?नागपुर प्रवेश - अमृत माँ जिनवाणी से - २६८
? अमृत माँ जिनवाणी से - २६८ ?
"नागपुर प्रवेश"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज ने शिखरजी की ओर विहार के क्रम में सन् १९२८ को नागपुर नगर में प्रवेश किया। जुलूस तीन मील लंबा था। उसमें छत्र, चमर, पालकी, ध्वजा आदि सोने चाँदी आदि की बहुमूल्य सामग्री थी, इससे उसकी शोभा बड़ी मनोरम थी।
नागपुर नगर वासियों के सिवाय प्रांत भर के लोग जैन, अजैन तथा अधिकारी वर्ग आचार्यश्री के दर्शन द्वारा अपने को कृतार्थ करने को खड़े थे। लोगों की धारणा है कि इतना सुंदर विशाल भव्य और भक्ति युक्त जनता का जुलूस पुनः नागपुर में अब तक नहीं निकला, ऐसा उस समय की परिस्थिती में दिवाकर जी ने लिखा है।
?अपूर्व स्वागत?
अंजनी से चलकर गुरुदेव की सीताबरड़ी में पूजा के अनन्तर जुलूस शांतिनगर की ओर चला। यह नवीन स्थान बाहर से आये हजारों जैनियों के निवास के लिए बनाया गया था। आज भी वह स्थान आचार्यश्री के नाम से स्मारक रूप में विख्यात है। जुलूस की शोभा दर्शनीय थी।
जहां देखो वहाँ भक्त। भीढ़ इतनी अधिक थी कि जब महल के पास श्रीमंत भोंसले सरकार रग्धू जी महराज ने जुलूस रोकने के लिए प्रार्थना करवायी तब प्रयत्न करने पर भी जनता के प्रवाह को रोकना अशक्य हो गया।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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