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?छने जल के विषय में - अमृत माँ जिनवाणी से - २८८


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २८८   ?


               "छने जल के विषय में "


            कल हम देख रहे थे कि पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने पलासवाढ़ा में अजैन गृहस्थ को भी अनछने जल त्याग का मार्गदर्शन दिया।

             मनुस्मृति जो हिन्दू समाज का मान्य ग्रंथ है लिखा है- "दृष्टि पूतं न्यसेतपादम, वस्त्रपूतं पिबेज्जलम" अर्थात देखकर पाव रखे और छानकर पानी पिए)।

              सन १९५० में हम राणा प्रताप के तेजस्वी जीवन से संबंधित चितौड़गढ़ के मुख्य द्वार पर पहुँचे तो वहाँ एक घट की वस्त्र सहित देख मन में शंका हुई कि यहाँ घट पट का सम्बन्ध कैसे आ गया? तब हमें बताया गया कि यहाँ लोग प्रायः पानी छानकर पीते हैं।

         जैन संस्कृति की करुणा मूलक प्रवृत्ति का यहाँ विशिष्ट सूचक भी है, किन्तु इस संबंध में बड़े-२ विद्धान तक शिथिलता दिखाते हैं।

          पानी छानने के महत्व को ध्यान में रखकर ही आचार्य महराज ने उस भद्र महिला को छानकर पीने को कहा था। आचार्य महराज जैसी महनीय आत्मा छने जल को महत्व देते थे, इससे इस नियम का महत्व स्पष्ट हो जाता है।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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