चेतन अपनो रूप निहारो, नहीं गोरो नहीं कारो
दर्शन ज्ञान मयी तिन मूरत, सकल कर्म ते न्यारो ॥
जाकी बिन पहचान किये ते, सहो महा दुख भारो,
जाके लखे उदय हुए तत्क्षण, केवलज्ञान उजारो ॥
कर्म जनित पर्याय पाय ना, कीनो आप पसारो,
आपा पर स्वरूप ना पिछान्यो, तातें सहो रुझारो ॥
अब निज में निज जान नियत कहां सो सब ही उरझारो,
जगत राम सब विधि सुखसागर, पदी पाओ अविकारो ॥