साथ ही भविष्य में नरक,तिर्यन्च आदि अधोगतियों से बचायगी। ?तिथी - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ?? -
जय जिनेन्द्र बंधुओं, कल २४ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ महावीर भगवान का जन्म कल्याणक पर्व है। ?? कल अपने नजदीकी जिनालय में जाकर धर्म प्रभावना की गतिविधयों में अवश्य ही सम्मलित हों। ?? हम सभी को परस्पर एक दूसरे को वीर प्रभु के जन्म-कल्याणक पर्व की बधाइयाँ और शुभकामनाएं प्रेषित करना चाहिए, क्योंकि वास्तव में यह अवसर ही परस्पर बधाई देने का अवसर है। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??
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देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 6 -8
Abhishek Jain commented on Sneh Jain's blog entry in Apbhramsa - Language & Literature
बहुत सुंदर प्रश्नोत्तरी -
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१३ ? "ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर" एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज कहने लगे-" हमारी भक्ति करने वाले को जैसे हम आशीर्वाद देते हैं, वैसे ही हम प्राण लेने वालों को भी आशीर्वाद देते हैं।उनका कल्याण चाहते हैं।" इन बातों की साक्षात परीक्षा राजाखेड़ा के समय हो गई। ऐसे विकट समय पर आचार्य महराज का तीव्र पुण्य ही संकट से बचा सका, अन्यथा कौन शक्ति थी जो ऐसे योजनाबद्ध षड्यंत से जीवन की रक्षा कर सकती? कदाचित आचार्य महराज का विहार ह्रदय की प्रेरणा के अनुसार हो गया होता, तो राजाखेड़ा कांड नहीं होता, किन्तु भवितव्य अमित है। और भी जगह देखा गया है कि भक्त लोग महराज से अनुरोध करते थे और करुणा भाव से वे लोगों का मन रखते थे, तब प्रायः गड़बड़ी हुई है। जब भी महराज ने आत्मा की आवाज के अनुसार काम किया तब कुछ भी बाधा नहीं आयी। ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल नवमीं?
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धर्म संकट - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१२
Abhishek Jain posted a blog entry in चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागरजी महराज
जय जिनेन्द्र बंधुओं, पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन के इस प्रसंग को जानकर आपको बहुत सारी बातें देखने को मिलेगीं। साम्य मूर्ति पूज्य शान्तिसागरजी महराज के सम्मुख बड़ी बड़ी विपत्तियाँ यूँ ही टल जाती थीं, यह उनकी महान आत्मसाधना का ही प्रतिफल था। वर्तमान में पूज्य आचार्य विद्यासागरजी महराज तथा अन्य और भी मुनिराजों के जीवन का अवलोकन करने से अनायास ही ज्ञात हो जायेगा। दिगम्बर मुनिराज की अद्भुत क्षमा का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि नंगी तलवारों से उन पर प्रहार करने आए गुंडों के समूह के लोगों को भी उनके अपराध के फलस्वरूप कैद से छुड़वाने के लिए वह यह कहकर आहार को न निकले कि "मेरे कारण यह जेल में दुख भोग रहा है तो ऐसे मैं कैसे आहार को निकल सकता हूँ। ऐसे प्रसंगों को हमको स्वयं जानना चाहिए और अन्य सभी लोगों को भी दिगम्बर मुनिराजों की अनंत क्षमा से परिचित कराना चाहिए। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१२ ? "धर्म संकट" अब पाँचवा दिन आया, किसे कल्पना थी कि आज कल्पनातीत उपद्रव होगा, किन्तु सुयोग की बात कि उस दिन आचार्य महराज चर्या के हेतु कुछ पूर्व निकल गए थे। आहार की विधि भी शीघ्र सम्पन्न हो गई। सब त्यागी लोग चबूतरे पर सामायिक करने का विचार कर रहे थे, आचार्यश्री ने आकाश पर दृष्टि डाली और उन्हें कुछ मेघ दिखाई दिए। यथार्थ में वे जल के मेघ नहीं, विपत्ति की घटा के सूचक बादल थे। उनको देखकर आचार्यश्री ने कहा कि 'आज सामायिक भीतर बैठकर करो'। गुरुदेव के आदेश का सबने पालन किया। सब मुनिराज आत्मा के ध्यान में मग्न हो गए। सर्व जीवों के प्रति हमारे मन में समता का भाव है, यह उन्होंने अपने मन में पूर्णतः चिंतवन किया और तत्व चिंतन भी प्रारम्भ किया। अन्य श्रावक लोग अतिथि संविभाग कार्य के पश्चात अपने-२ भोजन में लगे। इतने में क्या देखते हैं, लगभग ५०० गुंडे नंगी चमचमाती तलवार लेकर मुनि संघ पर प्रहार करने के हेतु छिद्दी ब्राम्हण के साथ वहाँ आ गए। मुनिराज आज बाहर ध्यान नहीं कर रहे थे, इससे उनकी आक्रमण करने की पाप भावना मन के मन में ही रही आयी। उन नीचों ने जैन श्रावकों पर आक्रमण किया। श्रावकों ने यथायोग्य साधनों से मुकाबला किया। श्रावकों ने जोर की मार लगाकर उन आतताइयों को दूर भगाया था, किन्तु शस्त्र सज्जित होने के कारण वे पुनः बढ़ते आते थे, ताकि जैन साधुओं के प्राणों के साथ होली खेलें। श्रावक भी गुरुभक्त थे। प्राणों की परवाह न करते हुए उनसे खूब लड़े। किसी का हाथ कटा किसी की अंगुली कटी, जगह-२ चोट आई। इतने में संध्या को रियासत की सेना आयी, तब इन नर पिशाचों का उपद्रव रुका। छिद्दी नामक ब्राम्हण पकड़ लिया गया। उस उपद्रव के समय संघ के साधुओं में भय का लेश भी नहीं था, वे ऐसे बैठे थे, मानों कोई चिंता की बात ही न होवे। उन्होंने अद्भुत आत्म संयम का परिचय दिया। उस समय मेघो ने भयंकर वर्षा कर दी थी, इससे उपद्रवकारियों का मनोबल सफल न हो पाया। प्रकृति ने धर्म रक्षा में योग दया था। पुलिस के बड़े-२ अधिकारी मुनि महाराजों के पास आये। उनके दर्शन कर उनके मन में उपद्रव कारियों के प्रति भयंकर क्रोध जागृत हुआ। वे सोचने लगे, ऐसे महात्मा पर जुल्म करने की उन नरपिशाचों ने चेष्टा कर बड़ा पाप किया। उनको कड़ी से कड़ी सजा देंगे। ?साम्य भाव अर्थात विश्व बंधुत्व? प्रभात का समय आया। आचार्य महराज ने यह प्रतिज्ञा की थी, कि जब तक तुम छिद्दी ब्राम्हण को हिरासत से नहीं छोड़ोगे, तब तक हम आहार नहीं लेंगे। आचार्य महराज के व्यवहार को देखकर कौन कहेगा कि इनकी दृष्टि में भी कोई शत्रु नाम की प्राणधारी मूर्ति है? अपने अनन्त प्रेम से ये समस्त विश्व को मंगलमय बनाते हैं। ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ? ?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल अष्टमी? -
जय जिनेन्द्र बंधुओं, आज जिस प्रसंग का उल्लेख करने जा रहा हूँ वह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग है। दो दिनों में इसका उल्लेख किया जायेगा। पूज्य शान्तिसागरजी महराज की अपार क्षमा का यह बहुत बड़ा उदाहरण है। लगभग पिछले छह महीने से इस प्रसंग का उल्लेख करना चाह रहा था आज इस प्रसंग को प्रस्तुत कर पा रहा हूँ। यह वृत्तांत हम सभी को जानना चाहिए और अपार क्षमायुक्त दिगम्बर मुनिराज के विशाल जीवन से जन-२ को अवगत कराना चाहिए। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३११ ? "राजाखेड़ा में उपसर्ग" पूज्य शान्तिसागरजी महराज अपने संघ के साथ मुरैना, धौलपुर होते हुए ६ फरवरी सन १९३० को राजाखेड़ा पहुँचा। यहाँ की धार्मिक समाज ने संघ की भव्य आगवानी की। जिनमंदिर के समीपवर्ती भवन में आचार्य महराज सप्तर्षि शिष्यों सहित ठहरे थे। उसके सामने के चबूतरे पर सब त्यागी लोग घ्यान, अध्यन, सामायिक करते थे। एक सभा मंडप पास में बनाया गया था, जहां तीन दिन तक धर्म प्रभावना हुई। कोई विध्न का लेश भी न था। उस समय आचार्य महराज के अंतःकरण ने बिहार करने की प्रेरणा की, किन्तु आगत अनेक पंडितों आदि के आग्रह का विचार कर उन्होंने विहार नहीं किया। चौथा दिन भी सानंद व्यतीत हो गया। पांचवा दिन आया। राजाखेड़ा में कुछ पापी लोग, ज़ो संकट का पहाड़ पटकने के पाप-प्रयत्न में जोर से संलग्न थे। इसी से आचार्यश्री के पवित्र अंतःकरण ने प्रस्थान करने का परामर्श किया था, किन्तु सद्भावना वश लोकनुरोध का विचार कर वे रुक गए थे। आगे का वृतांत अगले प्रसंग में.... ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ से ? ?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल सप्तमी?
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☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं, आज का प्रसंग अवश्य पढ़ें। इस प्रसंग को पढ़कर आपको ज्ञात होगा कि किस तरह दिगम्बर मुनिराज अपने ऊपर आये समस्त उपसर्गों को अद्भुत समता के साथ सहन करते हैं और कष्टों के प्रति ग्लानि के भाव नहीं लाते भले ही उनको अपना शरीर ही क्यों न त्यागना पढे। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३१० ? "अनंतकीर्ति मुनिराज की समाधि १" किसी को पता न था, कि मुनिराज को पुराना मृगी का रोग था, अग्नि का संपर्क पाकर अपस्मार का वेग हो गया। उससे मूर्छित होकर वे गिर गए और उनका पैर सिगड़ी की अग्नि के भीतर पड़ गया। पैर से जो रक्तधारा बही, उसने उस अग्नि को बुझाया। होश में आने के बाद मुनिराज ने सच्चे महावीरों के समान दृढ़वृत्ति का परिचय दिया तथा शांत भाव से द्वादश अनुप्रेक्षाओं का चिंतवन पूर्वक उस असह्य वेदना को सहन किया, चुप चाप मौन ही रहे आए। प्रभात हुआ। दर्शनार्थी आये। भीषण दृश्य देखकर घबरा गए। अब समाज बड़ा दुखी हुआ, लेकिन एक का दुख दूसरा नहीं बांट सकता है? संयम अविरोधी उपचार किए गए, किन्तु वे फलप्रद न हुए। प्रायः मुनि जीवन में संयमी रहने से रोग आता नहीं है, और यदि कोई बीमारी असाता के उदयवश आई तो शरीर को समाप्त होने से विलंब नहीं लगता है। श्री अनंतकीर्ति मुनिराज के शरीर में धनुर्वात रोग ने आक्रमण किया। लोग किंकर्तव्यविमूढ़ थे। बड़े-बड़ेविद्वान थे, किन्तु कर्मों के प्रचण्ड प्रहार के आगे पंडिताई क्या करेगी? उस रोग के कारण वे महराज मूर्छित हो जाते थे। सारा पैर जला है। उसकी वेदना शांत भाव से सहन करते थे। अब नया भीषण रोग आ गया। उस अवस्था में उनके मुख में कोई शब्द निकलते थे, तो 'अरिहंता सीमंधरा'। उस समय वे दुखी श्रावकों को उल्टा साहस देते हुए कहते थे, 'तुम क्यों घबराते हो, शरीर नहीं चलता, उसे छोड़ देना, रत्नत्रय धर्म नहीं छोड़ना' यह कहकर पुनः 'अरिहंता सीमंधरा' उच्चारण करते थे। उनकी स्थिरता, निस्पृहता, वैराग्यभाव आदि देखकर आदमी चकित हो जाता था। ऐसी स्थिति में दिखने लगता है कि इस आत्मा में भेद-विज्ञान का कितना उज्ज्वल प्रकाश है? मूर्च्छा आने पर चुप हो जाते, अन्यथा 'अरिहंता सीमांधरा' शब्द कुछ देर तक सुनाई देता था। अब प्रभु नाम लेते-लेते प्राणों ने उर्ध्वलोक प्रयाण किया। देखा तो ज्ञात हुआ कि महराज ने स्वर्गारोहण कर दिया। ऐसी विशुद्ध आत्मा का दाह संस्कार बस्ती के बाहर योग्य स्थल पर किया गया था। इस कारण मुरैना अनंतकीर्ति मुनिराज की समाधि भूमि के के रूप में मान्य है। धन्य है संसार की यह सर्वोत्कृष्ट निर्ग्रन्थ अवस्था...नमोस्तु,नमोस्तु,नमोस्तु ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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जय जिनेन्द्र बंधुओं, आज का प्रसंग प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य लोगों को मुनि महराज की वैयावृत्ति के बारे में सचेत करना है। हमेशा हम सभी को साधुओं की वैयावृत्ति अत्यंत सचेत रहकर करना चाहिए क्योंकि अच्छे भाव होते हुए भी हमारे क्रियाकलापों से कभी-२ उनपर उपसर्ग भी आ जाते हैं। ? अमृत माँ जिनवाणी से - ३०९ ? "अनंतकीर्ति मुनिराज की समाधि" पूज्य शान्तिसागरजी महराज ससंघ जैन धर्म के मूर्धन्य विद्वान पंडित गोपालदास जी बरैयाजी की जन्मभूमि मुरैना पहुँचा। लेखक ने किसी समय मुरैना में घटित एक दुखद घटना का उल्लेख किया है। जिसको जानकर हम सभी श्रावकों को हमेशा के लिए अपना विवेक जागृत करना चाहिए। पंडित गोपालदास जी की जैन धर्म के श्रेष्ठ विद्वानों में गणना होती थी। उनकी कीर्ति से आकर्षित होकर निल्लीकर (दक्षिण) से एक निर्ग्रन्थ मुनिराज १०८ अनंतकीर्ति महराज ज्ञान लाभ हेतु सन १९१९ के लगभग मुरैना पधारे थे, किन्तु दुरदेव वश उनकी मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाई और शीघ्र ही उनका स्वर्गवास हो गया। वह घटना भी बड़ी विचित्र थी। मुरैना की मिट्टी में रेत का अंश होने से वह गर्मी में भीषण उष्ण हो जाती है। और ठंड में अत्यंत शीतल होती है। उस जमाने में दिगम्बर मुनिराज का उत्तर भारत में कभी किसी को दर्शन नहीं हुआ था, अतः एक भक्त भाई ने सोचा सर्दी की भीषणता से जब हमें असह्य पीढ़ा होती है, तब इन दिगम्बर गुरु महराज को बहुत कष्ट होगा, इससे उसने जिस कमरे में महराज का निवास था, वहाँ एक सिगड़ी जलते हुए कोयलों से भरकर रख दी तथा कमरा बंद कर दिया। उसने मन में सोचा, इसमें जो दोष होगा वह मुझे लग जाएगा। रात्रि का समय है। महराज ध्यान में हैं, कुछ बोलेंगे नहीं। कल कुछ कहेंगे तो देखा जाएगा। प्रसंग का अगला भाग अगले प्रसंग में..... ? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ में ? ?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल ४?