?श्रावकों की भक्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - २९१
? अमृत माँ जिनवाणी से - २९१ ?
"श्रावकों की भक्ति"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज के कटनी चातुर्मास निश्चित होने के बाद श्रावकों को अपने भाग्य पर आश्चर्य हो रहा था कि किस प्रकार अद्भुत पुण्योदय से पूज्यश्री ससंघ का चातुर्मास अनायास ही नहीं, अनिच्छापूर्वक, ऐसी अपूर्व निधि प्राप्त हो गई। बस अब उनकी भक्ति का प्रवाह बड़ चला।
जो जितने प्रबल विरोधी होता है, वह दृष्टि बदलने से उतना ही अधिक अनुकूल भी बन जाता है। इंद्रभूति ब्राह्मण महावीर भगवान के शासन का तीव्र विरोधी था, किन्तु उसने प्रभु के जीवन का सौंदर्य देखा और उसमें अपूर्व सौरभ और प्रकाश पाया। अतः इतना प्रबल भक्त बन गया कि प्रभु के उपदेशानुसार निर्ग्रन्थ मुनि बन कर भगवान के भक्त शिष्यों का शिरोमणि बनकर गौतम गणधर के नाम से विख्यात हो गया। भावों की अद्भुत गति है।
अब तो कटनी की समाज में आंतरिक भक्ति का स्त्रोत उमड़ पड़ा, इससे आनंद की अविच्छिन्न धारा भी बह चली। बड़े सुख, शांति, आनंद और धर्मप्रभावना के साथ वहाँ का समय व्यतीत होता जा रहा था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.