Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

Saurabh Jain

Administrators
  • Posts

    357
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    31

 Content Type 

Profiles

Forums

Events

Jinvani

Articles

दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

Downloads

Gallery

Blogs

Musicbox

Posts posted by Saurabh Jain

  1. आज ऋषभदेव भगवान के जन्म एवं तप   कल्याणक पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

    आप सभी अपने शुभकामना सन्देश इस लिंक पर कमेंट कर लिख सकते हैं 

     

    *विशेष संकलन 

    अध्याय 7 - तीर्थंकर ऋषभदेव
    https://vidyasagar.guru/paathshala/jinsaraswati/prathmanuyog/lesson-7-tirthankar-rishabhdev/

    राजा नाभिराय एवं रानी मरुदेवी के इकलौते पुत्र राजकुमार ऋषभदेव ने संसारी प्राणी को आजीविका का क्या साधन बताया तथा उनका जीवन परिचय एवं चारित्र के विकास का वर्णन इस अध्याय में है।

    पाठ्यक्रम 6ब - प्रथम तीर्थकर - ऋषभदेव (भगवान आदिनाथ)
    https://vidyasagar.guru/paathshala/jain-kakshayein/swadhyay-path/pratham-tirthankar-rishabvhdev-bhagvaan-aadinath/


    भजन   playlist mp3
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/musicbox/play/203-jain-mp3/https://jainsamaj.vidyasagar.guru/musicbox/play/503-jain-mp3/

     

    आदिनाथ जी आरती (3)
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/aarti/aadinath-ji-aarti-2/चालीसा : श्री आदिनाथ जी
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/aarti/aadinath-ji-aarti-1/

    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/chalisa/chalisa-shri-aadinath-ji/

     

        
    भक्तामर स्त्रोत : संस्कृत
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/strotra/bhaktamar-stotra-sanskrit/

     

    भक्तामर स्तोत्र : हिन्दी
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/strotra/bhaktamar-stotra-hindi/

     

    श्री आदिनाथ जी पूजा - नाभिराय मरूदेवी के नंदन 
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/puja/shree-aadhinaath-ji-pooja/

     

    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/puja/shree-aadhinaath-ji-pooja-chandkhedi/


    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/puja/shree-aadinaath-ji-pooja/

  2. आपके आस पास,  समाज में , नगर में वक्ताओं (Speakers) को खोजें, उनको प्रोत्साहन एवं प्रेरणा दें की आपको भगवान् महवीर के जीवन सन्देश में अपनी प्रस्तुति जरूर से देनी हैं 

  3. इस महावीर जयंती क्यों न हम भगवान् महावीर के जीवन सन्देश को पुरे विश्व में फैलाये, एक अनोखा ऑनलाइन महोत्सव बनाएं 

    क्या क्या होने चाहिए कार्यक्रम ? कुछ सुझाव इस प्रकार हैं 

    • भगवान् महावीर का जीवन सन्देश Online Conference : Paper presentation  
    • भगवान् महावीर : Painting / Drawing competition 
    • ऑनलाइन प्रतियोगिता 
    • महावीर स्तोत्र एवं णमोकार  मंत्र का जाप 
    • काव्य एवं भजन प्रस्तुति 
    • Digital images, videos, stories, animation presentation 
    • विभिन्न भाषाओँ में हो प्रस्तुतियां 
    • आमंत्रित हैं आपके अन्य सुझाव 

    किस किस की हो भागीदारी 

    • हर एक जैन श्रावक इसमें भाग लें 
    • आयु समूहों के आधार पर प्रतियोगिता
    • स्थानीय और वैश्विक कार्यक्रम आयोजित हो 
    • सभी संगठन इसमें अपनी प्रस्तुतियाँ दें 

    एक विशाल स्वयंसेवकों का समूह बनें 

    • 16 वर्ष से 20 वर्ष के युवा इसमें अपनी डिजिटल सेवाएं दे ( विस्तृत जानकारी शीघ्र,  उनके लिए सुन्हरा  अवसर होगा धर्म के साथ 
    • प्रत्येक शहर से हो Volunteers 
    • बड़े एवं विशिष्ट (अनुभवी) का एक विशेष परामर्श समूह बनाया जा सकता हैं |

    बजट और प्रायोजक

    • हमरे पास कोई  फण्ड नहीं हैं : हम सब को मिलकर इसको करना होगा 
    • न्यूनतम खर्च में इसको करना होगा 
    • स्थानीय स्तर पर उपहार हो सकते हैं 
    • प्रत्येक श्रवाक् प्रायोजक बन सकता हैं 

    यह एक सुनहरा अवसर हो सकता हैं - जैन समाज को जोड़ने का - आने वाली जनगणना का सन्देश भी इसमें दिया जा सकता हैं 

    विशेष 

    • ऐसा देखा गया हैं , सब अपने संगठन एवं अपने नाम से ऑनलाइन कार्यक्रम करने के कारण, गतिविधि वायरल नहीं हो पाती , विभाजित हो जाती हैं |व्यापक नहीं हो पता |
    • भगवान् महावीर जन्म कल्याणक कार्यक्रम को व्यापक बनाना हैं| हर जैन श्रावक को एवं हर संगठन को आके हाथ मिलाना हैं |
    • हर गुरु से आशीर्वाद लेना हैं |
    • यह सिर्फ outline हैं - इसमें आप सभी के सुझाव के बाद हो सकता हैं परिवर्तन 
    • समय कम हैं, इसलिए निवेदन -शीघ्र  अपने सुझाव प्रेषित करें  और अपना नाम एवं स्थान कमेंट में लिख अपनी उपस्तिथि जरूर दर्ज कराएं 
    • घर घर पाठशाला, घर घर स्वाध्याय  jainsamaj.world Jainism.app एवं jaindharm.app  के अंतर्गत होगा आयोजन 
    • Powered by Vidyasagar.Guru
  4. 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
    🙏🏼बधाई व शुभकामनाएं🙏🏼
    🙏🏼तप कल्याणक पर्व🙏🏼
    मंगसिर कृष्णा दशमी  गुरुवार, दिनांक 10 दिसंबर 2020, जैन धर्म के 24वें  तीर्थंकर देवाधिदेव 1008 श्री महावीर स्वामी  के तप  कल्याणक पर्व के मंगल अवसर पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं
    🙏🏼ओम र्हीं क्लीं 1008 श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः🙏🏼
    🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

  5. जय जिनेन्द्र, कल सुबह 8.30 पर  अपने घर पर सामूहिक जाप श्री प्रमाण सागरजी मुनिवर और संध्या को 6से7 मुनिपुंगाव श्री सुधा सागर जी महाराज रिधि मंत्रो से श्री भक्तामर का पाठ करवाएंगे सभी लाभ उठावे। जिनवाणी और पारस चैनल पर प्रसारण होगा।

    दिन में आप जैन पाठशाला से पढ़े
    https://vidyasagar.guru/paathshala/

    • Like 1
  6. 🙏🏽🙏🏽🙏🏽निवेदन🙏🏽🙏🏽🙏🏽

    ⛓BREAK THE CHAIN⛓

    🤔जनता कर्फ्यू के पीछे का रहस्य

    🗓22 मार्च 2020, रविवार🗓

    ☀सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक🌕

    जय जिनेन्द्र
    प्रधानमंत्री मोदी जी के आव्हान पर 22 मार्च 2020, रविवार को सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक कोई भी घर से बाहर न निकले

    ❄कोरोना वायरस किसी भी सतह (surface) पर 12 घंटों से अधिक जीवित नहीं रह सकता

    भारत  सरकार के जनता कर्फ्यू के पीछे यही मूल वजह है कि जब लोग सुबह 7:00 बजे से रात 9:00 बजे तक, यानी 14 घंटों तक घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो सभी सार्वजनिक स्थानों में जहां यह वायरस फैल चुका है उसे आगे बढ़ने के लिए 12 घंटों तक कोई मानव संवाहक (human carrier) नहीं मिलेगा जिससे यह वायरस सार्वजनिक जगहों पर स्वयं ही 12 घंटों के भीतर मर जाएगा और वायरस की संक्रमण की CHAIN टूट जाएगी

    सभी से करबद्ध निवेदन है कि इस जनता कर्फ्यू को कड़ाई से पालन करें और देश एवं समाज की सुरक्षा के लिए अपना छोटा सा योगदान घर बैठे दीजिए

    भविष्य में ऐसे अनेक दिनों के कर्फ्यू को टालने के लिए अभी से सरकार के आव्हान को गंभीरता से लेवें और जनता कर्फ्यू को मजाक में मत लेवें

    🙏🏽कृपया यह संदेश ज्यादा से ज्यादा शेयर करके सभी को जागरूक करें

     

    • Like 1
  7. आज ऋषभदेव भगवान के जन्म एवं तप   कल्याणक पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

    आप सभी अपने शुभकामना सन्देश इस लिंक पर कमेंट कर लिख सकते हैं 

     

    *विशेष संकलन 

    अध्याय 7 - तीर्थंकर ऋषभदेव
    https://vidyasagar.guru/paathshala/jinsaraswati/prathmanuyog/lesson-7-tirthankar-rishabhdev/

    राजा नाभिराय एवं रानी मरुदेवी के इकलौते पुत्र राजकुमार ऋषभदेव ने संसारी प्राणी को आजीविका का क्या साधन बताया तथा उनका जीवन परिचय एवं चारित्र के विकास का वर्णन इस अध्याय में है।

    पाठ्यक्रम 6ब - प्रथम तीर्थकर - ऋषभदेव (भगवान आदिनाथ)
    https://vidyasagar.guru/paathshala/jain-kakshayein/swadhyay-path/pratham-tirthankar-rishabvhdev-bhagvaan-aadinath/


    भजन   playlist mp3
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/musicbox/play/203-jain-mp3/https://jainsamaj.vidyasagar.guru/musicbox/play/503-jain-mp3/wAAACH5BAEKAAAALAAAAAABAAEAAAICRAEAOw==

     

    आदिनाथ जी आरती (3)
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/aarti/aadinath-ji-aarti-2/चालीसा : श्री आदिनाथ जी
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/aarti/aadinath-ji-aarti-1/wAAACH5BAEKAAAALAAAAAABAAEAAAICRAEAOw==

    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/chalisa/chalisa-shri-aadinath-ji/

     

        
    भक्तामर स्त्रोत : संस्कृत
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/strotra/bhaktamar-stotra-sanskrit/

     

    भक्तामर स्तोत्र : हिन्दी
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/strotra/bhaktamar-stotra-hindi/

     

    श्री आदिनाथ जी पूजा - नाभिराय मरूदेवी के नंदन 
    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/puja/shree-aadhinaath-ji-pooja/

     

    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/puja/shree-aadhinaath-ji-pooja-chandkhedi/


    https://jainsamaj.vidyasagar.guru/jinvani.html/puja/shree-aadinaath-ji-pooja/

     

  8. It seems to me as the discussion is not going in right direction ..let me add some points

    The factors I can try to find out for evaluation 

    1. Healthy Jain Samaj
    2. Intellectual Jain Samaj
    3. Entrepreneurial Jain Samaj - Wealthy Jain Samaj
    4. Cultural values resembling Jain Samaj
    5. Digitally literate, technology leader Jain Samaj


    All above parameters be looked in the various age groups in different way

    60 years above
    50 to 60 years of age
    30 to 50 years of age
    20 to 30 years of age
    8 to 20 years of kids
    below 8 years

    ---

    Stepwise Role Contribution of Jain shravak for 
    Self & Individual development
    For family 
    For Society
    For country
    For world
     

    • Like 1
  9. ”सत्य” ”अहिंसा” धर्म हमारा,
    ”नवकार” हमारी शान है,
    ”महावीर” जैसा नायक पाया….
    ”जैन हमारी पहचान है.”

    महावीर भगवान के जन्म कल्याण दिवस की शुभकामनाएँ एवं बधाई

     

  10.  

    Jain philosophy can be described in various ways, but the most acceptable tradition is to describe it in terms of Tattvas or fundamentals. They are

    jaintattvas.jpg

    1.      Jiva (soul): All living beings are called Jivas. Jivas have consciousness known as the soul, which is also called the atma (soul - chetan).  The soul and body are two different entities. The soul can not be reproduced.  It is described as a sort of energy which is indestructible, invisible, and shapeless. Jainism divides jivas into five categories ranging from one-sensed beings to five-sensed beings. The body is merely a home for the soul.  At the time of death, the soul leaves the body to occupy a new one.  Tirthankaras have said that the soul has an infinite capacity to know and perceive. This capacity of the soul is not experienced in its present state, because of accumulated karmas.

    2.      Ajiva (non‑living matter): Anything that is not a soul is called ajiva. Ajiva does not have consciousness. Jainism divides ajiva in five broad categories: dharmastikay (medium of motion), adharmastikay (medium of  rest), akashastikay (space), pudgalastikay (matter), and kala (time). 

    3.      Punya  (results of good deeds): By undertaking these wholesome activities, we acquire punya or good karmas. Such activities are: providing food or other items to the needy people, doing charity work, propagating religion, etc. When punya matures, it brings forth worldly comfort and happiness. Digambar consider "Punya" as part of Asrava.

    4.      Pap (results of  bad deeds): By undertaking bad activities, we acquire pap or bad karmas.  Such activities are: being cruel or violent, showing disrespect to parents or teachers, being angry or greedy and showing arrogance or indulging in deceit. When pap matures, it brings forth worldly suffering, misery, and unhappiness. Digambar consider "Pap" as part of Asrava.

    5.      Asrava (influx of karmas): The influx of karman particles to the soul is known as asrav. It is caused by wrong belief, vowlessness (observing no vows), passions, negligence, and psychophysical activities. Such an influx of karmas is facilitated by mental, verbal, or physical activities. 

    6.      Bandh (bondage of karmas): This refers to the actual binding of karman particles to the soul. Bandh occurs, when we react to any situation with a sense of attachment or aversion.

    7.      Samvar (stoppage of karmas): This is the process by which the influx of karman particles is stopped. This is achieved by observing samiti (carefulness), gupti (control), ten fold yati‑dharma (monkshood), contemplating the twelve bhavanas (mental reflections), and parishaha (suffering).

    8.      Nirjara (eradication of karmas): The process by which we shed off karmas is called nirjara. Karmas can be shed off either by passive or active efforts. When we passively wait for karmas to mature and give their results in due time, it is called Akam Nirjara.  On the other hand, if we put active efforts for karmas to mature earlier than due time, it is called Sakam Nirjara. Sakam Nirjara can be achieved by performing penance, repentance, asking for forgiveness for the discomfort or injury we might have caused to someone, meditation, etc.

    9.      Moksha (liberation): When we get rid of all the karmas, we attain liberation or moksha.

    Now, let us use a simple analogy to illustrate these Tattvas. There lived a family in a farm house. They were enjoying the fresh cool breeze coming through the open doors and windows. The weather suddenly changed, and a terrible dust storm set in. Realizing it was a bad storm, they got up to close the doors and windows. By the time they could close all the doors and windows, much dust had entered the house.  After closing all of the doors and windows, they started cleaning away the dust that had come into the house.

    We can interpret this simple illustration in terms of Nav‑Tattvas as follows:

    1. Jivas are represented by the people.
    2. Ajiva is represented by the house.
    3. Punya is represented by worldly enjoyment resulting from the nice cool breeze.
    4. Pap is represented by worldly discomfort resulting from the sand storm, which brought dust into the house
    5. Asrava is represented by the influx of dust through the doors and windows of the house which is similar to the influx of karman particles to the soul.
    6. Bandh is represented by the accumulation of dust in the house, which is similar to bondage of karman particles to the soul.
    7. Samvar is represented by the closing of the doors and windows to stop the dust from  coming into the house, which is similar to the stoppage of influx of karman particles to the soul.
    8. Nirjara is represented by the cleaning up of accumulated dust from the house, which is similar to shedding off accumulated karmic particles from the soul.
    9. Moksha is represented by the clean house, which is similar to the shedding of all karmic particles from the soul.

     

    tatva.png

  11. ”सत्य” ”अहिंसा” धर्म हमारा,
    ”नवकार” हमारी शान है,
    ”महावीर” जैसा नायक पाया….
    ”जैन हमारी पहचान है.”

    महावीर भगवान के जन्म कल्याण दिवस की शुभकामनाएँ एवं बधाई

  12. दीक्षा तिथि के अनुसार 
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित -
    117 मुनिराजो के नाम की सूची क्रमशः देखेँ-

    दीक्षा तिथि - 08/03/1980-द्रोणगिरी
    1-मुनिश्री समयसागर जी

    दीक्षा तिथि - 15/04/1980-मोराजी सागर
    2-मुनिश्री योगसागर जी
    3-मुनिश्री नियमसागर जी

    दीक्षा तिथि- 29/10/1981-नैनागिर जी
    4-मुनिश्री चेतनसागर जी
    5-मुनिश्री ओमसागर जी

    दीक्षा तिथि - 20/08/1982-नैनागिर जी
    6-मुनिश्री क्षमासागर जी
    7-मुनिश्री गुप्तिसागर जी
    8-मुनिश्री संयमसागर जी*

    दीक्षा तिथि - 25/09/1983-इशरी पारसनाथ
    9-मुनिश्री सुधासागर जी
    10-मुनिश्री समतासागर जी
    11-मुनिश्री स्वभावसागर जी
    12-मुनिश्री समाधिसागर जी
    13-मुनिश्री सरलसागर जी

    दीक्षा तिथि - 01/07/1985-अहार जी
    14-मुनिश्री वैराग्यसागर जी*

    दीक्षा तिथि - 31/03/1988-सोनागिर जी
    15-मुनिश्री प्रमाणसागर जी
    16-मुनिश्री आर्जवसागर जी
    17-मुनिश्री मार्दवसागर जी
    18-मुनिश्री पवित्रसागर जी
    19-मुनिश्री उत्तमसागर जी
    20-मुनिश्री चिन्मयसागर जी
    21-मुनिश्री पावनसागर जी
    22-मुनिश्री सुखसागर जी

    दीक्षा तिथि - 16/10/1997-नेमावर जी
    23-मुनिश्री अपूर्वसागर जी*
    24-मुनिश्री प्रशांतसागर जी
    25-मुनिश्री निर्वेगसागर जी
    26-मुनिश्री विनीतसागर जी
    27-मुनिश्री निर्णयसागर जी
    28-मुनिश्री प्रबुद्धसागर जी
    29-मुनिश्री प्रवचनसागर जी*
    30-मुनिश्री पुण्यसागर जी
    31-मुनिश्री पायसागर जी
    32-मुनिश्री प्रसादसागर जी

    दीक्षा तिथि - 11/02/1998-मुक्तागिरी जी
    33-मुनिश्री अभयसागर जी
    34-मुनिश्री अक्षयसागर जी
    35-मुनिश्री प्रशस्तसागरजी
    36-मुनिश्री पुराणसागर जी
    37-मुनिश्री प्रयोगसागर जी
    38-मुनिश्री प्रबोधसागर जी
    39-मुनिश्री प्रणम्यसागरजी
    40-मुनिश्री प्रभातसागर जी
    41-मुनिश्री चंद्रसागर जी

    दीक्षा तिथि - 22/04/1999-नेमावर जी
    42-मुनिश्री ऋषभसागरजी
    43-मुनिश्री अजितसागरजी
    44-मुनिश्री संभवसागरजी
    45-मुनिश्री अभिनंदनसागर जी
    46-मुनिश्री सुमतिसागर जी*
    47-मुनिश्री पदमसागर जी
    48-मुनिश्री सुपार्श्वसागरजी
    49-मुनिश्री चंद्रप्रभसागर जी
    50-मुनिश्री पुष्पदंतसागर जी
    51-मुनिश्री शीतलसागर जी
    52-मुनिश्री श्रेयाँससागर जी
    53-मुनिश्री पूज्यसागर जी
    54-मुनिश्री विमलसागर जी
    55-मुनिश्री अनंतसागर जी
    56-मुनिश्री धर्मसागर जी
    57-मुनिश्री शान्तिसागर जी*
    58-मुनिश्री कुन्थुसागर जी
    59-मुनिश्री अरहसागर जी
    60-मुनिश्री मल्लिसागर जी
    61-मुनिश्री सुव्रतसागर जी
    62-मुनिश्री नमिसागर जी
    63-मुनिश्री नेमीसागर जी
    64-मुनिश्री पार्श्वसागर जी

    दीक्षा तिथि - 21/08/2004-दयोदय तीर्थ जबलपुर
    65-मुनिश्री वीरसागर जी
    66-मुनिश्री क्षीरसागर जी
    67-मुनिश्री धीरसागर जी
    68-मुनिश्री उपशमसागर जी
    69-मुनिश्री प्रशमसागर जी
    70-मुनिश्री आगमसागर जी
    71-मुनिश्री महासागर जी
    72-मुनिश्री विराटसागर जी
    73-मुनिश्री विशालसागर जी
    74-मुनिश्री शैलसागर जी
    75-मुनिश्री अचलसागर जी
    76-मुनिश्री पुनीतसागर जी
    77-मुनिश्री वैराग्यसागर जी
    78-मुनिश्री अविचलसागर जी
    79-मुनिश्री विसदसागर जी
    80-मुनिश्री धवलसागर जी
    81-मुनिश्री सौम्यसागर जी
    82-मुनिश्री अनुभवसागर जी
    83-मुनिश्री दुर्लभसागर जी
    84-मुनिश्री विनम्रसागर जी
    85-मुनिश्री अतुलसागर जी
    86-मुनिश्री भावसागर जी
    87-मुनिश्री आनंदसागर जी
    88-मुनिश्री अगम्यसागर जी
    89-मुनिश्री सहजसागर जी

    दीक्षा तिथि - 10/08/2013-रामटेक
    90-मुनिश्री निस्वार्थसागर जी
    91-मुनिश्री निर्दोषसागर जी
    92-मुनिश्री निर्लोभसागर जी
    93-मुनिश्री नीरोगसागर जी
    94-मुनिश्री निर्मोहसागर जी
    95-मुनिश्री निष्पक्षसागर जी
    96-मुनिश्री निष्पृहसागर जी
    97-मुनिश्री निश्चलसागर जी
    98-मुनिश्री निष्कम्पसागर जी
    99-मुनिश्री निष्पन्दसागर जी
    100-मुनिश्री निरामयसागर जी
    101-मुनिश्री निरापदसागर जी
    102-मुनिश्री निराकुलसागर जी
    103-मुनिश्री निरुपमसागर जी
    104-मुनिश्री निष्कामसागर जी
    105-मुनिश्री निरीहसागर जी
    106-मुनिश्री निस्सीमसागर जी
    107-मुनिश्री निर्भीकसागर जी
    108-मुनिश्री नीरागसागर जी
    109-मुनिश्री नीरजसागर जी
    110-मुनिश्री निकलंकसागर जी
    111-मुनिश्री निर्मदसागर जी
    112-मुनिश्री निर्सगसागर जी
    113-मुनिश्री निसंगसागर जी

    दीक्षा तिथि - 16/10/2014-विदिशा
    114-मुनिश्री शीतलसागर जी
    115-मुनिश्री शाश्वतसागर जी
    116-मुनिश्री समरससागर जी
    117-मुनिश्री श्रमणसागर जी

    दीक्षा तिथि - 31/08/2015-बीना बारह सागर
    118- मुनिश्री संधान सागर जी
    119- मुनिश्री संस्कार सागर जी
    120- मुनिश्री ओमकार सागर जी

    परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से अभी तक दीक्षित -172 आर्यिकाओं के नाम की लिस्ट क्रमशः देखें :-

    दीक्षा तिथि - 10/02/1987-नैनागिर जी
    1. आर्यिका गुरुमति जी
    2. आर्यिका दृढमति जी
    3. आर्यिका मृदुमति जी
    4. आर्यिका ऋजुमति जी
    5. आर्यिका तपोमति जी
    6. आर्यिका सत्यमति जी
    7. आर्यिका गुणमति जी
    *8. आर्यिका जिनमति जी
    9. आर्यिका निर्णयमति जी
    10. आर्यिका उज्ज्वलमति जी
    11. आर्यिका पावनमति जी

    दीक्षा तिथि-07/08/1989 कुंडलपुर जी
    12. आर्यिका प्रशांतमति जी
    13. आर्यिका पूर्णमति जी
    14. आर्यिका अनंतमति जी
    15. आर्यिका विमलमति जी
    16. आर्यिका शुभ्रमति जी
    17. आर्यिका कुशलमति जी
    18. आर्यिका निर्मलमति जी
    19. आर्यिका साधुमति जी

    दीक्षा तिथि -09/08/1989-कुण्डलपुर जी
    20. आर्यिका शुक्लमति जी

    दीक्षा तिथि-20/02/1990-नरसिंहपुर
    21. आर्यिका साधनामति जी
    22. आर्यिका विलक्षणामति जी
    23. आर्यिका धारणामति जी
    24. आर्यिका प्रभावनामति जी
    25. आर्यिका भावनामति जी

    दीक्षा तिथि-23/02/1990-नरसिंहपुर
    26. आर्यिका चिंतनमति जी
    27. आर्यिका वैराग्यमति जी

    दीक्षा तिथि-04/07/1992-कुण्डलपुर जी
    28. आर्यिका अदर्शमति जी
    29. आर्यिका दुर्लभमति जी
    30. आर्यिका अंतरमति जी
    31. आर्यिका अविचलमति जी
    32. आर्यिका अनुनयमति जी
    33. आर्यिका अनुग्रहमति जी
    34. आर्यिका अक्षयमति जी
    35. आर्यिका अमूर्तमति जी
    36. आर्यिका अखंडमति जी
    37. आर्यिका आलोकमति जी
    38. आर्यिका अनुपममति जी
    39. आर्यिका अपूर्वमति जी
    40. आर्यिका अनुत्तरमति जी
    41. आर्यिका अनर्घमति जी
    42. आर्यिका अतिशयमति जी

    दीक्षा तिथि -07/07/1992-कुण्डलपुर जी
    43. आर्यिका अनुभवमति जी
    44. आर्यिका आनंदमति जी

    दीक्षा तिथि - 25/01/1993- पिसनहारी मड़ियाजी जबलपुर
    45. आर्यिका सिद्धांतमति जी
    46. आर्यिका अकलंकमति जी
    47. आर्यिका निकलंकमति जी
    48. आर्यिका आगममति जी
    49. आर्यिका स्वाध्यायमति जी
    50. आर्यिका नम्रमति जी
    51. आर्यिका विनम्रमति जी
    52. आर्यिका अतुलमति जी
    53. आर्यिका विशदमति जी
    54. आर्यिका पुराणमति जी
    55. आर्यिका विनतमति जी
    56. आर्यिका विपुलमति जी
    57. आर्यिका मधुरमति जी
    58. आर्यिका प्रसन्नमति जी
    59. आर्यिका प्रशममति जी
    60. आर्यिका अधिगममति जी
    61. आर्यिका मुदितमति जी
    62. आर्यिका सहजमति जी
    63. आर्यिका अनुगममती जी
    64. आर्यिका अमंदमति जी
    65. आर्यिका अभेदमति जी
    *66. आर्यिका एकत्वमति जी
    67. आर्यिका कैवल्यमति जी
    68. आर्यिका संवेगमति जी
    69. आर्यिका निर्वेगमति जी

    दीक्षा तिथि-19/08/1993-रामटेक
    *70. आर्यिका शान्तिमति जी
    *71. आर्यिका निर्वाणमति जी

    दीक्षा तिथि-06/06/1997-नेमावर जी
    72. आर्यिका सूत्रमति जी
    73. आर्यिका सुनयमति जी
    74. आर्यिका सकलमति जी
    75. आर्यिका सविनयमति जी
    76. आर्यिका सतर्कमति जी
    77. आर्यिका संयममति जी
    78. आर्यिका समयमति जी
    79. आर्यिका शोधमति जी
    80. आर्यिका शाश्वतमति जी
    81. आर्यिका सरलमति जी
    82. आर्यिका शीलमति जी
    83. आर्यिका सुशीलमति जी
    84. आर्यिका शैलमति जी
    85. आर्यिका शीतलमति जी
    86. आर्यिका श्वेतमति जी
    87. आर्यिका सारमति जी
    88. आर्यिका सत्यार्थमति जी
    89. आर्यिका सिद्धमति जी
    90. आर्यिका सुसिद्धमति जी
    91. आर्यिका विशुद्धमति जी
    92. आर्यिका साकारमति जी
    93. आर्यिका सौम्यमति जी
    94. आर्यिका सूक्ष्ममति जी
    95. आर्यिका सुशांतमति जी
    96. आर्यिका शांतमति जी
    97. आर्यिका सदयमति जी
    98. आर्यिका समुन्नतमति जी
    99. आर्यिका शास्त्रमति जी
    100. आर्यिका सुधारमति जी

    दीक्षा तिथि-18/08/1997-नेमावर जी
    101. आर्यिका उपशांतमति जी
    102. आर्यिका अकंपमति जी
    103. आर्यिका अमूल्यमति जी
    104. आर्यिका आराध्यमति जी
    105. आर्यिका ओंकारमति जी
    106. आर्यिका उन्नतमति जी
    107. आर्यिका अचिंतमति जी
    108. आर्यिका अलोल्यमति जी
    109. आर्यिका अनमोलमति जी
    110. आर्यिका उचितमति जी
    111. आर्यिका उद्योतमति जी
    112. आर्यिका आज्ञामति जी
    113. आर्यिका अचलमति जी
    114. आर्यिका अवगममति जी

    दीक्षा तिथि-13/02/2006-कुण्डलपुर जी
    115. आर्यिका स्वस्थमति जी
    116. आर्यिका तथ्यमति जी
    117. आर्यिका वात्सल्यमति जी
    118. आर्यिका पथ्यमति जी
    119. आर्यिका जाग्रतमति जी
    120. आर्यिका कर्तव्यमति जी
    121. आर्यिका गन्तव्यमति जी
    122. आर्यिका संस्कारमति जी
    123. आर्यिका निष्काममति जी
    124. आर्यिका विरतमति जी
    125. आर्यिका तथामति जी
    126. आर्यिका उदारमति जी
    127. आर्यिका विजितमति जी
    128. आर्यिका संतुष्टमति जी
    129. आर्यिका निकटमति जी
    130. आर्यिका संवरमति जी
    131. आर्यिका ध्येयमति जी
    132. आर्यिका आत्ममति जी
    133. आर्यिका चैत्यमति जी
    134. आर्यिका पृथ्वीयमति जी
    135. आर्यिका निर्मदमति जी
    136. आर्यिका पुनीतमति जी
    137. आर्यिका विनीतमति जी
    138. आर्यिका मेरुमति जी
    139. आर्यिका आप्तमति जी
    140. आर्यिका उपशममति जी
    141. आर्यिका ध्रुवमति जी
    142. आर्यिका असीममति जी
    143. आर्यिका गौतममति जी
    144. आर्यिका संयतमति जी
    145. आर्यिका अगाधमति जी
    146. आर्यिका निर्वाणमति जी
    147. आर्यिका मार्दवमति जी
    148. आर्यिका मंगलमति जी
    149. आर्यिका परमार्थमति जी
    150. आर्यिका ध्यानमति जी
    151. आर्यिका विदेहमति जी
    152. आर्यिका अवायमति जी
    153. आर्यिका पारमति जी
    154. आर्यिका आगतमति जी
    155. आर्यिका श्रुतमति जी
    156. आर्यिका अदूरमति जी
    157. आर्यिका स्वभावमति जी
    158. आर्यिका धवलमति जी
    159. आर्यिका विनयमति जी
    160. आर्यिका समितिमति जी
    161. आर्यिका अमितमति जी
    162. आर्यिका परममति जी
    163. आर्यिका चेतनमति जी
    164. आर्यिका निसर्गमति जी
    165. आर्यिका मननमति जी
    *166. आर्यिका अविकारमति जी
    167. आर्यिका चारित्रमति जी
    168. आर्यिका श्रद्धामति जी
    169. आर्यिका उत्कर्षमति जी
    170. आर्यिका संगतमति जी
    171. आर्यिका लक्ष्यमति जी 
    172. आर्यिका भक्तिमति जी

    * निशान की समाधी हो गयी हैं।
     

    Thanks to Rishabh Shah Ji from Ujjain for sharing same on whatsapp

    • Like 1
  13. आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हाइकु छन्द:

    aacharya1.jpg.f49fee45c07ecf108c33b478b8


    1. अपना मन
    अपने विषय में
    क्यों न सोचता।
    अर्थ: मन अपना होते हुए भी हमेशा दूसरो के विषय में ही सोचता है अपने विषय में कभी भी नहीं।


    2. जगत रहा
    पुण्य पाप का खेत
    बोया सो पाया
    अर्थ: यह जगत पुण्य पाप के खेत की तरह है। इस खेत में जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है।


    3. गुरू की चर्या देख
    भावना होती
    हम भी पावें।
    अर्थ: गुरू की श्रेष्ठ चर्या को देखकर हमें भी उनके जैसे बनने की प्रेरणा मिलती है।


    4. मौन के बिना
    मुक्ति संभव नहीं
    मन बना ले।
    अर्थ: मौन के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है इसलिये मौन धारण करने के बारे में सोचे।


    5. डाट के बिना
    शिष्य और शीशी का 
    भविष्य ही क्या।
    अर्थ: शिष्य को यदि डाट न पङे और शीशी को यदि डाट न लगाया जाये तो दोनो का भविष्य खतरे में होता है।


    6. गुरू ने मुझे
    क्या न दिया हाथ में
    दिया दे दिया।
    अर्थ: गुरू ने हाथ में दीपक थमाकर मानों मुझे सब कुछ दे दिया।


    7. जितना चाहा
    जो चाहा जब चाहा
    क्या कभी मिला।
    अर्थ: इन्सान जितना चाहता है उतना, जो चाहता है वह, और जब चाहता है तब क्या उसे मिल पाता है? नहीं।


    8. मन की बात
    नहीं सुनना होती
    मोक्षमार्ग में।
    अर्थ: मोक्षमार्ग में मन की बात सुनना अहितकर हो सकता है।


    9. असमर्थन
    विरोध सा लगता
    विरोध नहीं।
    अर्थ: किसी बात का समर्थन न करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि उसका विरोध किया जा रहा है, परन्तु वह विरोध नहीं होता।


    10. मोक्षमार्ग में
    समिति समतल
    गुप्ति सीढ़ियां।
    अर्थ: मोक्षमार्ग में समितियां का पालन समतल पर चलने की तरह होता है जबकि गुप्तियों का पालन सीढियां चढ़ने की तरह।


    11. स्वानुभूति ही
    श्रमण का लक्ष्य हो
    अन्यथा भूसा।
    अर्थ: आत्मा की अनुभूति ही श्रमण का लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा न होने पर सब कुछ व्यर्थ है।


    12. प्रकृति में जो 
    रहता है वह सदा
    स्वस्थ रहता।
    अर्थ: प्रकृति में जीने वाला कभी अस्वस्थ नहीं होता।


    13. तेरी दो आंखे
    तेरी ओर हजार
    सतर्क हो जा।
    अर्थ: दूसरों को देखेने के लिये हमारे पास केवल दो आंखे हैं। लेकिन हमारी ओर उठने वाली आंख हजारों हैं इसलिये एक एक कदम फ़ूंक फ़ूंक कर रखना चाहिये।


    14. पौंधे न रोपें
    और छाया चाहते
    पौरूष्य नहीं।
    अर्थ: मानव वृक्षारोपण तो करता नहीं और छांव चाहता है। यह तो पौरूष नहीं।


    15. मान शत्रु है
    कछुआ बनूं बचूं
    खरगोश से।
    अर्थ: मान शत्रु है, कछुआ की तरह निरहंकारी बन अपने पथ पर चलता रहूं न कि अहंकारी खरगोश की तरह जीवन में पराजय को प्राप्त होऊं।


    16. मैं क्या जानता
    क्या क्या न जानता सो
    गुरूजी जानें।
    अर्थ: मैं क्या जानता हूं और क्या नहीं, यह तो गुरू ही जानें।


    17. मान चाहूं न
    पै अपमान अभी
    सहा न जाता।
    अर्थ: मान सबको अच्छा लगता है। अपमान कोई नहीं सह पाता।


    18. बिना प्रमाद
    ’श्वसन क्रिया सम’
    पथ पे चलूं।
    अर्थ: जैसे श्वास बिना रूके निरन्तर चलती रहती है उसी प्रकार मैं भी अपने पथ पर निरन्तर चलता रहूं।


    19. जिन बोध में
    ’लोकालोक तैरते’
    उन्हे नमन।
    अर्थ: जिनेन्द्र देव के ज्ञान में लोकलोक झलकते हैं उन्हे हमारा नमस्कार हो।


    20. उजाले में हैं
    “उजाला करते हैं”
    गुरू को बन्दूं।
    अर्थ: जो स्वयं प्रकाशित हैं और सबको प्रकाश दिखाते हैं ऐसे गुरू को वन्दन करते हैं।


    21. साधना छोङ
    ’कायरत होना ही’
    कायरता है।
    अर्थ: साधना से विमुख होकर शरीर से ममत्व करना कायरता है।


    22. बिना रस भी
    पेट भरता छोङो
    मन के लड्डू।
    अर्थ: इन्द्रियों के वशीभूत होकर रसों का सेवन करना बंद करो क्योंकि पेट भरने के लिये नीरस भोजन भी पर्याप्त हैं।


    23. संघर्ष में भी
    ’चंदन सम सदा’
    सुगन्धि बांटू।
    अर्थ: भले ही मुझे कष्ट झेलने पङे परन्तु मैं चन्दन की तरह सबको खुशबू प्रदान करता रहूं।


    24. पाषाण भीगे
    ’वर्षा में, हमारी भी’
    यही दशा।
    अर्थ: वर्षा में भीगे हुये पाषाण की तरह हमारी दशा है जिसका असर बहुत शीघ्र समाप्त हो जाता है।


    25. आप में न हो
    ’तभी तो अस्वस्थ हो’
    अब तो आओ।
    अर्थ: अपने आप में नहीं रहने वाला अस्वस्थ रहता है। इसलिये अब अपने में आ जाओ।


    26. घनी निशा में
    ’माथा भयभीत हो’
    आस्था आस्था है।
    अर्थ: संकट के समय यदि घबरा गये तो समझो आस्था कमजोर है।


    27. मलाई कहां
    अशांत दूध में सो
    प्रशांत बनो।
    अर्थ: अशांत दूध में मलाई नहीं होती, इसलिये शान्त बनों।


    28. खाल मिली थी
    यही मिट्टी में मिली
    खाली जाता हूं।
    अर्थ: चर्म का यह तन मिला था यह भी अन्ततः मिट्टी में मिल गया। खाली हाथ जाना होगा।


    29. आगे बनूंगा
    अभी प्रभु पदों में 
    बैठ तो जाऊं
    अर्थ: पहले भगवान के चरणों में बैठना होगा, तभी भगवान बनना सम्भव है।


    30. अपने मन,
    को टटोले बिना ही
    सब व्यर्थ है।
    अर्थ: अपने मन को टटोलते रहना चाहिये अन्यथा सब व्यर्थ है।


    31. देखो ध्यान में
    कोलाहल मन का
    नींद ले रहा।
    अर्थ: ध्यान में मन का शोर समाप्त हो जाता है।


    32. द्वेष से राग,
    जहरीला है जैसे
    शूल से फ़ूल।
    अर्थ: द्वेष की अपेक्षा राग ज्यादा हानिकारक है, जैसे फ़ूल की अपेक्षा कांटा ज्यादा खतरनाक होता है।


    33. छाया सी लक्ष्मी,
    अनुचरा हो यदि
    उसे न देखो।
    अर्थ: यदि लक्ष्मी की तरफ़ ध्यान न दो वह दासी की तरह साथ देती है।


    34. कैदी हूं देह
    जेल में जेलर ना
    तो भी भागा ना।
    अर्थ: देह रूपी जेल में आत्मा कैद है। उस जेल में जेलर नहीं है फ़िर भी इसने भागने की कोशिश नहीं की। कारण इसे उस कैद में ही रस आने लगा है।


    35. निजी पराये,
    बच्चों को दुग्ध-पान
    कराती गौ मां।
    अर्थ: अपने पराये का भेद भुलाकर गौ माता सबको दुग्धपान करती है।


    36. ज्ञानी कहता,
    जब बोलूं अपना
    स्वाद टूटता।
    अर्थ: ज्ञानी कहता है कि जब भी मैं बोलता हूं बाहर आ जाता हूं और आत्मा के सुख से वंचित रह जाता हूं।


    37. समानान्तर,
    दो रेखाओं में मैत्री
    पल सकती।
    अर्थ: मैत्री समान लोगों की ही होती है। जैसे कि दो समानान्तर रेखायें अन्त तक साथ चलती है।
    38. वक्ता व श्रोता
    बने बिना गूंगा सा
    स्व का स्वाद ले।
    अर्थ: आत्मा का रस लेने के लिये मूक बनना होगा। न वक्ता और न ही श्रोता।


    39. परिचित भी,
    अपरिचित लगे
    स्वस्थ ज्ञान में।
    अर्थ: आत्मस्थ दशा में परिचित व्यक्ति भी, वास्तविकता का बोध हो जाने से अपरिचित ही लगना चाहिये।


    40. नौ मास उल्टा
    लटका आज तप
    कष्टकर क्यों।
    अर्थ: नव मास तक मां के पेट में उल्टा लटकता रहा फ़िर भी आज तप करने से डरता है।


    41. कहो न सहो
    सही परीक्षा यही
    आपे में रहो।
    अर्थ: कहो मत बल्कि सहो। सही परीक्षा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने आप में रहने पर होती है।
     

  14. आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के अमृत वचन

    vidhyasagar.jpg.4aa97771f086af5a4d16c9cc

    1. जिन और जन में इतना ही अन्तर है कि एक वैभव के ऊपर बैठा है और एक के ऊपर वैभव बैठा है।
    2. श्रद्धा जब गहराती है तब वही समर्पण बन जाती है।
    3. मांगने से नहीं किन्तु अधिकार श्रद्धा से मिलते है।
    4. शिक्षा वही श्रेष्ठ है, जो जन्म-मरण का क्षय करती है।
    5. अपने आपको जानो, अपने को पहिचानो, अपनी सुरक्षा करो क्योंकि अपने में ही सब कुछ है।
    6. शरीर के प्रति वैराग्य और जगत के प्रति संवेग ये दोनो ही बातें आत्म कल्याण के लिये अनिवार्य है।
    7. अपने उपयोग का उपयोग पर की चिंता में ना करे।
    8. पंचपरमेष्ठी की भक्ति एवं ध्यान से विशुद्धि बढ़ेगी, संक्लेश घटेगा, वात्सल्य बढ़ेगा।
    9. भक्ति गंगा की लहर ह्रदय के भीतर से प्रवाहित होना चाहिये और पहुंचना चाहिये वहां कहां निस्सीमता हो।
    10. जो व्यक्ति वाणी को नियन्त्रित नहीं कर सकता वह साधना नहीं कर सकता।
    11. वें महान हैं जो मुख से एक शब्द निकालने में आगे पीछे विचार करते हैं।
    12. साधक बनों प्रचारक नहीं।
  15. vradhamansagar.jpg.ab88cb112a72646ef8d34

    1. क्रोध बोलता है, पर मान, माया, व लोभ बोलते नहीं हैं।
    2. डरो मत। संयम धारण करो। संयम धारण किये बना कल्याण नहीं होता।
    3. मोक्षमार्ग में साहस, उत्साह व धैर्य इन तीनो की आवश्यकता है।
    4. संसार में सेठ बनकर नहीं मुनीम बनकर रहो।
    5. शरीर मरणधर्मा है, पर आत्मा अमरधर्मा है।
    6. संक्लेष से क्षयोपक्षम घटता है, इसलिए बाह्य निमित्तो से बचो।
    7. क्रोधी मनुष्य आंखे होते हुये भी अंधा है।
    8. श्रम के पौधे पर सफ़लता के फ़ूल खिलते हैं।
    9. जो सुख को त्यागता है, वही चारित्र में प्रवृत्त होता है।
    10. जो घट में उतर जाता है, वह अन्तरघट को प्राप्त होता है।
    11. सभ्यता की एक मात्र कसौटी है, सहनशीलता।
    12. सम्यग्दृष्टि संसार में रह सकता है, किन्तु उसके ह्रदय में संसार नहीं रह सकता।
    13. जो हमारा है वो जाता नहीं, जो जाता है वो हमारा नहीं।
    14. गुण ग्रहण में छोटे बङे का भेद नहीं देखा जाता।
    15. विवेक और विनय बिना मोक्ष नहीं है।
    16. सुख-दुख कर्म के उदय से होता है।
    17. सब से मिले पर सब, में मिलों मत।
    18. अपने से छोटो को देखने वाला सुखी रहता है।
    19. सदोष चारित्र अचारित्र है।
    20. निंदा करने का फ़ल नरक में जाना है।
    21. कर्तव्य में प्रमाद नहीं करना ही सफ़लता है।
    22. संगठन के लिये सबसे बङा सूत्र "सुई बनो कैची मत बनो"।
    23. पुण्य के बिना मरण भी सुमरण नहीं हो सकता।
    24. प्रतिकूलता में से अनुकूलता को खोजने का नाम साधना है।

    Source 

    https://www.facebook.com/groups/108vradhamansagar/

  16. सभी से क्षमा,  सभी को क्षमा
    गुरु प्रभावना में एवं धर्म प्रभावना में  आपका सहयोग हमेशा  मिलता रहे।

     

    टीम विद्यासागर डॉट गुरु 

    JainSamaj.World

    सौरभ जैन जयपुर

    kshama.jpgKshama.thumb.jpg.881411b06c26535b616b3c5

  17.  दस धर्मो का सुन्दर बगीचा

    दस धर्मो का बाग है सुन्दर
    इन्हें सजा लो अपने अंदर
    तन मन जीवन भी महकेंगा
    कर्म धूल सारी हर लेगा

     

    क्षमा क्रोध से दूर करेगा
    मार्दव मन का मान हरेगा
    आर्जव सीधी चाल बनाता
    सत्य ज्ञान का रूप दिखाता


    शौच लोभ को दूर भगाए
    संयम आतम स्वस्थ बनाये
    तप से अपना नाता जोड़ो
    त्याग से अपना मुख न मोड़ो


    आकिंचन का पालन करना
    ब्रह्मचर्य को धारण करना
    दस धर्मो का करो आचरण
    आतम का हो जाये जागरन

     

    आतम का दर्शन करवाये
    आतम आनन्द पा हर्षाये 
    दसलक्षण धर्म की जय जय जय


    हार्दिक शुभकामनाये

    • Like 2
  18.  

    shantisagarji.thumb.jpg.043e8fa2ce3f4445

    श्रमण परंपरा के स्वर्णिम अध्याम मोक्ष मार्ग दिग्दर्शक परम पूज्य २० वीं शताब्दी के प्रथमाचार्य श्री १०८ शांतिसागर जी महाराज जी की समाधि साधना आज भी साधको के लिये प्रेरणा का दिव्य प्रकाश है । पूज्य श्री के समाधि दिवस पर शत-शत नमन !
    परम पूज्य गुरूवर समाधिस्थ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज के मुनि दीक्षा दिवस पर शत-शत नमन

    नमोस्तु मुनिवर 

×
×
  • Create New...