?नागपुर के नागरिकों की भक्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - २६९
? अमृत माँ जिनवाणी से - २६९ ?
"नागपुर के नागरिकों की भक्ति"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का शिखरजी की ओर विहार के क्रम में नागपुर नगर में भव्य मंगल प्रवेश हुआ। वहाँ के श्रावकों की अत्यंत भक्ति भावना को लेखक श्री दिवाकरजी ने उपमा देते हुआ लिखा है कि -
महाभारत में लिखा है कि नागनरेश श्रवणों के उपासक थे। नागकुलीन राजा तक्षक नग्न श्रमण हो गया था। दिगम्बर मुनियों के प्रति नागपुर प्रांतीय जनता की भक्ति ने पुरातन कथन की प्रमाणिकता प्रतिपादित कर दी थी। हमें तो ऐसा लगता है कि नाग युगल को सुर पदवी प्रदान करने वाले इन महामुनि तथा उनके संघ के प्रति लोगों ने अपार भक्ति प्रगट की जो इस विचार की पुष्टि करता था कि यह नगर यथार्थ में नागपुर (फणिपुर) ही है।
नागपुर का इतवार बाजार, सराफा बाजार तीन दिन पर्यन्त बंद रहे थे। यथार्थ में देखा जाए तो कहना होगा कि इन रत्नत्रय मूर्ति को प्राप्त कर पारलौकिक धनसंचय में चतुर व्यापारी निमग्न थे, इसी दृष्टि को प्राधान्य दे उन्होंने बड़े-२ दरवाजे बनवाए थे। तोरण वंदनमाल आदि से नागरी को सजाया था। इसलिए नगर नयनाभीराम लगता था। वहाँ ऐलक चंद्रसागर तथा पायसागर ऐनापुर वालों का केशलोंच हुआ। लगभग १५ हजार जनता उपस्थित थी।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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