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चौबीस तीर्थकर आरती: अघ-हर श्री जिन


Yogendra Jain UK

अघ-हर श्री जिनबिंब मनोहर, चौबीस जिन का करो भजन,

आज दिवस कंचन सम उगीयो, जिन मंदिर में चलो सजन .

अघ-हर..||1||

न्हवन स्थापना सहस्रनाम जप, अष्ट-विधार्चन पूजा रचन,

जयमाला आरती सुस्वर,स्तवन, सामायिक त्रिकाल पठन.

अघ-हर …||2||

जय जय आरती सुरनर नाचत, आनहद दुंदुभी बाज बजन,

रत्न जड़ित कर-ताल मनोहर, ज्योति अनुपम धूम्र-तजन .

अघ-हर||3||

ऋषभ अजित सम्भव सुखदाता, अभिनंदन के नमूं चरण,

सुमति पद्मप्रभु ,देव सुपार्श्व, चन्द्रनाथ वपु शुभ्र वरण

अघ-हर.||4||

पुष्पदंत,शीतल श्रेंयास नमो, वासुपूज्य भव-तार-तरण,

विमल अनंत धर्म शान्ती जिन, कुन्थु अरह जिन जन्म-हरण.

अघ-हर||5||

अरु मल्लि मुनिसुव्रत, नमि नेमी, पार्श्वनाथ हत अष्ट करम,

नाथवंश, उन्नत कर सप्तम, अंतिम सन्मति देव शरण

अघ-हर||6||

समवशरण की अगणित शोभा, बार सभा उपदेश धरन,

जीव उद्धारक, त्रिभुवन तारक, राय रंक की राख शरन।

अघ-हर||7||

तीर्थंकर गुणमाल कण्ठकर, जाप जपो नित करो कथन,

देव शास्त्र गुरु विनय करो, ये तीन रतन को करो जतन।

अघ-हर||8||

मूलसंघ पुष्पकरगच्छ मंडन, शांतिसेन गुरुपाद रचन,

भविजन भावे शिवसुख पावे, 'बगेरवाल' कहे लाड रतन।

अघ-हर||9||



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