रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३५
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
मैं जब पूज्य वर्णीजी की आत्मकथा को पढ़ता हूँ। ह्रदय भीग जाता है उनके जीवन को जानकर।
यदि आप भी पूज्य वर्णीजी के जीवन चरित्र को रुचि पढ़ रहे हैं तो आपका अंतःकरण भी एक महापुरुष के जीवन को नजदीक से स्पर्श करके अद्भुत आनंद के अनुभव से अछूता नहीं रहेगे।
आत्मकथा में आज के अंश से ज्ञात होता है कि भले ही उनके पास साधन नहीं थे लेकिन गणेश प्रसाद आत्मसाधना के लिए कितने व्याकुल थे।
रेशन्दीगिरि अर्थात सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि वंदना के साथ उसके प्रति आकर्षण उनकी आत्मा का धर्म के प्रति असामान्य लगाव का परिचय देती है।
श्री कुण्डलपुर की वंदना हेतु पैदल यात्रा में रास्ते में किसी के घर ठहरना, घर वालों का रात्रि में भोजन हेतु विशेष आग्रह आदि बहुत रोचक है।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*
*क्रमांक - ३५*
रेशन्दीगिरि मैं तीन दिन रहा। चित्त जाने को नहीं चाहता था। चित्त में यही आता कि 'सर्व विकल्पों को त्यागो और धर्म-साधन करो। परंतु साधनों के अभाव में दरिद्रों के मनोरथों के समान कुछ न कर सका।'
चार दिन के बाद श्री अतिशय क्षेत्र कुण्डलपुर के लिए प्रस्थान किया। प्रस्थान के समय आँखों में अश्रुधारा आ गई। चलने में गति का वेग न था, पीछे-पीछे देखता जाता था और आगे-आगे चलता जाता था। बलात्कार जाना ही पड़ा।
सायंकाल होते-होते एक गाँव में पहुँच गया। थकावट के कारण एक अहीर के घर ठहर गया। उसने रात्रि में आग जलाई और कहा 'भोजन बना लो। मेरे यहाँ भूखे पड़े रहना अच्छा नहीं। आप तो भूखे रहो और हम लोग भोजन कर लें, यह अच्छा नहीं लगता।'
मैंने कहा- 'भैया ! मैं रात्रि को भोजन नहीं करता।' उसने कहा- 'अच्छा, भैस का दूध ही पी लो, जिससे मुझे तसल्ली हो जाय।'
मैंने कहा- 'मैं पानी के सिवा और कुछ नहीं लेता।' वह बहुत दुखी हुआ। स्त्री ने यहाँ तक कहा- 'भला, जिसके दरवाजे पर मेहमान भूखा पड़ा रहे उसको कहाँ तक संतोष होगा।'
मैंने कहा- 'माँ जी ! लाचार हूँ।' तब उस गृहणी ने कहा- 'प्रातःकाल भोजन करके जाना, अन्यथा आप दूसरे स्थान पर जाकर सोवें।'
मैंने कहा- 'अब आपका सुंदर घर पाकर कहाँ जाऊँ? प्रातः काल होने पर आपकी आज्ञा का पालन होगा।'
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
?आजकी तिथी- ज्येष्ठ शुक्ल ४ ?
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