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अहिंसा संगोष्ठी : अहिँसा विषय पर आपकी पंक्तियां


Saurabh Jain

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*~~```अहिंसा का पर्मोत्कृष्ट् रूप~```*~ 
कहा गया हैं की अभय अहिंसा का परिपाक है, वह अहिंसा की चरमसीमा है, अहिंसक न तो किसी से डरता है और न डराता है, भय को जीतने अहिंसा अपने आप अपनी पर्मोत्कृष्ट् पर प्रकट हो जाती है । 
🙏अहिंसा परमो धर्मः 🙏

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अहिंसा शब्द है अनमोल,घट-घट समाए

हिंसा जङ विषाद की ,आनंद अहिंसा कहाए

बंधन मे लिप्त प्रेम ही,हिंसा का भाव जगाए

मुक्त-स्वतंत्र प्रेम यदि तो,अहिंसा को जगाए । 

"अहिंसा परमो धर्मः " 

जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏

Edited by sanskriti Jain
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अहिंसा संगोष्ठी हमारा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है.

यदि हम इसका पूरा पालन नहीं कर सकते तो हमे इसकी भावना को अवश्य समझना चाहिए और जहां तक संभव हो हिंसा से दूर रहकर मानवता का पालन करना चाहिए.

इस प्रकार जिए की आपको कल मर जाना है.

सीखें उस प्रकार जैसे आपको सदा जीवित रहना है.

गांधीजी ने प्रभुवीर की वाणी से अहिंसा का पाठ सीखा.

हम इतने सालो से प्रभुवीर की वाणी सुनते आ रहे है....

हमने क्या सीखा?

अहिंसा परमो धर्म की जय!🙏

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🍁माँसहार का त्याग करना बहुत बड़ा अहिंसा धर्म का पालन करना है क्योंकि इससे जीवों के घात से बचा जाता है और आज की नयी पीढ़ी यदि fast food 🍔 🍕🍫 🧀🍟🍞🥯🥐🥪🥫का त्याग करने का संकल्प करे तो इससे धर्म के पालन के साथ साथ जीव दया 🐄🐓🐇 और स्वास्थ्य 🧠की भी रक्षा होती है 🙏

 

 अर्पणा जैन🍁

Edited by Arpana
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सब धर्मो का मूल अहिंसा

महावीर कि वाणी अहिंसा

इस धरती कि शान अहिंसा

सबसे श्रेष्ठ धर्म अहिंसा

साधुओ कि चर्या है अहिंसा

हिंसा से बचना है अहिंसा

विद्यागुरु का प्रयास अहिंसा

सब के मन मे हो भाव अहिंसा

 

अहिंसा परमो धर्म कि जय

 

 

 

Edited by Komal ghodke
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जहाँ प्राणी मात्र का कल्याण और स्वयं के कल्याण की भावना निहित हो वही अहिंसा मेरे प्राणों का आधार हो।

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अहिंसा को अपनाकरही,जीवन होता है सफल।

हिंसा से होता नुक़सान, नहीं निकलता कोई हल।।

नाहीं दुखाओ दिल किसी का,नाहीं चोट पहुँचाओ।

तोड़ फोड़ , मार धाड़ त्यागकर, अहिंसा के मार्ग को अपनाओ।।

”अहिंसा परमों धर्म” है, ये भगवान महावीर ने है बतलाया।

जीओ और जीने दो का पाठ, सारे जग को है सिखलाया।।

अहिंसा परमो धर्म:

 

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अहिंसा का दूसरा रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप स्वार्थ है।

मन में किसी का अहित न सोचना ,किसी को कटुवाणी आदि के द्वारा भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था मे हिंसा न करना ,अहिंसा है।जैन धर्म और हिन्दू धर्म मे अहिंसा का बहुत महत्त्व है ।जैन धर्म के मूलमंत्र  मे भी अहिंसा परमो धर्मः कहा गया है।

अहिंसा भी दो प्रकार की है स्थूल और सूक्ष्म 

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"अहिंसा परमो धर्म"

अहिंसा ही परम धर्म है। यह सभी धर्मों से महान् है, अन्य सारे धर्म इसके सामने गौण हैं। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने तो यहाँ तक कहा है-मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन।

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।।अहिंसा, जैनधर्म का आधार है।।

अहिंसा का पालन करना स्वयं के प्रति उपकार करना है। यदि हम मन वचन काय से अहिंसा धर्म का पालन करते हैं तो हमारे लिए मोक्ष निकट आता जाता हैं। क्षमा और दया, अहिंसा के आधार स्तंभ हैं। कमठ ने यदि तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान के जीव को क्षमा कर दिया होता तो उसे भी अब तक मोक्ष प्राप्त हो जाता। तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान ने दया, क्षमा, अहिंसा आदि महाव्रत के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। आज यदि हम जीवों की रक्षा करते हैं तो यह हमारी स्वयं की रक्षा है। यदि आज हम किसी जीव को संकल्प पूर्वक मारते है तो भविष्य में वो जीव हमें भी मारेगा या मार सकता है। इसलिये हमें निरन्तर पूर्व में किये पापों की निर्जरा करते रहना चाहिए। इसलिए हमें किसी भी जीव को मारना या सताना नहीं चाहिए। किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से दुःख नहीं पहुँचाना ही अहिंसा है।

अहिंसा परमो धर्म की जय हो...

दिनेश कुमार जैन "आदि"

मुम्बई - अम्बाह

 

Edited by Dinesh Kumar Jain
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हिंसा और निशस्त्रीकरण द्वारा ही   विश्व मैत्री ओर विश्व शांति की स्थापना संभव है

अहिंसा ही धर्म का लक्षण है  अहिंसा ही वीरों का धर्म हैं

  • Confused 1
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"अहिंसा स्वभाव है मेरा (आत्मा का)"

विभाव में न हो परिणमन!

वही मेरा धर्म,

वही मेरा कर्म,

वही तो है परम अहिंसा धर्म!!

"Non-Violence is my (soul's) nature"

I shall not go against my nature!

That's my duty,

That's my action,

That is the ultimate true Dharma!!

 

Edited by Nijatma
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जीवों का जहाँ घात न हो, मन वचन काय से आघात न हो। 

जहाँ सबके प्राणो की चिंता है, वह धर्म मूल अहिंसा है। 

 जब हरी घास पर पैर पड़े न, चीटी के भी प्राण हरे न। 

जहाँ एक घाट पर शेर गाय के, रहने की अनुशंसा है। 

गौ माता के प्राण बचाने वाला धर्म अहिंसा है। 

        "अहिंसा परमो धर्मः"। 

IMG_20210424_145413.jpg

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जय जिनेन्द्र🙏🏻

बिना कारण तथा स्वार्थ के हेतु हिंसा करना अधर्म है । वास्तव में अहिंसा ही परम धर्म है और उसके साथ सत्य, क्रोध ना करना, त्याग, मन की शांति, निंदा न करना, दया भाव, सुख के प्रति आकर्षित ना होना, बिना कारण कोई कार्य न करना, तेज, क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धता, धर्म का द्रोह ना करना, तथा अहंकार न करना, इतने गुणों को सत्व गुणी संपत्ति कहा जाता है। इसी से मनुष्य परमात्मा की भक्ति कर पाता है जीवन के कर्तव्य का वहन करता है धर्म की स्थापना करता है और धर्म के फल की आशा का त्याग करके जीता है।

 

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*वीरा की हायकू* ( अहिंसा दिवस विशेष) 🙏🏻 *अहिंसा*🙏🏻 पंप पाप से

हिंसा प्रथम पाप

त्यागते व्रती ।।  

त्यागते इसे

द्रव्य औ भाव रुप

अहिंसाप्रेमी ।।

कम से कम

संकल्प हिंसा त्याग

करे आगारी।।

दया करता

जीवदया भाव है

प्राणियों पर ।।

कृषि वाणिज्य

करता है श्रावक

उद्योगी हिंसा ।।

प्रात: करती

जगत की महिला

आरंभ हिंसा।।

दिल दुखाना

इससे ना बचा वो

भाव हिंसा है ।।

धर्म हमारा

परम अहिंसा का

शान से बोलो।।

अहिंसा परमो धर्म की जय हो।

वीरश्री शीतल पाटील, नेरुल नविमुम्बई

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अहिंसा मानव मन का स्थायी भाव है। वह उधार के तेल से जलाया गया दीपक नहीं है जो घड़ी भर में बुझ जाये। अहिंसा तो एक आंतरिक प्रकाश है। उसे कभी बुझाया नहीं जा सकेगा।

अहिंसा परमो धर्म की जय

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अहिंसा का अर्थ केवल हिंसा करना नहीं है, अपितु दया, करूणा, मैत्री, सहायता, सेवा, और क्षमा करना भी है।

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"अहिंसा परमो धर्मः" यह जैन धर्म का मूल मंत्र है जैन धर्म इसी पर आधारित है। मन, वचन, काया से किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की हिंसा न हो। यही हमारा धर्म है 

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