?आचार्य चरणों का प्रथम परिचय - अमृत माँ जिनवाणी से - २९२
? अमृत माँ जिनवाणी से - २९२ ?
"आचार्य चरणों का प्रथम परिचय"
इस चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के यशस्वी लेखक दिवाकरजी कटनी के चातुर्मास के समय का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि मैंने भी पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के जीवन का निकट निरीक्षण नहीं किया था। अतः साधु विरोधी कुछ साथियों के प्रभाववश मैं पूर्णतः श्रद्धा शून्य था।
कार्तिक की अष्टान्हिका के समय काशी अध्यन निमित्त जाते हुए एक दिन के लिए यह सोचकर कटनी ठहरा कि देखें इन साधुओं का अंतरंग जीवन कैसा है?
लेकिन उनके पास पहुँचकर देखा, तो मन को ऐसा लगा कि कोई बलशाली चुम्बक चित्त को खेंच रहा है। मैंने दोष को देखने की दुष्ट बुद्धि से ही प्रेरित हो संघ को देखने का प्रयत्न किया था, किन्तु रंचमात्र भी सफलता नहीं मिली। संघ गुणों का रत्नाकर लगा।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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