?आगम भक्त - अमृत माँ जिनवाणी से - २९०
? अमृत माँ जिनवाणी से - २९० ?
"आगम भक्त"
कुछ शास्त्रज्ञों ने सूक्ष्मता से आचार्यश्री के जीवन को आगम की कसौटी पर कसते हुए समझने का प्रयत्न किया। उन्हें विश्वास था कि इस कलीकाल के प्रसाद से महराज का आचरण भी अवश्य प्रभावित होगा, किन्तु अंत में उनको ज्ञात हुआ कि आचार्य महराज में सबसे बड़ी बात यही कही जा सकती है कि वे आगम के बंधन में बद्ध प्रवृत्ति करते हैं और अपने मन के अनुसार स्वछन्द प्रवृत्ति नहीं करते हैं।
स्थानीय कुछ लोगों की प्रारम्भ में कुछ ऐसी इच्छा थी कि चातुर्मास का महान भार कटनी वालों पर न पड़े, किन्तु चातुर्मास समीप आ जाने से दूसरा योग्य स्थान पास में न होने से कटनी को ही चातुर्मास के योग्य स्थान चुनने को बाध्य होना पड़ा।
संघपति ने ऐसे लोगों को कह दिया था- "आप लोग चिंता न करें, यदि आपकी इच्छा न हो, तो आप लोग सहयोग न देना, सर्व प्रबंध हम करेंगे, अब चातुर्मास तो कटनी में ही होगा।"
इस निश्चय के ज्ञात होने पर सहज सौजन्यवश प्रारम्भ में उन शंकाशील भाइयों ने महराज के पास जाना प्रारम्भ किया। उन्हें ऐसा लगने लगा, जैसे हम काँच सरीखा सोचते थे, वह स्फटिक नहीं, वह तो असली हीरा है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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