गजपंथा से बम्बई - ५०
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
पूज्य वर्णीजी का जीवन पलट देने वाली बात क्या थी? आज की प्रस्तुती में यह है। अवश्य पढ़े यह अंश।
एक आना बचा था वर्णीजी के पास भोजन के लिए, यदि सेठजी के यहाँ भोजन न किया होता तो वह भी खत्म हो जाता। इसलिए पवित्र मना वर्णीजी ने वह भाव सहित दान दे दिया। वर्णीजी ने स्वयं लिखा है कि भाव सहित मेरे द्वारा बचे एक आना के दान ने मेरा जीवन बदल दिया।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"गजपंथा से बम्बई"*
*क्रमांक - ५०*
तीन मास से मार्ग के खेद से खिन्न था तथा जबसे माँ और स्त्री को छोड़ा, मड़ावरा से लेकर मार्ग में आज वैसा भोजन किया। दरिद्र को निधि मिलने में जितना हर्ष होता है उससे भी अधिक मुझे भोजन करने में हुआ।
भोजन के अनंतर वह सेठ मंदिर के भण्डार में द्रव्य देने के लिए गए। पाँच रुपये मुनीम को देकर उन्होंने जब रसीद ली तब मैं भी वहीं बैठा था।
मेरे पास केवल एक आना था और वह इसलिए बच गया था कि आज के दिन आरवी के सेठ के यहाँ भोजन किया था।
मैंने विचार किया था कि यदि आज अपना निजका भोजन करता तो वह एक आना खर्च हो जाता और ऐसा मधुर भोजन भी नहीं मिलता, अतः इसे भाण्डार में दे देना अच्छा है।
निदान, मैंने वह एक आना मुनीम को दे दिया। मुनीम ने लेने में संकोच किया। सेठजी भी हँस पड़े और मैं भी संकोचवश लज्जित हो गया, परंतु मैंने अंतरंग से दिया था, अतः उस एक आना के दान ने मेरा जीवन पलट दिया।
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
?आजकी तिथी- आषाढ़ कृष्ण १४?
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