अनंतकीर्ति मुनिराज की समाधि - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०९
जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज का प्रसंग प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य लोगों को मुनि महराज की वैयावृत्ति के बारे में सचेत करना है। हमेशा हम सभी को साधुओं की वैयावृत्ति अत्यंत सचेत रहकर करना चाहिए क्योंकि अच्छे भाव होते हुए भी हमारे क्रियाकलापों से कभी-२ उनपर उपसर्ग भी आ जाते हैं।
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३०९ ?
"अनंतकीर्ति मुनिराज की समाधि"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज ससंघ जैन धर्म के मूर्धन्य विद्वान पंडित गोपालदास जी बरैयाजी की जन्मभूमि मुरैना पहुँचा। लेखक ने किसी समय मुरैना में घटित एक दुखद घटना का उल्लेख किया है। जिसको जानकर हम सभी श्रावकों को हमेशा के लिए अपना विवेक जागृत करना चाहिए।
पंडित गोपालदास जी की जैन धर्म के श्रेष्ठ विद्वानों में गणना होती थी। उनकी कीर्ति से आकर्षित होकर निल्लीकर (दक्षिण) से एक निर्ग्रन्थ मुनिराज १०८ अनंतकीर्ति महराज ज्ञान लाभ हेतु सन १९१९ के लगभग मुरैना पधारे थे, किन्तु दुरदेव वश उनकी मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाई और शीघ्र ही उनका स्वर्गवास हो गया।
वह घटना भी बड़ी विचित्र थी। मुरैना की मिट्टी में रेत का अंश होने से वह गर्मी में भीषण उष्ण हो जाती है। और ठंड में अत्यंत शीतल होती है।
उस जमाने में दिगम्बर मुनिराज का उत्तर भारत में कभी किसी को दर्शन नहीं हुआ था, अतः एक भक्त भाई ने सोचा सर्दी की भीषणता से जब हमें असह्य पीढ़ा होती है, तब इन दिगम्बर गुरु महराज को बहुत कष्ट होगा, इससे उसने जिस कमरे में महराज का निवास था, वहाँ एक सिगड़ी जलते हुए कोयलों से भरकर रख दी तथा कमरा बंद कर दिया।
उसने मन में सोचा, इसमें जो दोष होगा वह मुझे लग जाएगा। रात्रि का समय है। महराज ध्यान में हैं, कुछ बोलेंगे नहीं। कल कुछ कहेंगे तो देखा जाएगा।
प्रसंग का अगला भाग अगले प्रसंग में.....
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ में ?
?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल ४?
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