आओ रे आओ रे ज्ञानानंद की डगरिया,
तुम आओ रे आओ, गुण गाओ रे गाओ,
चेतन रसिया, आनंद रसिया ॥
बडा अचंभा होता है, क्यों अपने से अनजान रे,
पर्यायों के पार देख ले, आप स्वयं भगवान रे ॥ आओ..
दर्शन ज्ञान स्वभाव में, नहीं ज्ञेय का लेश रे,
निज में निज को जानकर, तजो ज्ञेय का वेश रे ॥ आओ..
मैं ज्ञायक मैं ज्ञान हूं, मैं ध्याता मैं ध्येय रे,
ध्यान ध्येय में लीन हो, निज ही निज का ज्ञेय रे ॥ आओ