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मार्गदर्शक कडोरेलालजी भाई जी - १३


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

             कल के उल्लेख में हमने देखा की गणेशप्रसाद जी ने जिनधर्म के अनुसार आचरण की इच्छा के कारण अपनी माँ तथा पत्नी का परित्याग करने के लिए तत्पर थे।

       कड़ोरेलाल जी भाईजी ने उनको इस अविवेकपूर्ण कार्य पर समझाया। इसी कथन का उल्लेख है।

      भायजी की आज्ञा के अनुसार उन्होंने अपनी माँ तथा पत्नी को पत्र लिखा उसका वर्णन कल प्रस्तुत किया जायेगा।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?


    *"मार्गदर्शक कड़ोरेलालजी भायजी"*

                       क्रमांक - १३

             यह बात जब भायजी ने सुनी तब उन्होंने बड़ा डाँटा और कहा- 'तुम बड़ी गलती पर हो। तुम्हे अपनी माँ और स्त्री का सहवास नहीं छोड़ना चाहिए।'

          तुम्हारी उम्र ही कितनी है, अभी तुम संयम के पात्र भी नहीं हो, एक पत्र डालकर दोनों को बुला लो। यहाँ आने से उनकी प्रवृत्ति जैनधर्म में हो जाएगी। धर्म क्या है? यह तुम भी नहीं जानते।

        धर्म आत्मा की वह परिणति है जिसमें मोह राग-द्वेष का अभाव हो। अभी तुम पानी छानकर पीना, रात्रि को भोजन नहीं करना, मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन कर लेना, दुखित-बुभुक्षित-तृषित प्राणि वर्ग के ऊपर दया करना, स्त्री से प्रेम नहीं करना, जैनियों के सहवास में रहना और दूसरों के सहवास का त्याग करना आदि को ही धर्म समझ बैठे हो।'

        मैंने कहा- भायजी साहब ! मेरी तो यही श्रद्धा है जो आप कह रहे हैं। जो मनुष्य या स्त्री जैनधर्म को नहीं मानते उनका सहवास करने को मेरा चित्त नहीं चाहता। जिनदेव के सिवा अन्य में मेरी जरा भी अभिरुचि नहीं।

       उन्होंने कहा- 'धर्म का स्वरूप जानने के लिए काल चाहिए, आगमाभ्यास की महती आवश्यकता है। इसके बिना तत्वों का निर्णय होना असम्भव है। तत्व निर्णय आगमज्ञ पंडितों के सहवास से होगा, अतः तुम्हे उचित है कि शास्त्रों का अभ्यास करो।'

         मैंने कहा महराज तत्व जानने वाले महात्मा लोगों का निवास स्थान कहाँ पर है?

        उन्होंने कहा - 'जयपुर में अच्छे-अच्छे विद्धवान हैं। वहाँ जाने से तुमको लाभ हो सकेगा।'

       मैं रह गया, कैसे जयपुर जाया जाय?

      उनका आदेश था कि 'पहले अपनी धर्मपत्नी और पूज्य माता को बोलाओ फिर सानंद धर्मध्यान करो।' मैंने उसे शिरोधार्य किया और एक पत्र उसी दिन अपनी माँ को डाल दिया। पत्र में लिखा था-

? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
? आजकी तिथी-कार्तिक कृष्ण ५?

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