?सिवनी के जिनालयों की चर्चा - अमृत माँ जिनवाणी से - २९९
? अमृत माँ जिनवाणी से - २९९ ?
"सिवनी के जिनालय की चर्चा"
एक दिन मैंने आचार्य महराज को सिवनी के विशाल जैनमंदिरों का चित्र दिखाया। उस समय आचार्यश्री ने कहा, "जबलपुर से वह कितनी दूर है?"
मैंने कहा, "महराज, ९५ मील पर है।"
महराज बोले, "हम जब जबलपुर आये थे, तब तुमसे परिचय नहीं था, नहीं तो सिवनी अवश्य जाते।"
मैंने कहा, "महराज ! उस समय तो मैं काशी में विद्याभ्यास करता था, इसी से आपसे वहाँ पधारने की प्रार्थना करने का सौभाग्य नहीं मिला।"
मैंने मंदिर के चित्र को जब बताया था, तब अधिक प्रकाश न था, इस कारण एक व्यक्ति ने मुझे कहा, आप महराज को दुबारा अच्छे उजेले में यह सुंदर फोटो दिखा देना।" मैंने ऐसा ही किया, तब महराज बोले, "बार-बार क्या बताते हो। हम जिस चीज को एक बार देख लेते हैं, उसे कभी नहीं भूलते हैं।"
तब स्मरण आया कि इसी कारण महराज को अनेक शास्त्रो की असाधारण धारणा हो गई है। महराज एक बार बताते थे 'हम रात्रि को तत्वों के बारे में खूब विचार करते रहते हैं।' उसी तत्वचिंतन के पश्चात जो अनुभवपूर्ण वाणी महराज की निकलती है, वह बड़े-२ विद्वानो को मुग्ध कर देती है।
एक बार महराज जबलपुर के विशाल हनुमानताल के बारे मे कहते थे, "वह मंदिर किले के सदृश है।" मढ़ियाजी का प्रशांत वातावरण भी उनको अनुकूल लगता था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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