?कटनी चातुर्मास - अमृत माँ जिनवाणी से - २८९
? अमृत माँ जिनवाणी से - २८९ ?
"कटनी चातुर्मास"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज ससंघ ने कुम्भोज बाहुबली तीर्थ से तीर्थराज शिखरजी वंदना हेतु सन १९२७ में प्रस्थान किया। तीर्थराज की वंदना के उपरांत उन्होंने उत्तर भारत के श्रावकों को अपने प्रवास से धन्य किया।
चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागरजी महराज के उत्तर भारत में प्रथम चातुर्मास का सौभाग्य मिला कटनी (म.प्र) को। आषाढ़ सुदी तीज को संघ कटनी से चार मील दूरी पर स्थित चाका ग्राम पहुंच गया। वहाँ स्कूल में संघ ठहर गया।
महराज के उपदेश से प्रभावित हो मुसलमान हेडमास्टर ने मांसाहार का त्याग कर दिया और भी बहुतों ने मांसाहार का त्याग किया था। मध्यान्ह की सामायिक के उपरांत कटनी के जैन समाज का एक जुलूस, जिसमें हिन्दू तथा मुसलमान भी शामिल थे, आचार्य संघ के स्वागतार्थ आया।
बड़े हर्ष के साथ जुलूस ने नगर में प्रवेश किया। जिनमंदिरों की उन्होंने वंदना की। पश्चात नवीन छात्रावास को आचार्यश्री ने अपने चरणों से पवित्र किया। इसी कारण उसे शांति-निकेतन यह अंवर्थ नाम प्राप्त हुआ। २२ जून, सन १९२८ को आचार्य महराज तथा नेमिसागरजी महराज का केशलोंच हुआ, आचार्य महराज का त्याग धर्म पर मार्मिक उपदेश हुआ।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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