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Dinesh Kumar Jain

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  1. प्राकृत भाषा और आर्या छन्द णमोकार मंत्र है अनादिनिधन (अनादि काल से है अनन्त काल तक रहेगा) णमोकार मन्त्र को किसी ने नहीं लिखा यह अनादि काल से है, इसे षट्खंडागम धवला जी में मंगलाचरण के रुप में लिपिबद्ध किया गया है।
  2. सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र ही है मोक्ष के द्वार। समीचीन तप से होता है आत्मा का उद्धार ।। ज्ञान पाँच प्रकार के होते है। 1. मतिज्ञान 2. श्रुतज्ञान 3. अवधिज्ञान 4. मनःपर्यय ज्ञान 5. केवलज्ञान मतिज्ञान के चार भेद होते है 1. अवग्रह 2. ईहा 3. अवाय 4. धारणा अहिंसा परमो धर्म की जय हो... दिनेश कुमार जैन "आदि" मुम्बई- अम्बाह
  3. ।।अहिंसा, जैनधर्म का आधार है।। अहिंसा का पालन करना स्वयं के प्रति उपकार करना है। यदि हम मन वचन काय से अहिंसा धर्म का पालन करते हैं तो हमारे लिए मोक्ष निकट आता जाता हैं। क्षमा और दया, अहिंसा के आधार स्तंभ हैं। कमठ ने यदि तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान के जीव को क्षमा कर दिया होता तो उसे भी अब तक मोक्ष प्राप्त हो जाता। तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान ने दया, क्षमा, अहिंसा आदि महाव्रत के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। आज यदि हम जीवों की रक्षा करते हैं तो यह हमारी स्वयं की रक्षा है। यदि आज हम किसी जीव को संकल्प पूर्वक मारते है तो भविष्य में वो जीव हमें भी मारेगा या मार सकता है। इसलिये हमें निरन्तर पूर्व में किये पापों की निर्जरा करते रहना चाहिए। इसलिए हमें किसी भी जीव को मारना या सताना नहीं चाहिए। किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से दुःख नहीं पहुँचाना ही अहिंसा है। अहिंसा परमो धर्म की जय हो... दिनेश कुमार जैन "आदि" मुम्बई - अम्बाह
  4. कषाय के भेद-प्रभेद को यहाँ बताया जा रहा है। जो आत्मा को कसे अर्थात दुख दे उसे कषाय कहते हैं। आत्मा के भीतरी कलुष परिणाम को कषाय कहते हैं। कषाय के 4 भेद बताए हैं :- 1 - क्रोध 2 - मान 3 - माया 4 - लोभ/लालच ये चार कषाय पुनः चार भाग में विभाजित होती है। (4x4) १ - अनंतानुबंधी २- अप्रत्याख्यान या अप्रत्याख्यानावरण ३ - प्रत्याख्यान या प्रत्याख्यानावरण ४ - संज्वलन इसी प्रकार नो कषाय होती है। नो कषाय 9 होती हैं -हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद। इस प्रकार कषाय के अपेक्षा से क्रमशः 4 या 16 (4x4=16) या 25 ( 4x4+9=25) भेद होते है। माला में 108 मोती भी कषाय को मंद करने के लिए होते है। उनका संबंध भी कषाय को मंद करने से होता है। समरम्भ, समारम्भ, आरम्भ - 3 मन, वचन, काय - 3 कृत, कारित, अनुमोदना - 3 क्रोध, मान, माया, लोभ - 4 3x3x3x4=108 कषाय की पहचान कैसे करें ? कषाय को समय की अपेक्षा से भी समझ सकते है। अनंतानुबंधी - 6 माह से ज्यादा रहे अप्रत्याख्यान - 15 दिन से ज्यादा - 6 माह से कम समय तक रहे प्रत्याख्यान - अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा - 15 दिन से कम समय तक रहे संज्वलन - अन्तर्मुहूर्त या उससे कम समय में समाप्त हो जाये कषाय की प्रबलता किस प्रकार होती है। अनंतानुबंधी-पत्थर पर लकीर (शिला रेखा) अप्रत्याख्यान-मिट्टी पर लकीर (पृथ्वी रेखा) प्रत्याख्यान-रेत या बालू या धूलि पर लकीर (धूलि रेखा) संज्वलन-पानी पर लकीर (जल रेखा) नरक गति में क्रोध, मनुष्य गति में मान, तिर्यंच गति में माया और देव गति में लोभ की बहुलता होती है। किन्तु स्त्रियों में माया कषाय की बहुलता रहती है। धर्म का कषाय के क्षय से संबंध उत्तम क्षमा धर्म - क्रोध का अभाव उत्तम मार्दव धर्म - मान का अभाव उत्तम आर्जव धर्म - माया का अभाव उत्तम शौच धर्म - लोभ का अभाव हमें हमेशा अपनी कषायों को कम करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। जैसे जैसे कषाय मंद होती जाती है वैसे वैसे आत्मा की विशुद्धि बढ़ती जाती है। दिनेश कुमार जैन "आदि" मुम्बई - अम्बाह
  5. #दिगम्बरमुनि #दिगम्बरसाधु #दिगम्बरमुनिकेछायाचित्र #दिगम्बरजैनछायाचित्रकोअनुमति #आचार्यश्री #आचार्यश्रीविद्यासागर #socialMedia #भारत सरकार जय जिनेन्द्र..नमस्ते... इस पोस्ट के माध्यम से मैं फेसबुक,यूट्यूब, ट्विटर आदि और सभी जैन-अजैन भाई बहनों को दिगम्बर जैन मुनि के बारे में बताना चाहता हूँ। दिगम्बर मुनि और नग्न व्यक्ति में बहुत अंतर होता है। दिगम्बर मुनि की दिशा ही वस्त्र होती हैं। दिगम्बर मुनि पाँच महाव्रतों का पालन करते हैं। दिगम्बर मुनि अपने साथ मयूरपंख की पिच्छी रखते हैं जो मुख्य रूप से जीवों की रक्षा के लिये होती है। दिगम्बर मुनि अपने साथ कमण्डलु और शास्त्र भी रखते हैं। दिगम्बर मुनि या दिगम्बर साधु अहिंसा, अचौर्य, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह महाव्रत का पालन करते हैं। ब्रह्मचर्य महाव्रत का मतलब है किसी भी प्रकार का कुशील का न होना। दिगम्बर मुनि के लिए सभी स्त्रियाँ/लड़कियाँ माता, बहिन या बेटी के समान होती हैं। दिगम्बर मुनि शील धर्म का पालन करते है। दिगम्बर मुनि या निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैन साधु भगवान का स्वरूप होते हैं। 24 तीर्थंकर भी (तीर्थंकर आदिनाथ भगवान से तीर्थंकर महावीर भगवान तक) दिगम्बर मुनिदीक्षा लेकर तप करके मोक्ष गए। दिगम्बर अवस्था में ही मोह राग द्वेष छूट सकता है और सूक्ष्म रूप से अहिंसा का पालन सिर्फ दिगम्बर मुनि अवस्था में ही हो सकता है। अहिंसा परमो धर्म: -अहिंसा ही परम धर्म है। यदि हम कपड़े पहनते हैं तो हमें उन्हें खरीदना पड़ेगा, कपड़े गन्दे होंगे तो धोने भी पड़ेंगे, कपड़े धोने में बहुत हिंसा होती है। एक समय के बाद कपड़े पुराने हो जायेंगे तो नए खरीदने पड़ेंगे। कपड़े खरीदने के बाद उनको रखने के लिए व्यवस्था करनी पड़ेगी। दिगम्बर मुनि का न कोई घर होता है न ही वे अपने पास पैसे रखते हैं। कोई पुरुष अपना घर परिवार छोड़कर दिगम्बर मुनि दीक्षा लेता है। दिगम्बर मुनि को लोग अज्ञानता के कारण सिर्फ नग्न/nude ही समझते हैं। कुछ लोग जिन्होंने कभी दिगम्बर मुनि के बारे में सही- सही नहीं जाना वे उनके दिगम्बरत्व, तप, त्याग, तपस्या और महाव्रत को नहीं समझ पाते। सभी को पहले दिगम्बर मुनियों के बारे में जानना चाहिए। दिगम्बर मुनि पूज्यनीय होते हैं। दिगम्बर मुनि वंदनीय होते हैं। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज उत्कृष्ट दिगम्बर जैन मुनि हैं। सभी दिगम्बर आचार्य और उनके शिष्य अपने आत्मकल्याण के साथ हमें भी आत्मकल्याण का मार्ग समझाते हैं। दिगम्बर मुनि दिन में एक ही बार आहार लेते हैं। पैदल विहार करते हैं। अपने हाथों से केशलोंच (बाल निकालते हैं) करते हैं आदि । सभी को पहले दिगम्बर जैन साधुओं के बारे में पता करना चाहिए। उनके बारे में जानकर उनके त्याग और तप की अनुमोदना करनी चाहिये। उनकी जितनी बनें उतनी प्रशंसा करनी चाहिए कि वे इस पंचम काल में भी मोक्षमार्ग पर चल रहे हैं। नग्न व्यक्ति को देखकर काम वासना जागृत हो सकती है परंतु जो दिगम्बर मुनि को देखकर त्याग, अहिंसा और दया के भाव ही उत्पन्न होते हैं। दिगम्बर आचार्य, उपाध्याय और साधु/मुनि हमारे पाँच परमेष्ठि में आते हैं। जो परम पद पर स्थित हैं वे परमेष्ठि कहलाते हैं। णमोकार मंत्र में भी अरहंत जी, सिद्ध जी, आचार्य जी, उपाध्याय जी और सर्व साधुओं को नमस्कार किया गया है। मेरा सभी से निवेदन है कि दिगम्बर जैन आचार्य उपाध्याय, मुनि और साधु-संत के फोटो को सम्मान दें। जैन दिगम्बर साधु, दिगम्बर हैं, नग्न नहीं। अतः जिन्होंने भी उनकी फोटो या वीडियो फेसबुक या किसी और social media पर डाली है तो उसे रहने दें। भारत हमेशा ऋषि मुनियों का देश रहा है।दिगम्बर जैन मुनि हमेशा से भारत की भूमि पर होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। श्रमण (दिगम्बर मुनि) और वैदिक दोनों भारतवर्ष की बहुत प्राचीन परम्पराएँ हैं। आजकल हम दिगम्बर मुनियों की सभी फ़ोटो मूलरूप में सोशल मीडिया पर नहीं डाल पाते हैं यह हमारे लिए चिंता का विषय है। सोशल मीडिया दिगम्बरत्व और नग्नत्व में भेद नहीं कर पा रहा है। हमें जागरूक होने की जरूरत है और सभी को दिगम्बर मुनि के स्वरूप को समझाने की जरूरत है। हमें भारत सरकार और सोशल मीडिया तक यह बात पहुँचानी चाहिए कि दिगम्बरत्व अलग है और नग्नत्व (जो प्रतिबंधित है) अलग है। ताकि दिगम्बर जैन मुनियों की सभी फ़ोटो और वीडियो को फेसबुक आदि सभी Social Media, Website और App पर रखने अनुमति हमें हमेेेशा मिल सके।( allow all digamber jain muni pictures )। ताकि हम मूलस्वरूप में दिगम्बर मुनियों की पोस्ट कहीं भी आसानी से भेज सके । दिनेश कुमार जैन "आदि" मुम्बई - अम्बाह
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