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Saurabh Jain

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  1. Saurabh Jain

    Newata Jain Mandir Jaipur

    Images by Er. Rajendra Kumar Jain
  2. From the album: About Jainism

    Currently, the time cycle is in avasarpiṇī or descending phase with the following epochs: Suṣama-suṣamā: During the first ara of the Avsarpini, people lived for three Palyopama years. During this ara people were on average six miles tall. They took their food on every fourth day; they were very tall and devoid of anger, pride, deceit, greed and other sinful acts. Various kinds of the Kalpa trees fulfilled their wishes and needs like food, clothing, homes, entertainment, jewels etc. Suṣamā: During the second ara the people lived for two palyopama years. During this ara people were on average 4 miles tall. They took their food at an interval of three days, but the Kalpa trees supplied their wants, less than before. The land and water became less sweet and fruitful than they were during the first ara. Suṣama-duḥṣamā: During the third ara, the age limit of the people became one palyopama year. During this ara people were on average 2 miles tall. They took their food on every second day. The earth and water as well as height and strength of the body went on decreasing and they became less than they were during the second ara. The first three ara the children were born as twins, one male and one female, who married each other and once again gave birth to twins. On account of happiness and pleasures, the religion, renunciation and austerities was not possible. At the end of the third ara, the wish-fulfilling trees stopped giving the desired fruits and the people started living in the societies. The first Tirthankara, Rishabdev was born at the end of this ara. He taught the people the skills of farming, commerce, defence, politics and arts and organised the people in societies. That is why he is known as the Father of Human Civilisation. Duḥṣama-suṣamā: During the fourth ara, people lived for 705.6 Quintillion Years. During this ara people were on average 1500 Meters tall. The fourth ara was the age of religion, where the renunciation, austerities and liberation was possible. The 63 Śalākāpuruṣas, or the illustrious persons who promote the Jain religion, regularly appear in this ara. The balance 23 Tīrthaṅkars, including Lord Māhavīra appeared in this ara. This ara came to an end 3 years and 8 months after the nirvāṇa of Māhavīra. Duḥṣama: According to Jain cosmology, currently we are in the 5th ara. As of 2010, exactly 2,537 years have elapsed and 18,463 years are still left. It is an age of sorrow and misery. The maximum age a person can live to in this ara is 130 years. The maximum height a person can be in this ara is six feet. No liberation is possible, although people practice religion in lax and diluted form. At the end of this ara, even the Jain religion will disappear, only to appear again with the advent of 1st Tirthankara in the next cycle. Duḥṣama-duḥṣama: The sixth ara will be the age of intense misery and sorrow, making it impossible to practice religion in any form. The age, height and strength of the human beings will decrease to a great extent. In this ara people will live for no more than 16-20 years. This trend will start reversing at the onset of Utsarpiṇī kāl.In utsarpiṇī the order of the aras is reversed. Starting from Duḥṣama- duḥṣamā, it ends with Suṣama-suṣamā and thus this never ending cycle continues. Each of these aras progress into the next phase seamlessly without any apocalyptic consequences. The increase or decrease in the happiness, life spans and length of people and general moral conduct of the society changes in a phased and graded manner as the time passes. No divine or supernatural beings are credited or responsible with these spontaneous temporal changes, either in a creative or overseeing role, rather human beings and creatures are born under the impulse of their own Karmas
  3. ”सत्य” ”अहिंसा” धर्म हमारा, ”नवकार” हमारी शान है, ”महावीर” जैसा नायक पाया…. ”जैन हमारी पहचान है.” महावीर भगवान के जन्म कल्याण दिवस की शुभकामनाएँ एवं बधाई
  4. Sabhi ko Jai Jinendra

  5. दीक्षा तिथि के अनुसार आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित - 117 मुनिराजो के नाम की सूची क्रमशः देखेँ- दीक्षा तिथि - 08/03/1980-द्रोणगिरी 1-मुनिश्री समयसागर जी दीक्षा तिथि - 15/04/1980-मोराजी सागर 2-मुनिश्री योगसागर जी 3-मुनिश्री नियमसागर जी दीक्षा तिथि- 29/10/1981-नैनागिर जी 4-मुनिश्री चेतनसागर जी 5-मुनिश्री ओमसागर जी दीक्षा तिथि - 20/08/1982-नैनागिर जी 6-मुनिश्री क्षमासागर जी 7-मुनिश्री गुप्तिसागर जी 8-मुनिश्री संयमसागर जी* दीक्षा तिथि - 25/09/1983-इशरी पारसनाथ 9-मुनिश्री सुधासागर जी 10-मुनिश्री समतासागर जी 11-मुनिश्री स्वभावसागर जी 12-मुनिश्री समाधिसागर जी 13-मुनिश्री सरलसागर जी दीक्षा तिथि - 01/07/1985-अहार जी 14-मुनिश्री वैराग्यसागर जी* दीक्षा तिथि - 31/03/1988-सोनागिर जी 15-मुनिश्री प्रमाणसागर जी 16-मुनिश्री आर्जवसागर जी 17-मुनिश्री मार्दवसागर जी 18-मुनिश्री पवित्रसागर जी 19-मुनिश्री उत्तमसागर जी 20-मुनिश्री चिन्मयसागर जी 21-मुनिश्री पावनसागर जी 22-मुनिश्री सुखसागर जी दीक्षा तिथि - 16/10/1997-नेमावर जी 23-मुनिश्री अपूर्वसागर जी* 24-मुनिश्री प्रशांतसागर जी 25-मुनिश्री निर्वेगसागर जी 26-मुनिश्री विनीतसागर जी 27-मुनिश्री निर्णयसागर जी 28-मुनिश्री प्रबुद्धसागर जी 29-मुनिश्री प्रवचनसागर जी* 30-मुनिश्री पुण्यसागर जी 31-मुनिश्री पायसागर जी 32-मुनिश्री प्रसादसागर जी दीक्षा तिथि - 11/02/1998-मुक्तागिरी जी 33-मुनिश्री अभयसागर जी 34-मुनिश्री अक्षयसागर जी 35-मुनिश्री प्रशस्तसागरजी 36-मुनिश्री पुराणसागर जी 37-मुनिश्री प्रयोगसागर जी 38-मुनिश्री प्रबोधसागर जी 39-मुनिश्री प्रणम्यसागरजी 40-मुनिश्री प्रभातसागर जी 41-मुनिश्री चंद्रसागर जी दीक्षा तिथि - 22/04/1999-नेमावर जी 42-मुनिश्री ऋषभसागरजी 43-मुनिश्री अजितसागरजी 44-मुनिश्री संभवसागरजी 45-मुनिश्री अभिनंदनसागर जी 46-मुनिश्री सुमतिसागर जी* 47-मुनिश्री पदमसागर जी 48-मुनिश्री सुपार्श्वसागरजी 49-मुनिश्री चंद्रप्रभसागर जी 50-मुनिश्री पुष्पदंतसागर जी 51-मुनिश्री शीतलसागर जी 52-मुनिश्री श्रेयाँससागर जी 53-मुनिश्री पूज्यसागर जी 54-मुनिश्री विमलसागर जी 55-मुनिश्री अनंतसागर जी 56-मुनिश्री धर्मसागर जी 57-मुनिश्री शान्तिसागर जी* 58-मुनिश्री कुन्थुसागर जी 59-मुनिश्री अरहसागर जी 60-मुनिश्री मल्लिसागर जी 61-मुनिश्री सुव्रतसागर जी 62-मुनिश्री नमिसागर जी 63-मुनिश्री नेमीसागर जी 64-मुनिश्री पार्श्वसागर जी दीक्षा तिथि - 21/08/2004-दयोदय तीर्थ जबलपुर 65-मुनिश्री वीरसागर जी 66-मुनिश्री क्षीरसागर जी 67-मुनिश्री धीरसागर जी 68-मुनिश्री उपशमसागर जी 69-मुनिश्री प्रशमसागर जी 70-मुनिश्री आगमसागर जी 71-मुनिश्री महासागर जी 72-मुनिश्री विराटसागर जी 73-मुनिश्री विशालसागर जी 74-मुनिश्री शैलसागर जी 75-मुनिश्री अचलसागर जी 76-मुनिश्री पुनीतसागर जी 77-मुनिश्री वैराग्यसागर जी 78-मुनिश्री अविचलसागर जी 79-मुनिश्री विसदसागर जी 80-मुनिश्री धवलसागर जी 81-मुनिश्री सौम्यसागर जी 82-मुनिश्री अनुभवसागर जी 83-मुनिश्री दुर्लभसागर जी 84-मुनिश्री विनम्रसागर जी 85-मुनिश्री अतुलसागर जी 86-मुनिश्री भावसागर जी 87-मुनिश्री आनंदसागर जी 88-मुनिश्री अगम्यसागर जी 89-मुनिश्री सहजसागर जी दीक्षा तिथि - 10/08/2013-रामटेक 90-मुनिश्री निस्वार्थसागर जी 91-मुनिश्री निर्दोषसागर जी 92-मुनिश्री निर्लोभसागर जी 93-मुनिश्री नीरोगसागर जी 94-मुनिश्री निर्मोहसागर जी 95-मुनिश्री निष्पक्षसागर जी 96-मुनिश्री निष्पृहसागर जी 97-मुनिश्री निश्चलसागर जी 98-मुनिश्री निष्कम्पसागर जी 99-मुनिश्री निष्पन्दसागर जी 100-मुनिश्री निरामयसागर जी 101-मुनिश्री निरापदसागर जी 102-मुनिश्री निराकुलसागर जी 103-मुनिश्री निरुपमसागर जी 104-मुनिश्री निष्कामसागर जी 105-मुनिश्री निरीहसागर जी 106-मुनिश्री निस्सीमसागर जी 107-मुनिश्री निर्भीकसागर जी 108-मुनिश्री नीरागसागर जी 109-मुनिश्री नीरजसागर जी 110-मुनिश्री निकलंकसागर जी 111-मुनिश्री निर्मदसागर जी 112-मुनिश्री निर्सगसागर जी 113-मुनिश्री निसंगसागर जी दीक्षा तिथि - 16/10/2014-विदिशा 114-मुनिश्री शीतलसागर जी 115-मुनिश्री शाश्वतसागर जी 116-मुनिश्री समरससागर जी 117-मुनिश्री श्रमणसागर जी दीक्षा तिथि - 31/08/2015-बीना बारह सागर 118- मुनिश्री संधान सागर जी 119- मुनिश्री संस्कार सागर जी 120- मुनिश्री ओमकार सागर जी परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से अभी तक दीक्षित -172 आर्यिकाओं के नाम की लिस्ट क्रमशः देखें :- दीक्षा तिथि - 10/02/1987-नैनागिर जी 1. आर्यिका गुरुमति जी 2. आर्यिका दृढमति जी 3. आर्यिका मृदुमति जी 4. आर्यिका ऋजुमति जी 5. आर्यिका तपोमति जी 6. आर्यिका सत्यमति जी 7. आर्यिका गुणमति जी *8. आर्यिका जिनमति जी 9. आर्यिका निर्णयमति जी 10. आर्यिका उज्ज्वलमति जी 11. आर्यिका पावनमति जी दीक्षा तिथि-07/08/1989 कुंडलपुर जी 12. आर्यिका प्रशांतमति जी 13. आर्यिका पूर्णमति जी 14. आर्यिका अनंतमति जी 15. आर्यिका विमलमति जी 16. आर्यिका शुभ्रमति जी 17. आर्यिका कुशलमति जी 18. आर्यिका निर्मलमति जी 19. आर्यिका साधुमति जी दीक्षा तिथि -09/08/1989-कुण्डलपुर जी 20. आर्यिका शुक्लमति जी दीक्षा तिथि-20/02/1990-नरसिंहपुर 21. आर्यिका साधनामति जी 22. आर्यिका विलक्षणामति जी 23. आर्यिका धारणामति जी 24. आर्यिका प्रभावनामति जी 25. आर्यिका भावनामति जी दीक्षा तिथि-23/02/1990-नरसिंहपुर 26. आर्यिका चिंतनमति जी 27. आर्यिका वैराग्यमति जी दीक्षा तिथि-04/07/1992-कुण्डलपुर जी 28. आर्यिका अदर्शमति जी 29. आर्यिका दुर्लभमति जी 30. आर्यिका अंतरमति जी 31. आर्यिका अविचलमति जी 32. आर्यिका अनुनयमति जी 33. आर्यिका अनुग्रहमति जी 34. आर्यिका अक्षयमति जी 35. आर्यिका अमूर्तमति जी 36. आर्यिका अखंडमति जी 37. आर्यिका आलोकमति जी 38. आर्यिका अनुपममति जी 39. आर्यिका अपूर्वमति जी 40. आर्यिका अनुत्तरमति जी 41. आर्यिका अनर्घमति जी 42. आर्यिका अतिशयमति जी दीक्षा तिथि -07/07/1992-कुण्डलपुर जी 43. आर्यिका अनुभवमति जी 44. आर्यिका आनंदमति जी दीक्षा तिथि - 25/01/1993- पिसनहारी मड़ियाजी जबलपुर 45. आर्यिका सिद्धांतमति जी 46. आर्यिका अकलंकमति जी 47. आर्यिका निकलंकमति जी 48. आर्यिका आगममति जी 49. आर्यिका स्वाध्यायमति जी 50. आर्यिका नम्रमति जी 51. आर्यिका विनम्रमति जी 52. आर्यिका अतुलमति जी 53. आर्यिका विशदमति जी 54. आर्यिका पुराणमति जी 55. आर्यिका विनतमति जी 56. आर्यिका विपुलमति जी 57. आर्यिका मधुरमति जी 58. आर्यिका प्रसन्नमति जी 59. आर्यिका प्रशममति जी 60. आर्यिका अधिगममति जी 61. आर्यिका मुदितमति जी 62. आर्यिका सहजमति जी 63. आर्यिका अनुगममती जी 64. आर्यिका अमंदमति जी 65. आर्यिका अभेदमति जी *66. आर्यिका एकत्वमति जी 67. आर्यिका कैवल्यमति जी 68. आर्यिका संवेगमति जी 69. आर्यिका निर्वेगमति जी दीक्षा तिथि-19/08/1993-रामटेक *70. आर्यिका शान्तिमति जी *71. आर्यिका निर्वाणमति जी दीक्षा तिथि-06/06/1997-नेमावर जी 72. आर्यिका सूत्रमति जी 73. आर्यिका सुनयमति जी 74. आर्यिका सकलमति जी 75. आर्यिका सविनयमति जी 76. आर्यिका सतर्कमति जी 77. आर्यिका संयममति जी 78. आर्यिका समयमति जी 79. आर्यिका शोधमति जी 80. आर्यिका शाश्वतमति जी 81. आर्यिका सरलमति जी 82. आर्यिका शीलमति जी 83. आर्यिका सुशीलमति जी 84. आर्यिका शैलमति जी 85. आर्यिका शीतलमति जी 86. आर्यिका श्वेतमति जी 87. आर्यिका सारमति जी 88. आर्यिका सत्यार्थमति जी 89. आर्यिका सिद्धमति जी 90. आर्यिका सुसिद्धमति जी 91. आर्यिका विशुद्धमति जी 92. आर्यिका साकारमति जी 93. आर्यिका सौम्यमति जी 94. आर्यिका सूक्ष्ममति जी 95. आर्यिका सुशांतमति जी 96. आर्यिका शांतमति जी 97. आर्यिका सदयमति जी 98. आर्यिका समुन्नतमति जी 99. आर्यिका शास्त्रमति जी 100. आर्यिका सुधारमति जी दीक्षा तिथि-18/08/1997-नेमावर जी 101. आर्यिका उपशांतमति जी 102. आर्यिका अकंपमति जी 103. आर्यिका अमूल्यमति जी 104. आर्यिका आराध्यमति जी 105. आर्यिका ओंकारमति जी 106. आर्यिका उन्नतमति जी 107. आर्यिका अचिंतमति जी 108. आर्यिका अलोल्यमति जी 109. आर्यिका अनमोलमति जी 110. आर्यिका उचितमति जी 111. आर्यिका उद्योतमति जी 112. आर्यिका आज्ञामति जी 113. आर्यिका अचलमति जी 114. आर्यिका अवगममति जी दीक्षा तिथि-13/02/2006-कुण्डलपुर जी 115. आर्यिका स्वस्थमति जी 116. आर्यिका तथ्यमति जी 117. आर्यिका वात्सल्यमति जी 118. आर्यिका पथ्यमति जी 119. आर्यिका जाग्रतमति जी 120. आर्यिका कर्तव्यमति जी 121. आर्यिका गन्तव्यमति जी 122. आर्यिका संस्कारमति जी 123. आर्यिका निष्काममति जी 124. आर्यिका विरतमति जी 125. आर्यिका तथामति जी 126. आर्यिका उदारमति जी 127. आर्यिका विजितमति जी 128. आर्यिका संतुष्टमति जी 129. आर्यिका निकटमति जी 130. आर्यिका संवरमति जी 131. आर्यिका ध्येयमति जी 132. आर्यिका आत्ममति जी 133. आर्यिका चैत्यमति जी 134. आर्यिका पृथ्वीयमति जी 135. आर्यिका निर्मदमति जी 136. आर्यिका पुनीतमति जी 137. आर्यिका विनीतमति जी 138. आर्यिका मेरुमति जी 139. आर्यिका आप्तमति जी 140. आर्यिका उपशममति जी 141. आर्यिका ध्रुवमति जी 142. आर्यिका असीममति जी 143. आर्यिका गौतममति जी 144. आर्यिका संयतमति जी 145. आर्यिका अगाधमति जी 146. आर्यिका निर्वाणमति जी 147. आर्यिका मार्दवमति जी 148. आर्यिका मंगलमति जी 149. आर्यिका परमार्थमति जी 150. आर्यिका ध्यानमति जी 151. आर्यिका विदेहमति जी 152. आर्यिका अवायमति जी 153. आर्यिका पारमति जी 154. आर्यिका आगतमति जी 155. आर्यिका श्रुतमति जी 156. आर्यिका अदूरमति जी 157. आर्यिका स्वभावमति जी 158. आर्यिका धवलमति जी 159. आर्यिका विनयमति जी 160. आर्यिका समितिमति जी 161. आर्यिका अमितमति जी 162. आर्यिका परममति जी 163. आर्यिका चेतनमति जी 164. आर्यिका निसर्गमति जी 165. आर्यिका मननमति जी *166. आर्यिका अविकारमति जी 167. आर्यिका चारित्रमति जी 168. आर्यिका श्रद्धामति जी 169. आर्यिका उत्कर्षमति जी 170. आर्यिका संगतमति जी 171. आर्यिका लक्ष्यमति जी 172. आर्यिका भक्तिमति जी * निशान की समाधी हो गयी हैं। Thanks to Rishabh Shah Ji from Ujjain for sharing same on whatsapp
  6. आचार्य, उपाध्याय और साधुओं के बीच में क्या अन्तर हें Differentiate between Acharya, Upadhyaya and Sadhus. You can answer this question in Hindi or English You can like the best answer You can share this question
  7. ? सभी को जय जिनेन्द्र? एवम् परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज का मंगल ✋✋✋आशीर्वाद✋✋✋ आज का दिन मंगलमय हो ।। ?शास्त्रों में लिखा है हमे रोज़ एक नियम/त्याग लेना ही चाहिये । ?सभी धर्मो में त्याग /नियम को बहुत महत्व दिया गया है । ? त्याग / नियम कितना भी छोटा क्यों न हो (सिर्फ 10 मिनिट का भी) बहुत अशुभ कर्म नष्ट होते हैं। ?रोज़ कुछ त्याग करने से असंख्यात बुरे कर्मो की निर्ज़रा (क्षय) होती है ? नरक गति का बंध अगर हमारा हो चुका है तो हम किसी भी तरह के नियम जीवन में नहीं ले पाते हैं आज- 11-02-2016 दिन- गुरूवार ?"" आप चाहे तो सिर्फ आज के लिये ये त्याग/नियम भी ले सकते हैं या और कोई भी नियम अपने अनुसार ले सकते है ।। ?नियम ➡ आज गुलाब जामुन का त्याग ! ?शहर में विराजित साधू संतो के दर्शन की और निरंतराय आहार की भावना रखे और हो सके तो दर्शन करके आहार भी दें। ??जय जिनेन्द्र ?? ?जिन मंदिर जी जाकर कुछ गुप्तदान जरुर करें।? आप नीचे कमेंट में त्याग हे या नियम हें ऐसा लिख सकते हें -Singhai Deepak Jain
  8. जैन धर्म के संदर्भ मेंअनेकांतवाद का अर्थ और महत्व बताये ! Explain the meaning and significance of Anekāntavāda in reference of Jainism You can answer this question in Hindi or English You can like the best answer You can share this question
  9. 1. possible 2. congratulation 3. silent 4.winner 5.cool cool 6. Oh! 7. first 8. Religious 9. Lotus 10. clean 11. Moon 12. Flower+Dental 13. No end of 14. Monk 15. stronger Eg : possible - sambhavnath bhagwan
  10. आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हाइकु छन्द: 1. अपना मन अपने विषय में क्यों न सोचता। अर्थ: मन अपना होते हुए भी हमेशा दूसरो के विषय में ही सोचता है अपने विषय में कभी भी नहीं। 2. जगत रहा पुण्य पाप का खेत बोया सो पाया अर्थ: यह जगत पुण्य पाप के खेत की तरह है। इस खेत में जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है। 3. गुरू की चर्या देख भावना होती हम भी पावें। अर्थ: गुरू की श्रेष्ठ चर्या को देखकर हमें भी उनके जैसे बनने की प्रेरणा मिलती है। 4. मौन के बिना मुक्ति संभव नहीं मन बना ले। अर्थ: मौन के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है इसलिये मौन धारण करने के बारे में सोचे। 5. डाट के बिना शिष्य और शीशी का भविष्य ही क्या। अर्थ: शिष्य को यदि डाट न पङे और शीशी को यदि डाट न लगाया जाये तो दोनो का भविष्य खतरे में होता है। 6. गुरू ने मुझे क्या न दिया हाथ में दिया दे दिया। अर्थ: गुरू ने हाथ में दीपक थमाकर मानों मुझे सब कुछ दे दिया। 7. जितना चाहा जो चाहा जब चाहा क्या कभी मिला। अर्थ: इन्सान जितना चाहता है उतना, जो चाहता है वह, और जब चाहता है तब क्या उसे मिल पाता है? नहीं। 8. मन की बात नहीं सुनना होती मोक्षमार्ग में। अर्थ: मोक्षमार्ग में मन की बात सुनना अहितकर हो सकता है। 9. असमर्थन विरोध सा लगता विरोध नहीं। अर्थ: किसी बात का समर्थन न करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि उसका विरोध किया जा रहा है, परन्तु वह विरोध नहीं होता। 10. मोक्षमार्ग में समिति समतल गुप्ति सीढ़ियां। अर्थ: मोक्षमार्ग में समितियां का पालन समतल पर चलने की तरह होता है जबकि गुप्तियों का पालन सीढियां चढ़ने की तरह। 11. स्वानुभूति ही श्रमण का लक्ष्य हो अन्यथा भूसा। अर्थ: आत्मा की अनुभूति ही श्रमण का लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा न होने पर सब कुछ व्यर्थ है। 12. प्रकृति में जो रहता है वह सदा स्वस्थ रहता। अर्थ: प्रकृति में जीने वाला कभी अस्वस्थ नहीं होता। 13. तेरी दो आंखे तेरी ओर हजार सतर्क हो जा। अर्थ: दूसरों को देखेने के लिये हमारे पास केवल दो आंखे हैं। लेकिन हमारी ओर उठने वाली आंख हजारों हैं इसलिये एक एक कदम फ़ूंक फ़ूंक कर रखना चाहिये। 14. पौंधे न रोपें और छाया चाहते पौरूष्य नहीं। अर्थ: मानव वृक्षारोपण तो करता नहीं और छांव चाहता है। यह तो पौरूष नहीं। 15. मान शत्रु है कछुआ बनूं बचूं खरगोश से। अर्थ: मान शत्रु है, कछुआ की तरह निरहंकारी बन अपने पथ पर चलता रहूं न कि अहंकारी खरगोश की तरह जीवन में पराजय को प्राप्त होऊं। 16. मैं क्या जानता क्या क्या न जानता सो गुरूजी जानें। अर्थ: मैं क्या जानता हूं और क्या नहीं, यह तो गुरू ही जानें। 17. मान चाहूं न पै अपमान अभी सहा न जाता। अर्थ: मान सबको अच्छा लगता है। अपमान कोई नहीं सह पाता। 18. बिना प्रमाद ’श्वसन क्रिया सम’ पथ पे चलूं। अर्थ: जैसे श्वास बिना रूके निरन्तर चलती रहती है उसी प्रकार मैं भी अपने पथ पर निरन्तर चलता रहूं। 19. जिन बोध में ’लोकालोक तैरते’ उन्हे नमन। अर्थ: जिनेन्द्र देव के ज्ञान में लोकलोक झलकते हैं उन्हे हमारा नमस्कार हो। 20. उजाले में हैं “उजाला करते हैं” गुरू को बन्दूं। अर्थ: जो स्वयं प्रकाशित हैं और सबको प्रकाश दिखाते हैं ऐसे गुरू को वन्दन करते हैं। 21. साधना छोङ ’कायरत होना ही’ कायरता है। अर्थ: साधना से विमुख होकर शरीर से ममत्व करना कायरता है। 22. बिना रस भी पेट भरता छोङो मन के लड्डू। अर्थ: इन्द्रियों के वशीभूत होकर रसों का सेवन करना बंद करो क्योंकि पेट भरने के लिये नीरस भोजन भी पर्याप्त हैं। 23. संघर्ष में भी ’चंदन सम सदा’ सुगन्धि बांटू। अर्थ: भले ही मुझे कष्ट झेलने पङे परन्तु मैं चन्दन की तरह सबको खुशबू प्रदान करता रहूं। 24. पाषाण भीगे ’वर्षा में, हमारी भी’ यही दशा। अर्थ: वर्षा में भीगे हुये पाषाण की तरह हमारी दशा है जिसका असर बहुत शीघ्र समाप्त हो जाता है। 25. आप में न हो ’तभी तो अस्वस्थ हो’ अब तो आओ। अर्थ: अपने आप में नहीं रहने वाला अस्वस्थ रहता है। इसलिये अब अपने में आ जाओ। 26. घनी निशा में ’माथा भयभीत हो’ आस्था आस्था है। अर्थ: संकट के समय यदि घबरा गये तो समझो आस्था कमजोर है। 27. मलाई कहां अशांत दूध में सो प्रशांत बनो। अर्थ: अशांत दूध में मलाई नहीं होती, इसलिये शान्त बनों। 28. खाल मिली थी यही मिट्टी में मिली खाली जाता हूं। अर्थ: चर्म का यह तन मिला था यह भी अन्ततः मिट्टी में मिल गया। खाली हाथ जाना होगा। 29. आगे बनूंगा अभी प्रभु पदों में बैठ तो जाऊं अर्थ: पहले भगवान के चरणों में बैठना होगा, तभी भगवान बनना सम्भव है। 30. अपने मन, को टटोले बिना ही सब व्यर्थ है। अर्थ: अपने मन को टटोलते रहना चाहिये अन्यथा सब व्यर्थ है। 31. देखो ध्यान में कोलाहल मन का नींद ले रहा। अर्थ: ध्यान में मन का शोर समाप्त हो जाता है। 32. द्वेष से राग, जहरीला है जैसे शूल से फ़ूल। अर्थ: द्वेष की अपेक्षा राग ज्यादा हानिकारक है, जैसे फ़ूल की अपेक्षा कांटा ज्यादा खतरनाक होता है। 33. छाया सी लक्ष्मी, अनुचरा हो यदि उसे न देखो। अर्थ: यदि लक्ष्मी की तरफ़ ध्यान न दो वह दासी की तरह साथ देती है। 34. कैदी हूं देह जेल में जेलर ना तो भी भागा ना। अर्थ: देह रूपी जेल में आत्मा कैद है। उस जेल में जेलर नहीं है फ़िर भी इसने भागने की कोशिश नहीं की। कारण इसे उस कैद में ही रस आने लगा है। 35. निजी पराये, बच्चों को दुग्ध-पान कराती गौ मां। अर्थ: अपने पराये का भेद भुलाकर गौ माता सबको दुग्धपान करती है। 36. ज्ञानी कहता, जब बोलूं अपना स्वाद टूटता। अर्थ: ज्ञानी कहता है कि जब भी मैं बोलता हूं बाहर आ जाता हूं और आत्मा के सुख से वंचित रह जाता हूं। 37. समानान्तर, दो रेखाओं में मैत्री पल सकती। अर्थ: मैत्री समान लोगों की ही होती है। जैसे कि दो समानान्तर रेखायें अन्त तक साथ चलती है। 38. वक्ता व श्रोता बने बिना गूंगा सा स्व का स्वाद ले। अर्थ: आत्मा का रस लेने के लिये मूक बनना होगा। न वक्ता और न ही श्रोता। 39. परिचित भी, अपरिचित लगे स्वस्थ ज्ञान में। अर्थ: आत्मस्थ दशा में परिचित व्यक्ति भी, वास्तविकता का बोध हो जाने से अपरिचित ही लगना चाहिये। 40. नौ मास उल्टा लटका आज तप कष्टकर क्यों। अर्थ: नव मास तक मां के पेट में उल्टा लटकता रहा फ़िर भी आज तप करने से डरता है। 41. कहो न सहो सही परीक्षा यही आपे में रहो। अर्थ: कहो मत बल्कि सहो। सही परीक्षा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने आप में रहने पर होती है।
  11. आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के अमृत वचन जिन और जन में इतना ही अन्तर है कि एक वैभव के ऊपर बैठा है और एक के ऊपर वैभव बैठा है। श्रद्धा जब गहराती है तब वही समर्पण बन जाती है। मांगने से नहीं किन्तु अधिकार श्रद्धा से मिलते है। शिक्षा वही श्रेष्ठ है, जो जन्म-मरण का क्षय करती है। अपने आपको जानो, अपने को पहिचानो, अपनी सुरक्षा करो क्योंकि अपने में ही सब कुछ है। शरीर के प्रति वैराग्य और जगत के प्रति संवेग ये दोनो ही बातें आत्म कल्याण के लिये अनिवार्य है। अपने उपयोग का उपयोग पर की चिंता में ना करे। पंचपरमेष्ठी की भक्ति एवं ध्यान से विशुद्धि बढ़ेगी, संक्लेश घटेगा, वात्सल्य बढ़ेगा। भक्ति गंगा की लहर ह्रदय के भीतर से प्रवाहित होना चाहिये और पहुंचना चाहिये वहां कहां निस्सीमता हो। जो व्यक्ति वाणी को नियन्त्रित नहीं कर सकता वह साधना नहीं कर सकता। वें महान हैं जो मुख से एक शब्द निकालने में आगे पीछे विचार करते हैं। साधक बनों प्रचारक नहीं।
  12. क्रोध बोलता है, पर मान, माया, व लोभ बोलते नहीं हैं। डरो मत। संयम धारण करो। संयम धारण किये बना कल्याण नहीं होता। मोक्षमार्ग में साहस, उत्साह व धैर्य इन तीनो की आवश्यकता है। संसार में सेठ बनकर नहीं मुनीम बनकर रहो। शरीर मरणधर्मा है, पर आत्मा अमरधर्मा है। संक्लेष से क्षयोपक्षम घटता है, इसलिए बाह्य निमित्तो से बचो। क्रोधी मनुष्य आंखे होते हुये भी अंधा है। श्रम के पौधे पर सफ़लता के फ़ूल खिलते हैं। जो सुख को त्यागता है, वही चारित्र में प्रवृत्त होता है। जो घट में उतर जाता है, वह अन्तरघट को प्राप्त होता है। सभ्यता की एक मात्र कसौटी है, सहनशीलता। सम्यग्दृष्टि संसार में रह सकता है, किन्तु उसके ह्रदय में संसार नहीं रह सकता। जो हमारा है वो जाता नहीं, जो जाता है वो हमारा नहीं। गुण ग्रहण में छोटे बङे का भेद नहीं देखा जाता। विवेक और विनय बिना मोक्ष नहीं है। सुख-दुख कर्म के उदय से होता है। सब से मिले पर सब, में मिलों मत। अपने से छोटो को देखने वाला सुखी रहता है। सदोष चारित्र अचारित्र है। निंदा करने का फ़ल नरक में जाना है। कर्तव्य में प्रमाद नहीं करना ही सफ़लता है। संगठन के लिये सबसे बङा सूत्र "सुई बनो कैची मत बनो"। पुण्य के बिना मरण भी सुमरण नहीं हो सकता। प्रतिकूलता में से अनुकूलता को खोजने का नाम साधना है। Source https://www.facebook.com/groups/108vradhamansagar/
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