अहिंसा का दूसरा रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप स्वार्थ है।
मन में किसी का अहित न सोचना ,किसी को कटुवाणी आदि के द्वारा भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था मे हिंसा न करना ,अहिंसा है।जैन धर्म और हिन्दू धर्म मे अहिंसा का बहुत महत्त्व है ।जैन धर्म के मूलमंत्र मे भी अहिंसा परमो धर्मः कहा गया है।
अहिंसा भी दो प्रकार की है स्थूल और सूक्ष्म