?राजधर्म पर प्रकाश -१ - अमृत माँ जिनवाणी से - २५८
? अमृत माँ जिनवाणी से - २५८ ?
"राजधर्म पर प्रकाश - १"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने अपने सम्बोधन में कहा - "राजनीति तो यह है कि राज्य भी करे तथा पुण्य भी कमावे। पूर्व में तप करने वाला राजा बनता था। दान देने वाला धनी बनता है। राज्य पर कोई आक्रमण करे तो उसको हटाने के लिए प्रति आक्रमण करना विरोधी हिंसा है, उसका त्याग गृहस्थी में नहीं बनता है, उसे अपना घर सम्हालना है और चोर से भी रक्षा करना है।
सज्जन राजा गरीबों के उद्धार का उपाय करता है। गरीब दो प्रकार के हैं, जो ह्रष्ट-पुष्ट गरीब आजीविका विहीन हैं, उनको आजीविका से लगाना चाहिए। जो गरीब अंगहीन हैं, उनका रक्षण करना चाहिए।"
महराज ने कहा- "जो पंच पाप करता है वह पापी है, जो उन्हें छोड़ता है वह पुण्यवान है। पंच पाप की पुष्टि से राज्य करना अन्याय है। प्रजा का अपने बच्चे की तरह पालन करना राजनीति है।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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