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Yogendra Jain UK

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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

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  1. उपजाति वृत्त - कविवर जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले हे श्री जिनेन्द्रा! तव दर्शनाने! जातात पापें विलया त्वरेने। आलिंगिते स्वर्ग रमा प्रमोदे, अनन्त सौख्यास शिवांगना दे। जिनेश्वरा च्या शुभ दर्शनाने, तैसे गुरुंच्या पद वन्दनाने। पावे विनाशा प्रत सर्व पाप, सच्छिद्र हस्ताँतिल जेवि आप।१। ही पद्मरागा सम लाल कान्ति, तुझ्या मुखाची मज़ देई शान्ति। अनेक जन्मार्जित पाप गेले, माझे लयाला मज सौख्य झालें।२। भव्यावरी धर्म सुधारसास, वर्षुन जन्मज्वर नाशिलास। प्रवृद्ध केलेस सुखार्णवास, तुला जिनेन्द्रा! करितो नतीस।३। जिनेन्द्र सूर्या अवलोकितांच, संसार काळोख झणी गळेच। ते भव्य चित्ताब्ज विकास पावे, पदार्थ सारें दिसतात भावे।४। समस्त तत्वे उपदेशिलीस, गुणाष्टकाश्रय तूँ दिलास। प्रशांत आहे तवरूप देवा, जिना सदा मन्मनी घे विसावा।५। आहे तुझे वस्त्र पहा दिशाच, आनन्दवी रूप जना तुझेच। देवाधिदेवा तुझिया पदास, मी वंदितो भक्ति धरुन दास।६। झाले तुझे बा परमात्मरूप, म्हणून आहेस अपुण्यपाप। तू सद्गुणाचा अविनाशीकूप, मला जिना! दे तव शुद्धरूप।७। सर्वज्ञ जो पूर्ण सुखी जहाला, मी त्या जिनाला प्राणिपात केला। आहेस तू सर्व जनास मित्र, भक्ति जनां तू करिशी पवित्र।८। तूं सर्व कर्में झणि नाशिलीस, सिद्ध्यंगनेचा पति जाहलास। झालास आत्मा परम प्रकाशी, जिना जसा सूर्य नभःप्रदेशी।९। सिद्धा तुला सतत वंदितो मी, बुद्धा असे मी नितमुक्तिकामी। शुद्धा ! तुझे सद्गुण बा अपार। वृद्धा असे तूंच जग़ांत सार।१०। अवलंबिले त्वच्चरणद्वायाला, रक्षी मला या शरणागताला। असे जगी रक्षक तूंच एक, तारी कृपेने जिनभक्त लोक।११। त्राता तुझ्यावीण जगत्रयांत, दिसे मला अन्य न कोण तात। देवा बुड़ालो भव कर्द्दमांत, काढ़ी मला देउनि शीघ्र हात।१२। संसार जो वाढवितो अनन्त, दुःखें सदा देइ जना तुरन्त। त्या रागभावास विनाशिलेंस, विराग नामाप्रत पावलास।१३। हे वीतरागा ! तुझसारखा न, झाला असे देव जगांत कोण। पुढेही होईल तुझ्या समान, दुजा न ऐसे वचनप्रमाण।१४। ते चक्रवर्तित्व मला रुचे न, जे श्री जिनेशा ! तव भक्तिहीन। सचिंतता वा धनहीनता हो, त्वदभक्ति चित्तांत तथापि राहो।१५। तुझ्याच ठायी मम भक्ति राहो, मी अन्यदेवा न कधीही पाहो। भवीभवी मी तुजला स्मरेन, संसारसिंधूस सुखे तरेन ।१६। असंख्य जन्मी बहुपाप केले, मी तीव्रदुःखा बहु भोगियेले। माझ्या हरी जन्मजरान्तकास, नाशून पापा मज दे सुखास।१७। हे दर्शनस्तोत्र जिनेश्वराचे, भव्यास देते शिवसौख्य साचे। पार्श्वात्मजें श्रीजिनदास नामे, केले असे मुक्तिसुखजैकामे।१८।
  2. वीतराग जिन ! दीपार्चन हे, मंगल तव चरणीं, अर्पण तव चरणीं । शांतीसुधेच्या मधुरा स्वादा , देते दिनरजनी ।। शांति ।। धृ. ।। अगण्यगुणगण प्रभा जीवांच्या , नाशवी मोहात , ज्ञानामृत देते । सकल जीवातें शिवपुर - मार्गा , प्रेमे दर्शविते ।। सकल जीवातें शिवपुर - मार्गा , प्रेमे दर्शविते ।। वीतराग जिन... ।।१।। शुभ भावांची ज्योत तेवूनी , भक्तिरूपी घृत ते, भक्तिरूपी घृत ते। ओतुनी प्रेमें करितां आरती स्वगुणा प्रगटवितें ।। ओतुनी प्रेमें करितां आरती स्वगुणा प्रगटवितें ।। वीतराग जिन... ।।२।।
  3. भविक जन ध्यान धरो जिनसे, भविक जन ध्यान धरो जिनसे । निन्यानबे करोड़ मुनि मुक्ति गए हैं मांगी तुंगी गढ़ से ।। पहाड़ के बीच पहाड़ वा का पहाड़ के बीच पहाड़ वा का कठिन पहाड़ चढ़ने का जी देखो मांगी तुंगी गढ़ का ।। भविक जन... प्रतिमा चंद्र नाथ जिनकी प्रतिमा चंद्र नाथ जिनकी पार्श्वनाथ भगवान जिन्हों पर छाया फणिधर की।। भविक जन... मंदिर एक बना बलभद्र जी का मंदिर एक बना बलभद्र जी का भरे कुंड वहां जल के जी देखो निर्मल पानी है उनका।। भविक जन... भविक जन ध्यान धरो जिनसे, भविक जन ध्यान धरो जिनसे । निन्यानबे करोड़ मुनि मुक्ति गए हैं मांगी तुंगी गढ़ से ।। भविक जन...
  4. अघ-हर श्री जिनबिंब मनोहर, चौबीस जिन का करो भजन, आज दिवस कंचन सम उगीयो, जिन मंदिर में चलो सजन . अघ-हर..||1|| न्हवन स्थापना सहस्रनाम जप, अष्ट-विधार्चन पूजा रचन, जयमाला आरती सुस्वर,स्तवन, सामायिक त्रिकाल पठन. अघ-हर …||2|| जय जय आरती सुरनर नाचत, आनहद दुंदुभी बाज बजन, रत्न जड़ित कर-ताल मनोहर, ज्योति अनुपम धूम्र-तजन . अघ-हर…||3|| ऋषभ अजित सम्भव सुखदाता, अभिनंदन के नमूं चरण, सुमति पद्मप्रभु ,देव सुपार्श्व, चन्द्रनाथ वपु शुभ्र वरण अघ-हर….||4|| पुष्पदंत,शीतल श्रेंयास नमो, वासुपूज्य भव-तार-तरण, विमल अनंत धर्म शान्ती जिन, कुन्थु अरह जिन जन्म-हरण. अघ-हर…||5|| अरु मल्लि मुनिसुव्रत, नमि नेमी, पार्श्वनाथ हत अष्ट करम, नाथवंश, उन्नत कर सप्तम, अंतिम सन्मति देव शरण अघ-हर…||6|| समवशरण की अगणित शोभा, बार सभा उपदेश धरन, जीव उद्धारक, त्रिभुवन तारक, राय रंक की राख शरन। अघ-हर…||7|| तीर्थंकर गुणमाल कण्ठकर, जाप जपो नित करो कथन, देव शास्त्र गुरु विनय करो, ये तीन रतन को करो जतन। अघ-हर…||8|| मूलसंघ पुष्पकरगच्छ मंडन, शांतिसेन गुरुपाद रचन, भविजन भावे शिवसुख पावे, 'बगेरवाल' कहे लाड रतन। अघ-हर…||9||
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