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?अमृत माँ जिनवाणी से - किन ग्रंथों का प्रभाव पढ़ा - ३२५


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३२५   ?


          "किन ग्रंथों का प्रभाव पढ़ा"


           एक बार पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र के लेखक दिवाकरजी ने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज से पूछा, "महराज ! प्रारम्भ में कौन से शास्त्र आपको विशेष प्रिय लगते थे और किन ग्रंथो  ने आपके जीवन को विशेष प्रभावित किया?

         महराज ने कहा, "जब हम पंद्रह-सोलह वर्ष के थे तब हिन्दी में समयसार तथा आत्मानुशासन बांचा करते थे। हिन्दी रत्नकरंडश्रावकाचार की टीका भी पढ़ते थे। इससे मन को बड़ी शांति मिलती थी।

         आत्मानुशासन पढ़ने से मन में वैराग्य भाव बढ़ता था। इसमें वैराग्य तथा स्त्रीसुख से विरक्ति का अच्छा वर्णन है। इससे हमारा मन त्याग की ओर बढ़ता था। इरादा १७-१८ वर्ष की अवस्था से ही मुनि बनने का था।"

      महराज ने यह भी बताया कि आत्मानुशासन की चर्चा अपने श्रेष्ट सत्यव्रती मित्र रुद्रप्पा नामक लिंगायत बंधु से किया करते थे। इन दोनो महापुरुषों का परस्पर में तत्व विचार चला करता था। महराज ने कहा था कि "आत्मानुशासन की कथा रुद्रप्पा को बड़ी प्रिय लगती थी।"


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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