खुरई में तीन दिन - २९
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज की प्रस्तुती का यह प्रसंग वर्णी जी के जीवन का बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है। कल की प्रस्तुती में हमने देखा विद्धवान ने गणेश प्रसाद से कहा कि अच्छे खान पान के लोभ में लोग जैन धर्म को धारण करते हैं।
वर्णी जी ने उन विद्धवान की अनुचित बातों के उत्तर में जो कहा उससे उनके अंदर, विद्धवान के कथन के कारण उत्पन्न हुई अंतर्वेदना स्पष्ट होती है।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"खुरई में तीन दिन"*
क्रमांक - २९
पण्डितजी की बात सुनकर मुझे बहुत खेद हुआ। मैंने कहा- 'महराज ! आपने मुझे सांत्वना के बदले वाकबाणों की वर्षा से आछन्न कर दिया। मेरी आत्मा में तो इतना खेद हुआ, जिसे मैं व्यक्त ही नहीं कर सकता।
आपने मेरे साथ जो इस तरह का व्यवहार किया, सो आप ही बतलाइये कि मैंने आपसे क्या चंदा माँगा था या कोई याचना की थी, या आजीविका का साधन पूंछा था? व्यर्थ ही आपने मेरे साथ अन्याय किया।
क्या यहाँ पर जितने श्रोता हैं वे सब आपकी तरह शास्त्र वाँचने में पटु हैं या सब ही जैनधर्म के मार्मिक पंडित हैं? नहीं, मैं तो एक भिन्न कुल का भिन्न धर्म का अनुयायी हूँ। और फिर आप जैसे विद्धवानों के सामने कहता ही क्या?
मैंने जो कुछ कहा, बहुत था, परंतु न जाने आपको मेरे ऊपर क्यों बेरहमी हो गई। मेरे दुर्दैव का ही प्रकोप है। अस्तु,
अब पण्डितजी ! आपसे शपथ पूर्वक कहता हूँ- उस दिन ही आपके दर्शन करूँगा, जिस दिन धर्म का मार्मिक स्वरूप आपके समक्ष रखकर आपको संतुष्ट कर सकूँगा। आज आप जो वाक्य मेरे प्रति व्यवहार में लाये है तब आपको वापिस लेने पड़ेंगे।'
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*? ? आजकी तिथी- ज्येष्ठ कृष्ण ९ ?
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