तू जाग रे चेतन देव तुझे जिनदेव जगाते हैं ।
तेरे अंदर में आनन्द के गीत तुझे संगीत न भाते हैं ॥
परपद अपद है, परपद अपद है तुझको न शोभा देता
अपने ही रंग में,अपनी ही धुन में रमजा तू संतों ने घेरा
तेरी महिमा अगम अनूप, तुझे जिनदेव जगाते हैं ॥
इस पल भी जीना,निज बलपे जीना,शोभावे सन्मुख ही जीना
दो दिन का मेला फ़िरतू अकेला कोई है जग का कहीं ना
सुन समयसार संगीत तुझे जिनदेव सुनाते हैं ॥
चैतन्य रस में, आनन्द के रस में, शान्ति के रस में नहाले
प्रभुता के रस में,भीरुता के रस में,वैराग्य रस में मजा ले
फ़िर सब गावें तेरे गीत, तुझे जिनदेव जगाते हैं ॥