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ज्ञान से मिलता भव का किनारा, ज्ञान बिना न कोई सहारा ।

मतिज्ञान के भेद बताओ, केवलज्ञानी तुम बन जाओ ॥

 

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मतिज्ञान के भेद

मतिज्ञान के चार भेद होते हैं अवग्रह ,ईहा,अवाय , धारणा

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मति ज्ञान के दो भेद है-

1. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान

2. अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान

 

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मति ज्ञान के दो भेद है-

 
1. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
 
2. अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान
 
 
 
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मति ज्ञान की चार भेद है

1अवग्रह 2 ईहा 3 हावाय 4 धारणा

कुल 336 भेद है

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मति ज्ञान की चार भेद है

1अवग्रह 2 ईहा 3 हावाय 4 धारणा

कुल 336 भेद है

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‘अवग्रहेहावायधारणा:।’ अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ये मतिज्ञान के चार भेद हैं ।

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ज्ञान से मिलता भवा का किनारा, ज्ञान बिना न कोई सहारा l

मती ज्ञान के भेद चार, अवग्रह,ईहा, अवग्रह और धारणा ll

 

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सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र ही है मोक्ष के द्वार।

समीचीन तप से होता है आत्मा का उद्धार ।।

ज्ञान पाँच प्रकार के होते है।

1. मतिज्ञान 2. श्रुतज्ञान 3. अवधिज्ञान 

4. मनःपर्यय ज्ञान 5. केवलज्ञान

मतिज्ञान के चार भेद होते है

1. अवग्रह 2. ईहा 3. अवाय 4. धारणा

अहिंसा परमो धर्म की जय हो...

दिनेश कुमार जैन "आदि"

मुम्बई- अम्बाह

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ज्ञान से मिलता भवा किनारा, ज्ञान बिना ना कोई सहाराl मती ज्ञान के भेद चार अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा ll
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अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ये मतिज्ञान के चार भेद हैं ।

Posted (edited)

मति ज्ञान के भेद =

1.अवग्रह ,2. ईहा , 3. अवाय ,4. धारणा ।

 

Edited by Aruna jain
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इंद्रिय और मन के निमित्त से शब्द रस स्पर्श रूप और गंधादि विषयों मे अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप जो ज्ञान होता है, वह मतिज्ञान है। ( द्रव्यसंग्रह टीका/44/188/1 )

मूल रुप से मतिज्ञान के ये 4 भेद है - अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा

उपरोक्त भेदों के प्रभेद या भंग–अवग्रहादि  की अपेक्षा = 4; पूर्वोक्त 4×6 इंद्रियाँ = 24; पूर्वोक्त 24+ व्यंजनावग्रह के 4 = 28; पूर्वोक्त 28+अवग्रहादि 4 = 32–में इस प्रकार 24, 28, 32 ये तीन मूल भंग हैं। इन तीनों की क्रम से बहु बहुविध आदि 6 विकल्पों से गुणा करने पर 144, 168 व 192 ये तीन भंग होते हैं। उन तीनों को ही बहु बहुविध आदि 12 विकल्पों से गुणा करने पर 288, 336 व 384 ये तीन भंग होते हैं। इस प्रकार मतिज्ञान के 4, 24, 28, 32, 144, 168, 192, 288, 336 व 384 भेद भी होते हैं। ( षटखंडागम 13/5,5/ सूत्र 22-35/216-234); ( तत्त्वार्थसूत्र/1/15-19 ); ( पंचसंग्रह / प्राकृत/1/121 ); ( धवला 1/1,1,115/ गा.182/359); ( राजवार्तिक/1/19/9/70/7 ); ( हरिवंशपुराण/10/145-150 ); ( धवला 1/1,1,2/93/3 ); ( धवला 6/1,9,1,14/16,19,21 ); ( धवला 9/4,1,45/144,149,155 ); ( धवला 13/5,5,35/239-241 ); ( कषायपाहुड़ 1/1,1/10/14/1 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/13/55-56 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/306-314/658-672 ); ( तत्त्वसार/1/20-23 )।

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