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मुनिश्री ब्रह्मानन्द महाराज की समाधि

मुनिश्री ब्रह्मानन्द महाराज की समाधि पंचम युग में चतुर्थकालीन चर्या का पालन करने वाले व्योवर्द्ध महातपस्वी परम् पूजनीय मुनिश्री ब्रह्मनन्द जी महामुनिराज ने समस्त आहार जल त्याग कर उत्कृष्ट समाधि पूर्वक देह त्याग दी। परम् पुज्य मुनिश्री ऐसे महान तपस्वी रहें है जिनकी चर्या का जिक्र अक्सर आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महामुनिराज संघस्थ साधुगण एवं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज प्रवचन के दौरान करते थे। पिड़ावा के श्रावकजनो ने मुनिश्री की संलेखना के समय अभूतपुर्व सेवा एवं वैयावर्ती की है

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६४ - पं गोपालदास बरैया के संपर्क में

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,                    आप जान रहे हैं एक ऐसे महापुरुष की आत्मकथा जिनका जन्म तो अजैन कुल में हुआ था लेकिन जो आत्मकल्याण हेतु संयम मार्ग पर चले तथा वर्तमान में सुलभ दिख रही जैन संस्कृति के सम्बर्धन का श्रेय उन्ही को जाता है।     प्रस्तुत अंशो से हम लोग देख रहे हैं पूज्य वर्णी ने कितनी सहजता से अपनी ज्ञान प्राप्ति की यात्रा में आई सभी बातों को प्रस्तुत किया है। ? संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"पं. गोपालदास वरैया के संपर्क में"*         

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भगवान ऋषभदेव मोक्ष कल्याणक पर्व

? *१५ जनवरी को प्रथम तीर्थंकर मोक्षकल्याणक पर्व*? जय जिनेन्द्र बंधुओं,             १५ जनवरी, दिन सोमवार, माघ कृष्ण चतुर्दशी की शुभ तिथि को इस अवसर्पणी काल के *प्रथम तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ ऋषभनाथ भगवान* का मोक्ष कल्याणक पर्व आ रहा है- ?? १५ जनवरी को सभी अपने-२ नजदीकी जिनालयों में सामूहिक निर्वाण लाडू चढ़ाकर मोक्षकल्याणक पर्व मनाएँ। ?? इस पुनीत अवसर धर्म प्रभावना के अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। ?? इस पुनीत अवसर मानव सेवा के कार्यक्रमों का भी आयोजन

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सभी को जय जिनेन्द्र,  संयम स्वर्ण महोत्सव में हम सभी कर रहे हैं आचार्य श्री के व्यक्तित्व को विश्व में फ़ैलाने का प्रयास, हमने भी की हैं शुरुआत, केवल whatsapp पर पूरा नहीं होगा प्रयास  सोशल मीडिया में दीजिये साथ, जुड़िये और करियें सम्पूर्ण समाज  को  जोड़ने का सफल प्रयास  *आपके देश व राज्य के  समाज के फेसबुक समूह से जुड़िये और समाज के सभी श्रावको को समूह से जोड़े * 1. Jain Samaj Andaman and Nicobar Islands https://www.facebook.com/groups/Jain.Samaj.Andaman.Nicobar.Islands 2. Jain Sa

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पं गोपालदास जी बरैया के संपर्क में - ६३

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,                    पूज्य वर्णीजी की प्रारम्भ से ही ज्ञानार्जन की प्रबल भावना थी तभी तो वह अभावजन्य विषय परिस्थियों में भी आगे आकर ज्ञानार्जन हेतु संलग्न हो पाये। भरी गर्मी में दोपहर में एक मील ज्ञानार्जन हेतु पैदल जाना भी उनकी ज्ञानपिपासा का ही परिचय है।       बहुत ही सरल ह्रदय थे गणेशप्रसाद। उनके जीवन का सम्पूर्ण वर्णन बहुत ही ह्रदयस्पर्शी हैं। ? संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?       *"पं. गोपालदास वरैया के संपर्क में"*                  

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पं गोपालदास जी बरैया के संपर्क में - ६२

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        यहाँ से गणेशप्रसाद का जैनधर्म के बड़े विद्वान पं. गोपालदासजी वरैयाजी से संपर्क का वर्णन प्रारम्भ हुआ। वर्णीजी ने यहाँ उस समय उनके गुरु पं. पन्नालालजी बाकलीवाल का भी उनके जीवन में बहुत महत्व बताया है।         वर्णीजी के अध्यन के समय तक सिर्फ हस्तलिखित ग्रंथ ही प्रचलन में थे। यह महत्वपूर्ण बात यहाँ से ज्ञात होती है। जिनवाणी की कितनी विनय थी उस समय के श्रावकों में कि ग्रंथों का मुद्रण भी योग्य नहीं समझते थे। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी? *

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महान मेला - ६१

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        यहाँ वर्णीजी द्वारा जयपुर मेले का वर्णन चल रहा है। इस मेले में जैनधर्म की बहुत ही प्रभावना हुई।       जयपुर नरेश द्वारा व्यक्त की जिनबिम्ब की महिमा बहुत सुंदर वर्णन है।      श्रीमान स्वर्गीय सेठ मूलचंदजी सोनी द्वारा मेले के आयोजन के कारण ही धर्म की अधिक प्रभावना हुई। यहाँ वर्णीजी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही- द्रव्य का होना पूर्वोपार्जित पुण्योदय है लेकिन उसका सदुपयोग बहुत ही कम पुण्यात्मा कर पाते हैं। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?

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महान मेला - ६०

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        यहाँ वर्णीजी ने जयपुर के मेले का उल्लेख किया है। मेले से तात्पर्य धार्मिक आयोजन से रहता है।        यहाँ पर वर्णी जी ने स्व. श्री मूलचंद जी सोनी अजमेर वालों का विशेष उल्लेख किया। उनकी विद्वानों के प्रति आदर की प्रवृत्ति से अपष्ट होता है कि जो जितना गुणवान होता है वह उतना विनम्र होता है। ऐसे गुणी लोगों के संस्मरण हम श्रावकों को भी दिशादर्शन करते हैं। ?संस्कृति संवर्धक गणेश प्रसाद वर्णी?                    *"महान मेला"*                     

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यह है जयपुर - ५९

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         यहाँ पूज्यवर्णी जी ने जयपुर में उस समय श्रावकों की धर्म परायणता को व्यक्त किया है। साथ ही वहाँ से पाठशालाओं आदि से निकले विद्वानों का भी उल्लेख किया है।        आप सोच सकते हैं कि इन सभी विद्वानों का तो मैंने नाम भी नहीं सुना, अतः उनसे मुझे क्या प्रयोजन।          मेरा मानना है कि पूज्य वर्णी जी द्वारा उल्लखित विद्वानों का वर्णन आज हम लोगों के लिए इतिहास की भाँति ही है। यह एक सौभाग्य ही है जो हमको गुणीजनों तथा उनके गुणों को जानने का अवसर मिल रहा है।

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चिरकांक्षित जयपुर - ५८

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       आजकी प्रस्तुती में गणेश प्रसाद के जयपुर में अध्ययन का उल्लेख तथा उनकी पत्नी की मृत्यु के समाचार मिलने आदि का उल्लेख है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?              *"चिरकांक्षित जयपुर"*                     *"क्रमांक - ५८"*           यहाँ जयपुर में मैंने १२ मास रहकर श्री वीरेश्वरजी शास्त्री से कातन्त्र व्याकरण का अभ्यास किया और श्री चन्द्रप्रभचरित्र भी पाँच सर्ग पढ़ा।        श्री तत्वार्थसूत्रजी का अभ्यास किया और एक अध्याय श्र

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चिरकांक्षित जयपुर - ५७

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         गणेश प्रसाद के अंदर लंबे समय से जयपुर जाकर अध्ययन करने की भावना चल रही थी। विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हुए वह जयपुर पहुँचे।        वर्णीजी बहुत ही सरल प्रवृत्ति के थे। आर्जव गुण अर्थात मन, वचन व काय की एकरूपता उनके जीवन से सीखी जा सकती है।         आज की प्रस्तुती में कलाकंद का प्रसंग आया, आत्मकथा में उनके द्वारा इसका वर्णन उनके ह्रदय की स्वच्छता का परिचय देता है। उस समय वह एक विद्यार्थी से व्रती नहीं थे।       अगली प्रस्तुती में उनके

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विद्याध्ययन का सुयोग - ५६

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,         बम्बई में गणेश प्रसाद का अध्ययन प्रारम्भ हो गया लेकिन जलवायु उनके स्वास्थ्य के अनुकूल न थी अस्वस्थ्य हो गये। यहाँ से पूना गए।          स्वास्थ्य ठीक होने पर बम्बई आए, वहाँ कुछ दिन बार पुनः ज्वर आने लगा। वहाँ से अजमेर का पास केकड़ी गया। कुछ दिन ठहरा वहाँ से गणेशप्रसाद चिरकाल से प्रतीक्षित स्थान जयपुर गए। कल से उसका वर्णन रहेगा। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?             *"विद्याध्ययन का सुयोग"*                      *क्रमांक - ५६*

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विद्याध्ययन का सुयोग - ५५

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,          ज्ञानप्राप्ति की प्रबल भावना रखने वाले गणेश प्रसाद का बम्बई से अध्ययन प्रारम्भ हो पाया। यही पर उनका परिचय जैनधर्म के मूर्धन्य विद्वान पंडित गोपालदासजी वरैया । जैन सिद्धांत प्रवेशिका इन्ही के द्वारा लिखी गई है।          बम्बई से अध्ययन प्रारम्भ होने तथा अवरोध प्रस्तुत होने का उल्लेख प्रस्तुत प्रसंग में है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?             *"विद्याध्ययन का सुयोग"*                      *क्रमांक - ५५*       मैं आ

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विद्याध्ययन का सुयोग - ५४

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,       गणेशप्रसाद के अंदर ज्ञानार्जन के प्रति तीव्र लालसा का पता इसी बात से लगता है कि वह अभावग्रस्त परिस्थितियों में भी अपने अध्ययन के लिए प्रयासरत थे। कुछ राशी जमा कर अध्ययन का ही प्रयास किया।     संस्कृत अध्ययन में परीक्षा उत्तीर्ण करने के कारण उन्हें पच्चीस रुपये का पुरुस्कार मिला। समाज के लोगों को प्रसन्नता हुई। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?             *"विद्याध्ययन का सुयोग"*                      *क्रमांक - ५४"*       यह

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विद्याध्ययन का सुयोग - ५३

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        आज की प्रस्तुती से हम जानेंगे कि गणेशप्रसाद ने बम्बई में ज्ञानार्जन हेतु कापियों को बेचकर धनार्जन किया। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?             *"विद्याध्ययन का सुयोग"*                      *क्रमांक - ५३"*         बाबा गुरुदयालसिंह ने कहा आप न तो हमारे संबंधी हैं। और न हम तुमको जानते ही हैं तुम्हारे आचारादि से अभिज्ञ नहीं हैं फिर भी हमारे परिणामों में तुम्हारे रक्षा के भाव हो गए।         इससे अब तुम्हे सब प्रकार की चि

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गजपंथा से बम्बई - ५२

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,        हम देख रहे हैं, जिनधर्म के मर्म को जानने की प्यास लिए गणेश प्रसाद कैसे अपने लक्ष्य प्राप्ति की और आगे बड़ रहे हैं। उनके पास तात्कालिक साधनों का तो अभाव था लेकिन धर्म के प्रति नैसर्गिक श्रद्धान व पुण्य का उदय जो अभावपूर्ण स्थिति में भी उनकी व्यवस्था बनती जा रही थी।       अगली प्रस्तुती में आप देखेंगे कि धर्म की इतनी प्रभावना करने वाले महापुरुष पूज्य वर्णीजी ने कभी बम्बई में कापियाँ बेचकर अपने आगे के अध्यन हेतु धनार्जन किया था।       बहुत ही रोचक है

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गजपंथा से बम्बई - ५१

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           शायद आपने सोचा भी नहीं होगा कि जैनधर्म इतना बड़ा मर्मज्ञ इतनी विषम परिस्थितियों से गुजरा होगा। बड़ा ही रोचक है पूर्ण वर्णीजी का जीवन। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                 *"गजपंथा से बम्बई"*                      *क्रमांक - ५१*        मैंने वह एक आना मुनीम को दे दिया। मुनीम ने लेने में संकोच किया। सेठजी भी हँस पड़े और मैं भी संकोचवश लज्जित हो गया, परंतु मैंने अंतरंग से दिया था, अतः उस एक आना के दान ने मेरा जीवन पलट द

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गजपंथा से बम्बई - ५०

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           पूज्य वर्णीजी का जीवन पलट देने वाली बात क्या थी? आज की प्रस्तुती में यह है। अवश्य पढ़े यह अंश।      एक आना बचा था वर्णीजी के पास भोजन के लिए, यदि सेठजी के यहाँ भोजन न किया होता तो वह भी खत्म हो जाता। इसलिए पवित्र मना वर्णीजी ने वह भाव सहित दान दे दिया। वर्णीजी ने स्वयं लिखा है कि भाव सहित मेरे द्वारा बचे एक आना के दान ने मेरा जीवन बदल दिया।        ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?                 *"गजपंथा से बम्बई"*        

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गजपंथा से बम्बई - ४९

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           बड़ा ही मार्मिक वृत्तांत है पूज्य वर्णीजी के जीवन का। ह्रदय को छू जाने वाला है।       अद्भुत तीर्थवंदना की भावना उस पावन आत्मा के अंदर। शरीर कृश होने के बाद भी पैदल गजपंथाजी से श्री गिरिनारजी जाने की भावना रख रहे हैं। जिनेन्द्र भक्ति हेतु आत्मबल के आगे जर्जर शरीर का कोई ख्याल ही नहीं था। तीन माह से अच्छी तरह भोजन नहीं हुआ था।       हम सभी पाठकों की पूज्य वर्णीजी का जीवन वृत्तांत पढ़कर आँखे भर आना एक सहज सी बात है। ?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रस

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कर्मचक्र - ४८

☀ जय जिनेन्द्र बंधुओं,           पूज्य वर्णीजी के जीवन में कितनी विषय परिस्थियाँ थी यह आज की प्रस्तुती ज्ञात होगा।        ज्वर जो एक दिन छोड़कर आता था वह दो दिन छोड़कर आने लगा। चार कम्बल ओढ़ने से भी ज्वर में ठंड शांत न होती जबकि एक कम्बल भी नहीं। शरीर में पकनू खाज हो गई। प्रतिदिन २० मील चलते थे और भोजन था ज्वार के आटे की रोटी नमक के साथ।     मार्ग में घोर जंगल में भोजन को रुके, बुखार आने से बेहोश हो गए। ऐसी-२ कठिन परिस्थितियों में भी पूज्य वर्णीजी वंदना के मार्ग में आगे बढ़ते रहे

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