Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    335
  • comments
    11
  • views
    30,952

?अमृत माँ जिनवाणी से - बालकों पर प्रेम - ३२४


Abhishek Jain

488 views

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३२४   ?


                 "बालकों पर प्रेम"


        वीतराग की सजीव मूर्ति होते हुए आचार्यश्री में अपार वात्सल्य पाया जाता था। लगभग १९३८ के भाद्रपद की बात है। उस समय महराज ने बारामती में सेठ रामचंद्र के उद्यान में चातुर्मास किया था।

        एक दिन अपरान्ह में महराज का केशलोंच हो रहा था। उनके समीप एक छोटा तीन वर्ष की अवस्था वाला स्वस्थ सुरूप तथा नग्न मुद्रा वाला बालक महराज को केशलोंच करते देखकर नकल करने वाले बंदर के समान अपने बालों को पकड़कर धीरे-२ खीचता था।

      उस बालक को देखकर महराज का मुख सस्मित हो गया और उन्होंने सहज आशीर्वाद दे उसके सिर पर अपनी पिच्छी से स्पर्श कर दिया। 

      लौंच के उपरांत जब महराज का मौन खुला, तब मैंने महराज से पूंछा- "महराज इस बालक के मस्तक पर आपने पिच्छी का स्पर्श क्यों करा दिया?"

        जब वे कुछ न बोले, तब मैंने कहा - "महराज ! मुनिपद को बालकवत निर्विकार कहा गया है। अपने पक्षवालों को देखकर किसे प्रेम उत्पन्न नहीं होता है। प्रतीत होता है, इसी कारण उस बालक पर आपका वात्सल्य जागृत हो गया?"

    महराज के सस्मित मुख से प्रतीत होता है कि मौन द्वारा मेरा समर्थन किया।

? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
  ?आज की तिथी- आषाढ़ शुक्ल ३?

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...