"दीक्षा के समय व्यापक शिथिलाचार"
एक दिन शान्तिसागरजी महाराज से ज्ञात हुआ कि जब उन्होंने गृह त्याग किया था, तब निर्दोष रीति से संयमी जीवन नही पलता था।
प्रायः मुनि बस्ती में वस्त्र लपेटकर जाते थे और आहार के समय दिगम्बर होते थे।
आहार के लिए पहले से ही उपाध्याय ( जैन पुजारी ) गृहस्थ के यहाँ स्थान निश्चित कर लिया करता था, जहाँ दूसरे दिन साधु जाकर आहार किया करते थे।
ऐसी विकट स्थिति जब मुनियों की थी, तब क्षुल्लको की कथा निराली है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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