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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

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  1. अपने में अपना परमातम, अपने से ही पाना रे। अपने को पाने अपने से, दूर कहीं नहीं जाना रे॥ अपनी निधि अपने में होगी, अपने को अपनेपन दे, अपनी निधि की विधि अपने में, अपना साधन आतम रे, अपना अपना रहा सदा ही, परिचय ही को पाना रे, अपने को पाने अपने से... अपने जैसे जीव अनन्ते, अपने बल से सेते हुए, अपनी प्रभुता की प्रभुता ही, पहचानी प्रसेते हुए, अपनी प्रभुता नहीं बनाना, अपने से है पाना रे, अपने को पाने अपने से...
  2. शांति सुधा बरसाए जिनवाणी शांति सुधा बरसाए जिनवाणी, वस्तुस्वरूप बताए जिनवाणी ॥ पूर्वापर सब दोष रहित है, वीतराग मय धर्म सहित है, परमागम कहलाए जिनवाणी ।१। मुक्ति वधू के मुख का दरपण, जीवन अपना कर दें अरपण, भव समुद्र से तारे जिनवाणी ।२। रागद्वेष अंगारों द्वारा, महाक्लेश पाता जग सारा, सजल मेघ बरसाए जिनवाणी ।३। सात तत्त्व का ज्ञान करावे, अचल विमल निज पद दरसावे, सुख सागर लहराए जिनवाणी ।४।
  3. मोह की महिमा देखो क्या तेरे मन में समाई, अपनी ही महिमा भुलाई तूने अपनी ही महिमा ना आई काहे अरिहन्तो के कुल को लजाया, काहे जिनवाणी माँ का कहना भुलाया । काहे मुनिराजों की सीख ना मानी, सिद्ध समान शक्ति, हरकत बचकानी, अपने ही हाथों अपने घर में ही आग लगाई ॥ अपनी ही.. समवसरण में जिनवर, इन्द्रों ने गाया, सौ सौ इन्द्रों के मध्य सबको समझाया । अपनी शुद्धात्मा को भगवन बताया, भव्यों ने समझा अंदर अनुभव में आया, जानो और देखो चेतन इसमें ही तेरी भलाई ॥ अपनी ही.. काहे अपनाये तूने माटी के ढेले, कहता तु सोना चांदी, सिक्के व धेले । पुद्गल अचेतन से प्रीती बढाई, प्रभुता को भूला पामर कृति बनाई, रघुकुल के राम तूने काहे को रीति गमाई ॥ अपनी ही.. आतम आराधना का आतम ही मंच है, जिसमें परभावों का ना रंच प्रपंच है । कोई ना स्वामी जिसमें कोई ना चाकर, बंसी बजैया तूही तेरा नटनागर, जिसने भी मुक्ति पाई अस्ति की मस्ती में पाई ॥ अपनी ही..
  4. सांची तो गंगा यह सांची तो गंगा यह वीतरागवानी अविच्छन्न धारा निज धर्मकी कहानी ॥टेक॥ जामें अति ही विमल अगाध ज्ञानपानी जहाँ नहीं संशयादि पंककी निशानी ।१। सप्तभंग जहँ तरंग उछलत सुखदानी संतचित मरालवृंद रमैं नित्य ज्ञानी ।२। जाके अवगाहनतैं शुद्ध होय प्रानी भागचन्द निहचै घटमाहिं या प्रमानी ।३।
  5. धन्य धन्य वीतराग वाणी धन्य धन्य वीतराग वाणी, अमर तेरी जग में कहानी चिदानन्द की राजधानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।टेक।। उत्पाद व्यय और ध्रोव्य स्वरूप, वस्तुमबखानी सर्वज्ञ भूप । स्याद्वाद तेरी निशानी, अमर तेरी जग में कहानी ।१। नित्य अनित्य अरू एक अनेक, वस्तुकथंचित भेद अभेद । अनेकान्त रूपा बखानी, अमर तेरी जग में कहानी ।२। भाव शुभाशुभ बंध स्वरूप, शुद्ध चिदानन्दमय मुक्ति रूप । मारग दिखाती है वाणी, अमर तेरी जग में कहानी ।३। चिदानन्द चैतन्य आनन्दधाम, ज्ञान स्वभावी निजातम राम । स्वाश्रय से मुक्ति बखानी, अमर तेरी जग में कहानी ।४।
  6. चेतन अपनो रूप निहारो, नहीं गोरो नहीं कारो दर्शन ज्ञान मयी तिन मूरत, सकल कर्म ते न्यारो ॥ जाकी बिन पहचान किये ते, सहो महा दुख भारो, जाके लखे उदय हुए तत्क्षण, केवलज्ञान उजारो ॥ कर्म जनित पर्याय पाय ना, कीनो आप पसारो, आपा पर स्वरूप ना पिछान्यो, तातें सहो रुझारो ॥ अब निज में निज जान नियत कहां सो सब ही उरझारो, जगत राम सब विधि सुखसागर, पदी पाओ अविकारो ॥
  7. ॐ जय शीतलनाथ स्वामी, स्वामी जय शीतलनाथ स्वामी । घृत दीपक से करू आरती, घृत दीपक से करू आरती । तुम अंतरयामी, ॐ जय शीतलनाथ स्वामी ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी० भदिदलपुर में जनम लिया प्रभु, दृढरथ पितु नामी २ । मात सुनन्दा के नन्दा तुम २, शिवपथ के स्वामी ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी० जन्म समय इन्द्रो ने, उत्सव खूब किया, स्वामी उत्सव खूब किया । मेरु सुदर्शन ऊपर २, अभिषेक खूब किया ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी० पंच कल्याणक अधिपति, होते तीर्थंकर ,स्वामी होते तीर्थंकर । तुम दसवे तीर्थंकर 2, हो प्रभु क्षेमंकर ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी० अपने पूजक निन्दक के प्रति, तुम हो वैरागी, स्वामी तुम हो वैरागी । केवल चित्त पवित्र करन नित 2, तुम पूजे रागी ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी० पाप प्रणाशक सुखकारक, तेरे वचन प्रभो ,स्वामी तेरे वचन प्रभो । आत्मा को शीतलता शाश्वत २, दे तब कथन विभो ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी० जिनवर प्रतिमा जिनवर जैसी,हम यह मान रहे,स्वामी हम यह मान रहे। प्रभो चंदानामती तब आरती २, भाव दुःख हान करें ॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी०
  8. जिनवाणी अमृत रसाल जिनवाणी अमृत रसाल, रसिया आवो जी सुणवा ॥टेक॥ छह द्रव्यों का ज्ञान करावे, नव तत्त्वों का रहस्य बतावे, आतम तत्त्व है महान रसिया आवोजी ।१। विषय कषाय का नाश करावे, निज आतम से प्रीति बढ़ावे, मिथ्यात्व का होवे नाश रसिया आवोजी ।२। अनेकान्तमय धर्म बतावे, स्याद्वाद शैली कथन में आवे, भवसागर से होवे पार रसिया आवोजी ।३। जो जिनवाणी सुन हरषाए, निश्चय ही वह भव्य कहावे, स्वाध्याय तप है महान् रसिया आवोजी ।४।
  9. तू जाग रे चेतन देव तुझे जिनदेव जगाते हैं । तेरे अंदर में आनन्द के गीत तुझे संगीत न भाते हैं ॥ परपद अपद है, परपद अपद है तुझको न शोभा देता अपने ही रंग में,अपनी ही धुन में रमजा तू संतों ने घेरा तेरी महिमा अगम अनूप, तुझे जिनदेव जगाते हैं ॥ इस पल भी जीना,निज बलपे जीना,शोभावे सन्मुख ही जीना दो दिन का मेला फ़िरतू अकेला कोई है जग का कहीं ना सुन समयसार संगीत तुझे जिनदेव सुनाते हैं ॥ चैतन्य रस में, आनन्द के रस में, शान्ति के रस में नहाले प्रभुता के रस में,भीरुता के रस में,वैराग्य रस में मजा ले फ़िर सब गावें तेरे गीत, तुझे जिनदेव जगाते हैं ॥
  10. तुम्हारे दर्श बिन स्वामी तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है, छवि वैराग्य तेरी सामने आँखों के फिरती है ॥ तुम्हारे... निराभूषण विगातदुशन, परम आसन, मधुर भाषण। नजर नैंनो की आशा की अनि पर से गुजरती है ॥ तुम्हारे नहीं कर्मों का डर हमको, कि जब लगे ध्यान चरनन में। तेरे दर्शन से सुनते है करम रेखा बदलती है ॥ तुम्हारे... मिले गर स्वर्ग की संपत्ति, अचंभा कौन सा इसमें। तुम्हें जो नयन भर देखें, गति दुर्गति ही टलती है ॥तुम्हारे हजारों मूर्तियाँ हमने बहुत सी अन्य मत देखी। शांति मूरत तुम्हारी सी नहीं नजरों में चढ़ती है ॥ तुम्हारे.. जगत सिरताज हो जिनराज सेवक को दरश दीजे। तुम्हारा क्या बिगड़ता है मेरी बिगड़ी सुधरती है ॥ तुम्हारे.. .
  11. जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । मन वच तन से, तुमको वन्दु २ जय अन्तरयामी प्रभु जय अन्तरयामी जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । गर्भ जनम जब हुआ आपका 2 तीन लोक हर्षे स्वामी तीन लोक हर्षे इन्द्र कियो अभिषेक शिखर पर २ शिव मग के स्वामी बोलो शिव मग के स्वामी जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । पंचम चक्री भये आप ही २ षट खंड के स्वामी, प्रभु षट खंड के स्वामी राज विभव के भोगे प्रभु जी २ कामदेव नामी, बोलो कामदेव नामी जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । अतुल विभव को तृणवत त्यागे २ हुए कर्म नाशी प्रभुजी, हुए कर्म नाशी भये आप तीर्थंकर प्रभु जी २ शिव रमणी स्वामी, बोलो शिव रमणी स्वामी जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । वीर सिंधु को नमस्कार कर २ आरती करू थारी, प्रभु आरती करू थारी सूरज शिवपुर पावो प्रभु जी २ महा सोख्य धारी बोलो महा सोख्य धारी जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी । मन वच तन से, तुमको वन्दु २ जय अन्तरयामी प्रभु जय अन्तरयामी जय शांतिनाथ स्वामी, प्रभु जय शांतिनाथ स्वामी ।
  12. मिलता है सच्चा सुख केवल मिलता है सच्चा सुख केवल, भगवान तुम्हारे चरणों में मेरी विनती है पल-पल छिन-छिन,रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में चाहे बैरी कुल संसार रहे, मेरा जीवन मुझ पर भार रहे चाहे मौत गले का हार बने, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में॥ चाहे संकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारों ओर अंधेरा हो पर चित्त न मेरा डगमग हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में॥ चाहे अग्नि में भी जलना हो, चाहे कांटों पे भी चलना हो चाहे छोड के देश निकलना हो,रहे ध्यान तुम्हारे चरणोंमें ॥ जिव्हा पर तेरा नाम रहे, तेरी याद सुबह और शाम रहे बस काम ये आठों धाम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ॥
  13. मैं दर्शन ज्ञान स्वरूपी हूं, मैं सहजानन्द स्वरूपी हूं ॥ हूं ज्ञान मात्र परभाव शून्य, हूं सहज ज्ञान धन स्वयं पूर्ण, हूं सत्य सहज आनन्द धाम, मैं सहजानन्द स्वरूपी हूं॥ हूं खुद का ही कर्ता भोक्ता, पर में मेरा कुछ काम नहीं, पर का न प्रवेश न कार्य यहां, मैं सहजानन्द स्वरूपी हूं ॥ आओ उतरो रमलो निज में,निज में निज की दुविधा ही क्या। है अनुभव रस से सहज प्राप्त, मैं सहजानन्द स्वरूपी हूं ॥
  14. बाहुबली भगवान का मस्तकाभिषेक बाहुबली भगवान का मस्तकाभिषेक, बारह वर्षों से हम इसकी राह रहे थे टेक, धन्य धन्य वे लोग यहां जो आज रहे सिर टेक ॥ मस्तकाभिषेक.... महामस्तकाभिषेक ॥ बाहुबली.. बीते वर्ष सहस्त्र मूर्ति ये तप की गढी हुई, खडे तपस्वी का प्रतीक बन तब से खडी हुई श्री चामुण्डराय की माता, इसका श्रेय उन्हीं को जाता उनके लिये गढी प्रतिमा से लाभान्वित प्रत्येक॥धन्य...॥ ऋषभ देव पितु मात सुनंदा भ्राता भरत समान, घुट्टी में श्री बाहुबली को मिला धर्म का ज्ञान चक्रवर्ती का शीश झुकाकर प्रभुता छोडी प्रभुता पाकर विजय गर्व से पहले प्रभु ने धरा दिगम्बर वेख॥धन्य..॥ पर्वत पर नर नारी चले कलशों में नीर भरे, होड लगी अभिषेक प्रभु का पहले कौन करे। नीर क्षीर की बहती धारा, फ़िर भी ना भीगा तन सारा। ऐसी अन्य विशाल मूर्ति का कहीं नहीं उल्लेख॥धन्य...॥ ऐसा ध्यान लगाया प्रभु को रहा ना ये भी ध्यान, किस किस ने चरणार्बिन्दु में बना लिया है स्थान। बात उन्हें ये भी ना पता थी तन लिपटी माधवी लता थी। ये लाखों में एक नहीं हैं, दुनिया भर में एक॥ धन्य...॥ महक रहे चंदन केशर पुष्पों की झडी लगी, देखन को यह दृश्य भीड यहां कितनी बडी लगी ऐसी छटा लगे मनभावन, फ़ागुन बन बरसे क्यूं सावन आज यहां वे जुडे जिन्होंने जोडे पुण्य अनेक॥ धन्य...॥ अपने गुरुवर सहित पधारे मुनि श्री विद्यानंद, चारु कीर्ति की सौम्य छवि लख हर्षित श्रावक वृंद नगर नगर से घूम घुमाकर आया मंगल कलश यहां पर एक सभी की भक्ति भावना लक्ष्य सभी का एक ॥धन्य...॥ गोमटेश का है संदेश धारो अपरिग्रह वाद, सब कुछ होते सब कुछ त्यागो वो भी बिना विषाद। भौतिक बल पर मत इतराओ, दया क्षमा की शक्ति बढाओ। आतम हित के हेतु हृदय में जागृत करो विवेक ॥धन्य..॥
  15. ओम जय पुष्पदन्त स्वामी, प्रभु जय पुष्पदंत स्वामी । काकंदी में जन्मे, त्रिभुवन नामी, ओम सब उतारे तेरी आरती ॥ ओम जय पुष्पदन्त स्वामी, प्रभु जय पुष्पदंत स्वामी । सब उतारे तेरी आरती, ओम सब उतारे तेरी आरती फाल्गुन कृष्णा नवमी पर, गर्भ कल्याण हुआ गर्भ० जयरामा सुग्रीव मात पितु, हर्ष महान हुआ २ ओम जय पुष्पदन्त स्वामी० मगसिर शुक्ला एकम, जन्म कल्याणक हैं २। तप कल्याणक से भी यह तिथि पावन हैं २॥ ओम जय पुष्पदन्त स्वामी० कार्तिक शुक्ला द्वितीया, घाति कर्म नाशा, स्वामी घाति० । पुष्पक वन में केवल ज्ञान सूर्य भासा, ज्ञान सूर्य ० ॥ ओम जय पुष्पदन्त स्वामी० भादों शुक्ला अष्टमी सम्मेदाचल से २। सकल कर्म निर्हित हो सिद्धालय पहुचे २॥ ओम जय पुष्पदन्त स्वामी० हम सब घृत दीपक ले, आरती को आये, स्वामी आरति० २। यही चन्दना मति कहे, भाव आरत नश जावे २॥ ओम जय पुष्पदन्त स्वामी०
  16. क्यूं करे अभिमान जीवन, है ये दो दिन का । इक हवा के झोंके से उड़ जाए ज्यों तिनका ॥ लाखों आए और चले गए,थिर न रह पाया ख़ाक बन जायेगी इक दिन, ये तेरी काया ये समय है आज तेरे आत्म चिंतन का ॥ खाली हाथों आया जग में, संग ना कुछ जाए कर्म तू जैसा करेगा, काम वो ही आए ज्ञान की ज्योति जगा, तम दूर कर मन का ॥ छोड़कर झंझट जगत के, शरण प्रभु की आ त्याग जप तप शील संयम,साधना चित ला दास है ये भक्त तेरा- वीर चरणन का ॥
  17. झीनी झीनी उडे रे गुलाल झीनी झीनी उडे रे गुलाल, चालो रे मंदरिया में। चालो रे मंदरिया में, चालो रे मंदरिया में ॥ म्हारा तो गुरुजी आतमज्ञानी,ज्ञान की जिसने ज्योत जगा दी ज्ञान का भरा रे भंडार, चालो रे मंदरिया में ॥ वीर प्रभु जी दया के सागर, महावीर प्रभु जी दया के सागर शीश झुकाऊं बारम्बार, चालो रे मंदरिया में ॥ वीर प्रभु के चरणों में आये, आकर चरणों में शीश नवाये हो रही जयजयकार, चालो रे मंदरिया में ॥
  18. गोमटेश जय गोमटेश गोमटेश जय गोमटेश, मम हृदय विराजो-२ गोमटेश जय गोमटेश, जय जय बाहुबली ॥ हम यही कामना करते है, कामना करते हैं, ऐसा आने वाला कल हो, हो नगर नगर में बाहुबली, सारी धरती धर्मस्थल हो... हम यही कामना ।१। हम भेदमतों के समझें पर, आपस में कोई मतभेद ना हो, ऐसे आचरण करें जिन पर,कोई क्षोभ ना हो कोई खेद ना हो, जो प्रेम प्रीत की शिक्षा दे, वही धर्म हमारा संबल हो ।२। आराध्य वही हो जिन सबने, मानवता का संदेश दिया, तुम जीयो सभी को जीने दो, सबके हित यह उपदेश दिया, उनके सिद्धान्तों को माने,और जीवन का पथ उज्जवल हो ।३ चिंतामणी की चिंता ना करें, जीवन को चिंतामणी जानें, परिग्रह ना अनावश्यक जोडें, क्या है आवश्यक पहचानें, क्षण भंगुर सुख के हेतु कभी, नहीं चित्त हमारा चंचल हो ।४। हम नहीं दिगम्बर श्वेताम्बर, तेरहपंथी स्थानकवासी, सब एक पंथ के अनुयायी, सब एक देव के विश्‍वासी, हम जैनी अपना धर्म जैन, इतना ही परिचय केवल हो ।५। सब णमोकार का जाप करें, और पाठ करें भक्तामर का, नित नियमित पालें पंचशील, और त्याग करें आडम्बर का, वो कर्म करें जिन कर्मों से, सारे संसार का मंगल हो ।६। वैराग्य हुआ जिस पल प्रभु को, कोई रोक नहीं पाया मग में, अपनी उपमा बन आप खडे, कोई और नहीं इन सा जग में, इनके सुमिरन से प्राप्त हमें, बाहुबल हो आतम बल हो ।७।
  19. जय पद्मप्रभु देवा, स्वामी जय पद्मप्रभु देवा । जय पद्मप्रभु देवा, स्वामी जय पद्मप्रभु देवा । तुम बिन कौन जगत में मेरा २, पार करों देवा २ जय पद्मप्रभु देवा, स्वामी जय पद्मप्रभु देवा ॥ तुम हो अगम अगोचर स्वामी हम हैं अज्ञानी २। अपरम्पार तुम्हारी महिमा, काहू ना जानी २ ॥ तुम बिन कौन जगत में मेरा० विघ्न निवारो संकट टारो, हम आये शरणा २ । कुमति हटा सुमति दीज्यो, कर जोड़ पड़े चरणा २॥ तुम बिन कौन जगत में मेरा० पाँव पड़े को पार लगाया सुख सम्पति दाता २ । श्रीपाल का कष्ट हटाकर, सुवर्ण तन कीना २॥ तुम बिन कौन जगत में मेरा०
  20. आओ रे आओ रे ज्ञानानंद की डगरिया, तुम आओ रे आओ, गुण गाओ रे गाओ, चेतन रसिया, आनंद रसिया ॥ बडा अचंभा होता है, क्यों अपने से अनजान रे, पर्यायों के पार देख ले, आप स्वयं भगवान रे ॥ आओ.. दर्शन ज्ञान स्वभाव में, नहीं ज्ञेय का लेश रे, निज में निज को जानकर, तजो ज्ञेय का वेश रे ॥ आओ.. मैं ज्ञायक मैं ज्ञान हूं, मैं ध्याता मैं ध्येय रे, ध्यान ध्येय में लीन हो, निज ही निज का ज्ञेय रे ॥ आओ
  21. महावीर स्वामी तुम्हारा सहारा महावीर स्वामी तुम्हारा सहारा, बिना आपके कौन जग में हमारा॥ जगत संकटों को, सदा आप हरते-२ तथा शांति संतोष, सुखपूर्ण करते-२ तुम्हीं कल्पतरू, कामधेनु तुम्हीं हो, सभी कामना पूर्ण कर्त्ता तुम्हीं हो ।१। महावीर स्वामी.. तुम्हीं रत्न चिंतामणी स्वर्णदाता-२ तुम्हीं पाप हर्त्ता तुम्हीं विघ्नधाता-२ तुम्हीं समदर्शी तुम्हीं वीतरागी, तुम्हीं सत्यवक्ता तुम्हीं सर्वत्यागी ।२। महावीर स्वामी.. तुम्हीं बुद्ध ब्रह्मा महेश्‍वर व शंकर-२ महादेव ईश्‍वर अशुभ के शयंकर-२ सती अंजना द्रौपदी सीता माता, मनोरम बनीली हुई जग विख्याता ।३। महावीर स्वामी.. सुदर्शन श्रीपाल तुम नाम ध्याया-२ सबों के दुखों को क्षणिक में मिटाया-२ नहीं आज शरणा प्रभुजी तुम्हारी, रहेंगे जगत में क्या फ़िर भी दुखारी ।४। महावीर स्वामी परम पूज्य श्रद्धेय तुमको जो ध्यावे, वही इन्द्र भगवान पदवी को पावे ॥ महावीर स्वामी..
  22. निजपुर में आज मची होरी ।।निज. ।।टेक ।। उमँगि चिदानँदजी इत आये, उत आई सुतीगोरी ॥निज.. लोकलाज कुलकानि गमाई, ज्ञान गुलाल भरी झोरी ॥निज.. समकित केसर रंग बनायो, चारित की पिचुकी छोरी ॥निज.. गावत अजपा गान मनोहर, अनहद झरसौं बरस्यो री ॥निज.. देखन आये बुधजन भीगे, निरख्यौ ख्याल अनोखो री ॥निज.
  23. जय नेमीनाथ स्वामी, प्रभु जय नेमीनाथ स्वामी जय नेमीनाथ स्वामी, प्रभु जय नेमीनाथ स्वामी तुम हो भव दधि तारक प्रभु जी, तुम हो भव दधि तारक प्रभु जी । अन्तर के यामि स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी ० समवशरण में आप विराजे, समवशरण में आप विराजे । खिरे मधुर वाणी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी ० सुन भवि परम तत्व को पावत, सुन भवि परम तत्व को पावत । सुख सम्यक ज्ञानी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी ० यक्ष यक्षिणी चंवर ढोरते, यक्ष यक्षिणी चंवर ढोरते । महिमा अब जानी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी ० तीन छत्र सिर पर तुम सोहे, तीन छत्र सिर पर तुम सोहे । ध्यावत मुनि ध्यानी स्वामी, जय नेमीनाथ स्वामी ० जय नेमीनाथ स्वामी, प्रभु जय नेमीनाथ स्वामी
  24. कभी वीर बनके महावीर कभी वीर बनके महावीर बनके,चले आना, दरस हमें दे जाना तुम ऋषभ रूप में आना, तुम अजित रूप में आना। संभवनाथ बनके, अभिनंदन बनके चले आना ॥ दरस.. तुम सुमति रूप में आना, तुम पदमरूप में आना। सुपार्श्‍वनाथ बनके चंदाप्रभु बनके चले आना ॥ दरस.. तुम पुष्प रूप में आना, शीतलनाथ रूप में आना। श्रेयांसनाथ बनके वासुपूज्य बनके चले आना ॥ दरस.. तुम विमल रूप में आना, तुम अनंत रूप में आना। धर्मनाथ बनके शांतिनाथ बनके चले आना ॥ दरस.. तुम कुंथु रूप में आना, अरहनाथ रूप में आना। मल्लिनाथ बनके मुनिसुव्रत बनके चले आना ॥ दरस.. नमिनाथ रूप में आना, नेमिनाथ रूप में आना॥ पार्श्‍वनाथ बनके वर्द्धमान बनके चले आना ॥ दरस..
  25. सीमंधर स्वामी, मैं चरनन का सीमंधर स्वामी, मैं चरनन का चेरा ॥टेक॥ इस संसार असार में कोई, और न रक्षक मेरा ॥सीमंधर.. लख चौरासी जोनी में मैं, फ़िरि फ़िरि कीनों फ़ेरा तुम महिमा जानी नहीं प्रभु, देख्या दु:ख घनेरा ॥ सीमंधर.. भाग उदयतैं पाइया अब, कीजे नाथ निवेरा । बेगी दया करी दीजिये मुझे, अविचल थन-बसेरा ॥सीमंधर.. नाम लिये अघ ना रहै ज्यों, ऊगें भान अंधेरा । भुधर चिंता क्या रही ऐसी, समरथ साहिब तेरा ॥सीमंधर ..
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